Dance of Death: जब नाचते हुए मौत की आगोश में समा गए सैकड़ों लोग, 400 से ज्यादा लोग मर गए, क्या था रहस्य, महामारी या मनोविज्ञान?
बेहद प्रसिद्ध केनेडियन सिंगर और पोएट लियोनार्ड कोहेन का एक गीत है,डांस मी टू द एंड ऑफ लव
इस गीत से कवि का आशय यह है कि वो चाहता है कि उसकी बिलव्ड उसके साथ तब तक डांस करे जब तक कि प्यार नाम की शै खत्म ही न हो जाए।
यह तो हुई कोहेन और उसके प्यार के जुनून की बात, लेकिन क्या आपको पता है कि दुनिया में एक वक्त ऐसा भी आया था कि लोग डांस करते करते ही मर गए थे, हालांकि उनके मरने के पीछे की वजह प्यार नहीं बल्कि कोई महामारी थी, कोई मतिभ्रम या कुछ ओर इस बारे में आजतक रिसर्च का सिलसिला जारी है।
जी, हां फ्रांस जो किसी जमाने में स्ट्रासबर्ग के नाम से जाना जाता रहा है, वहां कुछ ऐसा ही हुआ था। और यह कोई आज की बात नहीं, बल्कि करीब 500 साल पुरानी 1518 की बात है।
हाल ही में दुनिया में कोरोना महामारी ने आतंक मचाया था। जिसमें दुनिया के लाखों लोग मौत की आगोश में समा गए। लेकिन करीब 500 साल पहले भी एक ऐसी ही महामारी आई थी, जिसकी वजह से तबाही मची थी। इस बीमारी में लोग डांस-डांस करते करते ही मर गए थे।
दरअसल साल 1518 में अलसेस के स्ट्रासबर्ग जो अब फ्रांस है में एक महामारी आई थी जिसके बारे में जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। 500 साल पहले आई डांस की महामारी ने फ्रांस में कई लोगों को अपना शिकार बनाया। इस महामारी की वजह से करीब 400 लोगों की मौत हुई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 1518 का साल था। फ्रांस में एक युवती अचानक डांस करने लगी और डांस करते-करते वो अपना होश खो बैठी। एक दूसरी घटना में फ्राउ ट्रॉफी नाम की एक युवती भी अचानक नाचने लगी और नाचने में इतनी मस्त हो गई कि वह नाचते-नाचते घर के बाहर गली में आ गई। तब न तो कोई संगीत या कोई धुन बज रही थी न कोई गाना।
अब फ्राउ ट्रॉफी को डांस करते देख लोग हैरान हो गए जिसके बाद वहां उसके परिजन पहुंचे। इस तरह लोगों के नाचने के नजारे देखकर हर कोई हतप्रद था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए और ये क्या हो रहा था।
फ्राउ ट्रॉफी को समझाने पहुंचे उसके परजिन भी कुछ देर में डांस करने लगे। अब वहां पर लोगों की भारी भीड़ जुट गई। बताया जाता है कि अचानक देखते ही देखते कई लोग डांस करने लगे और डांस करते हुए लोग मरने लगे। इस तरह करीब 30 से अधिक लोगों की मौत हो गई। अब इस घटना के बाद फ्रांस में हड़कंप मच गया और लोग सहम गए। लोग डांस करते जा रहे और मरते जा रहे थे।
नहीं थमा डांस और मौत का सिलसिला
जब तक इस बारे में पता चलता, यह घटना किसी सनसनी की तरह फैल गई। कई इलाकों में लोगों के डांस करने की खबरें आने लगीं।
लोग डांस करते जा रहे थे और मरते जा रहे थे। न डांस करने का और न मौतों का सिलसिला थम रहा था। एक को देखकर दूसरा भी नाचने लगा और इस तरह डांस और मौत का सिलसिला शुरू हो गया।
इसके बाद पीड़ितों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। आज भी कई वैज्ञानिक इस पर बंटे हुए हैं कि लोगों की डांस करने से मौत हुई थी या नहीं। उस समय घटी इस रहस्यमी डांस की घटना को वैज्ञानिकों ने डांसिंग प्लेग का नाम दिया था।
हालांकि आज तक रहस्यमी डांस की घटना के रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है। अभी भी वैज्ञानिक उस घटना को लेकर रिसर्च कर रहे हैं। डांसिंग प्लेग और मौतों को लेकर वैज्ञानिकों ने अलग-अलग मत दिए हैं।
क्या कहती है रिसर्च?
एक मत के हिसाब से यह सब उन लोगों के द्वारा फफूंद या मनो-रासायनिक उत्पादों का सेवन करने की वजह से हुआ। आपको बता दें कि एर्गोटामाइन एरोगेट फंगी का मुख्य मनो-सक्रिय उत्पाद है; यह ड्रग लिसर्जिक एसिड डायथाइलैमाइन (एलएसडी -25) से संरचनात्मक रूप से संबंधित है और वह पदार्थ है जिसमें से एलएसडी -25 को मूल रूप से मिलाया गया था। उसी फंगस को किसी दूसरे रसायन में मिलाया गया है, जिसमें 'सलेम विच ट्रायल्स' भी शामिल है। इसे असामान्य व्यवहार या मतिभ्रम भी कहा गया। लेकिन इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
इसे मास हिस्टीरिया या जन मनोचिकित्सा बीमारी में होने वाले साइकोजेनिक मूवमेंट डिसऑर्डर भी बताया गया है, जिसमें कई लोग अचानक एक ही तरह का विचित्र व्यवहार करने लगते हैं।
डान्सिंग प्लेग या तंत्र साधना, क्या था?
