चित्रगुप्त परिवार झूंसी द्वारा महाकुंभ के पावन पर्व एवं युगपुरुष स्वामी विवेकानन्द एवं ब्रह्मर्षि महेश योगी के जन्मोत्सव श्रृंखला में प्रेम सौहार्द, सद्भाव एंव समभाव की मंगल कामना से समाहित खिचड़ी सहभोज का आयोजन संत शिरोमणि परम पूज्य स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती भृगु तपोवन में सम्पन्न हुआ।
स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती ने अपने उद्बोधन में कहा कि विचारों का अंकन मस्तिष्क में होता है और उसी को मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार रूप में ग्रहण कर लिपि के विकास का श्रीगणेश अथवा सूत्रपात होता है।
भगवान चित्रगुप्त ने मानव के विकसित होते समाज के परिपेक्ष्य में लिपिकीय चिन्हों के अंकन की विद्या को मूर्तरूप देने में महान योगदान दिया और हम इसीलिए उस दिव्य पुरुष का स्मरण कर रहे हैं। संत प्रवर ने अपने उद्बोधन में प्रयाग का जल तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित होने एवं जीव के जीवन में जल की महत्ता को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए प्रयाग की पावन धरती में आयोजित होने वाले माघ मास के कल्पवास की चर्चा करते हुए व्यक्ति के समग्र विकास में इसकी महत्ता पर बल दिया।
अंत में संत प्रवर स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती ने अथर्वाऋषि द्वारा उद्बोधित सत्यमेव जयते सूत्र जो भारत का राष्ट्रीय मूलमंत्र है कि व्याख्या करते हुए बताया कि जब व्यक्ति अध्यात्म पथ पर आरूढ़ होता है तो उसे सत्य के मार्ग में ही तत्पर होना होता है और वही उसकी विजय सुनिश्चित होती है।