न्यूयॉर्क। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने गुरुवार को संसद में 1914 की उस घटना पर माफी मांगी जिसमें 376 पंजाबी यात्रियों को लेकर कनाडा की बंदरगाह पर पहुंचे समुद्री जहाज को नस्ली भेदभाव के कारण वापस भेज दिया गया था।
पीएम ट्रूडो ने संसद में 10 मिनट तक इस मामले में भाषण दिया। उन्होंने सभी पंजाबियों के परिवार से माफी मांगी, जो इस घटना में मारे गए थे। प्रधानमंत्री ने संसद में कहा कि कनाडा सरकार 102 साल पहले हुई कामागाटामारू हादसे की निंदा करती है।
ट्रूडो ने गत वर्ष चुनाव प्रचार के दौरान भी कामागाटामारू घटना पर सिख समुदाय के लोगों से माफी मांगी थी। प्रधानमंत्री के माफी मांगने के बाद संसद तालियों से गूंज उठा और संसद में 'जो बोले सो निहाल' के नारे लगे।
कनाडा के प्रधानमंत्री के माफी मांगने के बाद विपक्ष के नेताओं ने भी 102 वर्ष पहले की घटना पर माफी मांगी। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने भी 2008 में ब्रिटिश कोलंबिया में हुए एक कार्यक्रम के दौरान माफी मांगी थी लेकिन सिख समुदाय के सदस्यों ने कहा था कि माफी मांगना है तो कनाडा की संसद में मांगना होगा।
भारत में अंग्रेजों के शासनकाल दौरान भारतीयों के लिए कनाडा की सीमाएं खुली थीं। इसी के मद्देनजर अमृतसर के सरहाली गांव से बाबा गुरदित्त सिंह के नेतृत्व में 376 पंजाबी 120 दिनों का शंघाई के रास्ते सफर करके कनाडा पहुंचे थे, लेकिन कनाडा सरकार ने एक कानून पास करके एशियाई लोगों के कनाडा में प्रवेश पर रोक लगा रखी थी।
कामागाटामारू को भी वेंकूवर के समीप बंदरगाह पर समुद्र में ही रोक दिया गया था। प्रवासी पंजाबियों ने मुसाफिरों को कनाडा की धरती पर उतारने की इजाजत के लिए भरसक प्रयास किए थे, परंतु सरकार ने सिर्फ 20 यात्रियों को ही प्रवेश की अनुमति दी और बाकी को कोलकाता (उस समय कलकत्ता) भेज दिया गया जिसमें से 19 की मौत हो गई थी। (वार्ता)