आसिफ अली जरदारी बने पाकिस्तान के राष्ट्रपति, महमूद अचकजई को दी बड़े अंतर से शिकस्‍त

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
रविवार, 10 मार्च 2024 (05:00 IST)
Asif Ali Zardari elected President of Pakistan for the second time : अप्रत्याशित राजनीतिक गठबंधन बनाने और ‘सुलह की नीति’ के जरिए प्रतिद्वंद्वियों पर जीत दर्ज करने का अद्भुत कौशल रखने वाले आसिफ अली जरदारी ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के साथ देश की राजनीति में एक नया मुकाम हासिल कर लिया है।
 
रविवार को शपथ ग्रहण करने की उम्मीद : वे पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के पति हैं। भुट्टो की 2007 में हत्या कर दी गई थी। जरदारी (68) दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए पहले असैन्य व्यक्ति हैं। इससे पहले वे 2008 से 2013 तक इस पद रहे थे। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी शनिवार को देश के 14वें राष्ट्रपति चुने गए और उनके रविवार को शपथ ग्रहण करने की उम्मीद है।
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कराची में एक सिंधी जमींदार, व्यापारी और राजनीतिक नेता हकीम अली जरदारी के घर 1955 में उनका जन्म हुआ था। आसिफ अली जरदारी ने 1987 में पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शादी की थी। जुल्फिकार को एक हत्या में कथित संलिप्तता को लेकर सैन्य शासक जियाउल हक के शासनकाल में 1979 में फांसी दे दी गई थी।
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बेनजीर की 2007 में एक आतंकवादी हमले में हत्या होने तक जरदारी अपनी पत्नी के तहत ही काम कर रहे थे। रावलपिंडी में हुए हमले में बेनजीर की नृशंस हत्या से नाराज उनके समर्थकों की नारेबाजी के जवाब में जरदारी ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का अपना मशहूर नारा लगाया था।
 
बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद पीपीपी को सहानुभूति वोट मिला : बेनजीर की हत्या के बाद, जरदारी को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) को एकजुट और अपने नियंत्रण में रखने तथा तख्तापलट का इतिहास रखने वाले देश के राजनीतिक परिदृश्य में अपने लिए जगह बनाने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ा। बेनजीर की हत्या के बाद पीपीपी को सहानुभूति वोट मिला और वह 2008 में सत्ता में आई और जरदारी को राष्ट्रपति चुना गया।
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राष्ट्रपति पद पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान जरदारी ने जुल्फिकार भुट्टो की फांसी के विषय पर 2011 में उच्चतम न्यायालय से एक संवैधानिक परामर्श प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपति को प्रदत्त अपनी शक्तियों का उपयोग किया था। संयोगवश, शीर्ष अदालत ने इस मामले पर वर्षों तक सुनवाई करने के बाद आखिरकार इस साल 6 मार्च को अपनी राय जारी की।
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जरदारी के दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने से कुछ ही दिन पहले न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भुट्टो के मामले की निष्पक्ष सुनवाई नहीं की गई थी। यह जरदारी और उनके समर्थकों के लिए एक बड़ी जीत थी। जरदारी का मुख्य योगदान स्वेच्छा से राष्ट्रपति की सभी शक्तियों को त्यागना था, जिन्हें उनके पूर्ववर्ती जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने संविधान में परिवर्तन कर हड़प लिया था। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour

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