भारत को क्योटो प्रोटोकॉल में बदलाव मंजूर नहीं

रविवार, 13 दिसंबर 2009 (19:12 IST)
जलवायु परिवर्तन पर नए वैश्विक समझौते के प्रयासों में क्योटो प्रोटोकॉल के अस्तित्व को बचाए रखने की कोशिश भी की जा रही है और भारत ने रविवार को स्पष्ट किया कि वह क्योटो प्रोटोकॉल में किसी भी संशोधन के खिलाफ है।

यहाँ शिखर सम्मेलन में आए लगभग 200 देशों के पर्यावरण मंत्री मसौदा समझौते पर अनौपचारिक बातचीत कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि वे किसी मसौदा पाठ पर सहमत हो जाएँगे, जिसे शासनाध्यक्षों के समक्ष रखा जा सकेगा। ये शीर्ष नेता 12 दिन के इस सम्मेलन के अंतिम चरण में भाग लेने के अगले सप्ताहांत यहाँ इकट्ठे होंगे।

भारत के पर्यावरण सचिव विजय शर्मा ने कहा कि एनेक्स-1 और गैर एनेक्स देशों को अलग-अलग दायरे में रखने की कुछ धाराएँ हैं और कुछ धाराए हैं जो एनेक्स-1 के (विकसित) देशों को क्योटो छोड़ने की अनुमति देती है, जो इस समय सही संदेश नहीं होगा।

यह 12 दिन का सम्मेलन अब दूसरे हफ्ते में प्रवेश करने जा रहा है। पहले हफ्ते की खास बात एक छोटे से द्वीपीय देश तुवालू द्वारा बहिर्गमन करते हुए वार्ताओं को बाधित करने का प्रयास रहा। सम्मेलन के अध्यक्ष ने तुवालू के इस प्रस्ताव को लेने से इनकार कर दिया था कि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को पूर्व औद्योगिक वर्षों से 1.5 डिग्री पर सीमित कर दिया जाए।

वार्ताओं की अध्यक्षता कर रहीं डेनमार्क की मंत्री कॉनी हेडेगार्ड ने हालाँकि पहले हफ्ते की वार्ताओं पर संतोष जताया है। उन्होंने प्रक्रियात्मक प्रगति को 'अद्भुत' करार दिया है। उन्होंने कहा कि मुख्य बातचीत वास्तव में शुरू हो चुकी है, हालाँकि अगले कुछ दिनों में हमारे समक्ष बड़ा काम बाकी है।

प्रशांत द्वीपीय देश तुवालू ने क्योटो प्रोटोकॉल में एक और प्रोटोकॉल जोड़े जाने संबंधी प्रस्ताव रखा है। भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील हालाँकि ऐसे प्रमुख विकासशील देश हैं, जो क्योटो प्रोटोकॉल की अवधारणा पर कायम हैं।

भारत के पर्यावरण सचिव विजय शर्मा ने एकत्र वार्ताकारों से कहा कि हमारा ध्यान समझौते के क्रियान्वयन पर है। मुख्य बिंदु मौजूदा प्रतिबद्धताएँ हैं। तुवालू एक ऐसा छोटा-सा द्विपीय देश है, जहाँ लोग समुद्र तल से दो मीटर की ऊँचाई पर रहते हैं और बढ़ता जल स्तर उसका नामोनिशान मिटा देगा।

तुवालू के प्रतिनिधि इयान फ्राई ने प्रोटोकॉल के प्रस्ताव पर विचार विमर्श के लिए तत्काल एक संपर्क समूह गठित किए जाने की अपील की। नया प्रोटोकॉल विकसित देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं द्वारा 1. 5 डिग्री की सीमा से कम गर्मी और बाध्यकारी कटौती के प्रावधान जैसी कड़ी कार्रवाई की बात करता है।

हेगार्ड को इस मुद्दे पर गतिरोध पैदा होने के कारण सीओपी के कामकाज को रोकना पड़ा था क्योंकि आस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ जैसे कुछ देश इसका समर्थन कर रहे हैं।

दूसरी ओर, भारत और चीन जैसे विकासशील देशों तथा सऊदी अरब जैसे तेल उत्पादक देशों ने इस आधार पर इसका विरोध किया है कि क्योटो प्रोटोकॉल से कोई भटकाव नहीं होना चाहिए जो अमेरिका को छोड़कर औद्योगिक देशों पर कानूनन बाध्यकारी प्रतिबंध थोपती है। भारत और अन्य देशों को संदेह है कि नए प्रोटोकॉल को यूरोपीय संघ का समर्थन क्योटो प्रोटोकॉल को कमजोर करने की साजिश भी हो सकता है।

शर्मा ने कहा कि मसौदे के कुछ प्रस्ताव ठोस नहीं हैं और साफ तौर पर संधि के ऐतिहासिक जिम्मेदारी और समानता के प्रावधानों के विरोधाभासी हैं। क्योटो प्रोटोकॉल 37 औद्योगिक देशों के लिए बाध्यकारी लक्ष्य तय करता है, जिसके तहत उन्हें 1990 के विपरीत 2008-12 के बीच ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में पाँच फीसदी की कमी करनी होगी।

इस सम्मेलन के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है, लेकिन हजारों की संख्या में पर्यावरण कार्यकर्ता यहाँ पहुँचे हैं, जो प्रतिनिधियों से इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने की माँग कर रहे हैं। पुलिस ने इस तरह के कई प्रदर्शकारियों को पकड़ा जिनमें से 13 अब भी पुलिस की हिरासत में हैं।

इस सम्मेलन में पहला समझौता मसौदा शुक्रवार को पेश किया गया। विकसित एवं विकाशील, दोनों देश विभिन्न कारणों से इसका विरोध कर चुके हैं। इस सम्मेलन का महत्वपूर्ण मकसद क्योटो प्रोटोकॉल को 2013 से शुरू हो रहे दूसरे प्रतिबद्धता चरण में ले जाना है, जहाँ कटौती करने वाले विकसित देशों को एनेक्स बी की सूची में डाला जाएगा, जो भारत और चीन की शीर्ष प्राथमिकता है।

इस बीच, भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश तथा अन्य दक्षेस सदस्य जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने के लिए नियमित रूप से आपसी समन्वय को राजी हो गए हैं। (भाषा)

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