क्रोध मनुष्य का स्वभाव नहीं

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मुनि पुलकसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि क्रोध मनुष्य का स्वभाव नहीं है, विभाव है क्योंकि जो चीजें दूसरों के कारण हो वह विभाव है। क्रोध व्यक्ति स्वयं के कारण नहीं करता अपितु दूसरों के कारण करता है इसलिए इसको विभाव कहते हैं। व्यक्ति जीवनभर विभाव में जीता है इसलिए संसार सागर में भटकता रहता है।

पानी का महत्व बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि पानी दो प्रकार का होता है एक तो धरती का पानी दूसरा आँख का पानी। जब धरती का पानी समाप्त हो जाएगा तो जीवन जीना असंभव हो जाएगा और जब किसी की आँख का पानी समाप्त हो जाता है तो मर्यादाएँ, हया-शर्म सब खत्म हो जाती है। इससे पूरा जीवन नर्कमय हो जाता है। इसलिए आप धरती के पानी के साथ आँख के पानी का ख्याल भी रखिए।

समय सबको एक समान रूप से मिलता है पर उस समय को पाकर कोई बिरले महावीर जैसे व्यक्ति ही उसकी पहचान अपनाकर अपना पुरुषार्थ समयानुसार संतुलित कर लेते हैं। धन तो मूल्यवान होता है, पर समय अमूल्य होता है।

उन्होंने कहा कि पुरुषार्थ के साथ पुण्य भी होना चाहिए। इंसान को ऐसा लगता है कि मैं बुद्घि व पुरुषार्थ से बड़ा बन सकता हूँ। पैसा कमा सकता हूँ। इन लोगों के लिए चैलेंज है कि इस दुनिया में पुरुषार्थ करने वाले बहुत हैं पर पुरुषार्थ में सफलता पाने वाले कितने हैं। पुरुषार्थ बढ़ाने के साथ पुण्य भी बढ़ाना चाहिए। सभी धर्म क्रियाओं का आधार आत्मा है। आत्मा का स्वरूप विश्वसनीय होकर स्वीकार करने योग्य है।

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