एक दिन मौत का यह तमाशा बंद हो गया। प्रशासन की नजर में यह एक तरह का प्लेग था, जिसने लगभग 400 लोगों की जान ले ली। इतिहासकारों ने इसे 'डांसिंग प्लेग' का नाम दिया। अब तक कोई नहीं जानता कि आखिर डांसिंग प्लेग किस रहस्य के साथ शुरू हुआ, और कैसे खत्म हुआ? घटना के बाद उस पहली महिला 'फ्राउ ट्रॉफी' को तलाश करने की काफी कोशिश की गई, लेकिन उसके बारे में कोई सुराग नहीं मिला।
डांसिंग प्लेग अचानक शुरू हुआ था और एक रहस्य के साथ खत्म भी हो गया। इस घटना के दौरान, जहां चिकित्सक इसे मनोविज्ञान ने जोड़कर देख रहे थे। वहीं कुछ लोगों ने इसे तंत्र साधना का असर बताया। विभिन्न मतों के बीच यह बात कही गई कि यूरोप में 200 से 500 ईसा पूर्व अंधकार युग था। यानी, लोगों को चमत्कार, शैतानी ताकतों पर विश्वास था। मध्ययुग की शुरुआत के साथ ही इन धारणाओं में कमजोरी आई, लेकिन यह पूरी तरह से खत्म नहीं हुई। 14वीं और 15वीं शताब्दी में यूरोप में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जहां महिलाओं को डायन मानते हुए जिंदा आग के हवाले कर दिया गया था। उस समय राजा का जनता के प्रति क्रूर व्यवहार भी इस तरह की घटनाओं की वजह बना।
जब 'डांसिंग प्लेग' की घटना हुई, तब यही अंदाजा लगाया गया कि लोगों पर किसी डायन या भूत का साया है, जो धीरे-धीरे उनकी जान ले रहा है। इतिहासकार जॉन वालेर ने अपनी किताब 'ए टाइम टू डांस, ए टाइम द डाय: द एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्टोरी ऑफ द डांसिंग प्लेग ऑफ 1518' ने इस पूरी घटना को विस्तार से लिखा है।
15वीं शताब्दी में मनोविज्ञान के क्षेत्र में कोई तरक्की नहीं हुई थी। ऐसे में लोगों का मत यही था कि कोई भी मानसिक अवस्था, जिसमें व्यक्ति आम आदमी की तरह व्यवहार नहीं करता है, तो वह प्रेत की चपेट में है। वे उसे तांत्रिक और ओझा के पास ले जाते थे।
1952 में यूजीन बैकमैन ने अपनी किताब 'रिलीजियन डांस इन दा क्रिश्चन चर्च एंड इन पॉपुलर मेडिसिन' में जिक्र किया है कि ईसाई धर्म में ईश्वर भक्ति में नाचने की प्रथा रही है। जो बिना किसी भाव के केवल ईश्वर के लिए नाचते हैं। ताकि, ईश्वर उन्हें देखकर प्रसन्न हों। उन्होंने डांसिंग प्लेग को महामारी मानने से साफ इंकार किया है। वे कहते हैं कि लोगों ने नृत्य के जरिए सांसारिक जीवन से मुक्ति पाने का मार्ग खोज लिया था।
क्या महामारी का असर था?
धर्म से अलग हटकर बात की जाए तो कुछ चिकित्सकों और इतिहासकारों ने डांसिंग प्लेग को महामारी माना था। हालांकि, उन्होंने भी इसे मानसिक रोग से जोड़कर ही देखा।
वेंडरबिल्ट मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर टिमोथी जोन्स ने इसके पीछे थ्योरी दी है कि यूरोप और फ्रांस के देशों में 14वीं से 16वीं शताब्दियों के दौरान मौसम में अचानक से परिवर्तन देखे गए। कई बार यहां तेज गर्मी पड़ती और सूखे के कारण फसले नष्ट हो जाती, तो कई बार तेज बारिश के साथ ओले गिरते। हर मौसम का प्रकोप यहां की जमीन को तो बंजर बना ही रहा था। साथ ही लोगों में कई तरह की बीमारियां जैसे मोतियाबिंद, सिफलिस, कुष्ठ रोग भी फैल रहे थे। आर्थिक और शारीरिक रूप से आ रही इस कमजोरी ने लोगों के मनो-भाव पर काफी गहरा असर डाला था। अकाल के कारण मरने वालों में संख्या बढ़ रही थी और बीमार लोगों में अपंगता आ रही थी। 1518 के दौरान यूरोप में डांसिंग प्लेग की घटनाएं सात गुना बढ़ गईं थीं।