भला एक देशभक्त भारतीय वैज्ञानिक को यह बात कैसे सहन होती? बातों का जवाब बातों से नहीं, काम से मिला। उन्होंने बंगाल केमिकल्स की स्थापना की और वह कर दिखाया, जो वह अंग्रेज असंभव मानता था।
वे केवल अपने अनुसंधानों में ही व्यस्त न रहे, अपितु उनका मानना था- 'मैं रसायन शाला का जीव हूं। मगर ऐसे भी अवसर आते हैं, जब समय की आवश्यकता होती है कि परखनली छोड़कर देश की पुकार सुनी जाए।' उन्होंने यह स्वयं करके भी दिखाया भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन में सक्रिय भाग लेने वाले भारत की माटी के इस सच्चे सपूत का नाम था आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय।