Pakistani repression in Balochistan: पाकिस्तान द्वारा कब्जाया बलूचिस्तान एक बार फिर सुर्खियों में है। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने मंगलवार को जाफर एक्सप्रेस ट्रेन पर हमला कर 30 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और दर्जनों को बंधक बना लिया। यह घटना बलूच लोगों के दशकों पुराने संघर्ष और पाकिस्तान के खिलाफ उनकी बढ़ती नाराजगी का एक और सबूत है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर बलूच लोग क्या चाहते हैं? और बलूचिस्तान में पाकिस्तानी शासन के खिलाफ यह आग क्यों भड़क रही है? आइए, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान संदर्भ को समझें।
बलूच लोगों की मांग :
आजादी का सपना : बलूचिस्तान, क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। गैस, तेल, सोना और कोयले के भंडार इसे आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं। लेकिन बलूच लोग दावा करते हैं कि पाकिस्तान इन संसाधनों का शोषण तो कर रहा है, मगर उनकी बुनियादी जरूरतें - शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें - पूरी तरह उपेक्षित हैं। उनकी मुख्य मांग है स्वतंत्र बलूचिस्तान- एक ऐसा देश जहां उनकी भाषा, संस्कृति और पहचान सुरक्षित रहे।
क्या है ऐतिहासिक दावा : 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया था, लेकिन 27 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने इसे जबरन अपने कब्जे में ले लिया। तब से बलूच लोग इसे 'गुलामी' मानते हैं।
आधुनिक मांग : बलूच लिबरेशन आर्मी जैसे संगठन अब सशस्त्र संघर्ष के जरिए अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान ने उन्हें सिर्फ गरीबी (81% बलूच आबादी गरीबी रेखा से नीचे), अशिक्षा (70% अनपढ़) और दमन दिया है।
बलूचों का दावा है कि हमारी जमीन, हमारा हक। बलूच प्रदर्शनों पर पाकिस्तान का जवाब है कि ये आतंकवाद है, विदेशी साजिश है। इसमें पाकिस्तान अक्सर भारत, ईरान और अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसियों पर आरोप लगाता रहा है।
पाकिस्तानी अत्याचार : एक काला इतिहास, पाकिस्तान पर बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इनमें शामिल हैं:
फर्जी मुठभेड़ : 'मारो और फेंक दो' नीति के तहत सैकड़ों बलूच युवाओं की हत्या का आरोप है। हाल ही में 16 जुलाई 2022 को सेना ने 9 विद्रोहियों को मारने का दावा किया था, जिसके बाद विरोध प्रदर्शन भड़क उठे।
सैन्य दमन : 1948 से अब तक पांच बड़े सैन्य अभियान (1948, 1958-59, 1962-63, 1973-77, और 2000 से अब तक) चलाए गए। 2006 में बलूच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या ने इस विद्रोह को और हवा दी। बलूच नेशनल मूवमेंट और अन्य संगठनों का कहना है कि यह 'नरसंहार' है। 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, 787 लोग गायब हुए, जिनमें 101 महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।
संसाधनों का शोषण : CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) के तहत ग्वादर बंदरगाह और अन्य परियोजनाओं से बलूचों को कोई फायदा नहीं मिला। उल्टा, उनकी जमीन छीनी जा रही है और मछुआरों की आजीविका खतरे में है।
ट्रेन हाईजैक और विद्रोह की आग ने एक बार फिर इस मसले पर दुनिया का ध्यान फिर बलूचिस्तान की ओर खींचा है। BLA ने इस हमले को 'पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का जवाब' बताया। BLA का कहना है कि वे ग्वादर और CPEC परियोजनाओं को निशाना बनाकर पाकिस्तान और चीन को सबक सिखाना चाहते हैं। चीन की बढ़ती दखलअंदाजी के चलते आए दिन प्रदर्शन हो रहे हैं। बलूच महिलाएं और परिवार इस्लामाबाद से क्वेटा तक सड़कों पर हैं, अपने लापता परिजनों के लिए न्याय मांग रही हैं। ALSO READ: बलूचिस्तान से लेकर POK में उथल-पुथल शुरू, क्या सच होगी जयशंकर की बात?
अंतरराष्ट्रीय मांग : बलूच नेता जैसे अल्लाह नजर और नायला कादरी ने भारत, संयुक्त राष्ट्र, और अन्य देशों से हस्तक्षेप की अपील की है। उनका कहना है कि बांग्लादेश की तरह बलूचिस्तान को भी आजादी मिलनी चाहिए।
क्या होगा पाकिस्तान और बलूच लोगों का भविष्य?
पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और आंतरिक अस्थिरता बलूच विद्रोह को बढ़ावा दे रही है। जानकार मानते हैं कि अगर यह स्थिति जारी रही, तो बलूचिस्तान 'पाकिस्तान का अगला बांग्लादेश' बन सकता है। लेकिन चीन की मौजूदगी और अंतरराष्ट्रीय दबाव इसे जटिल बनाते हैं।
बलूच लोगों की मांग सिर्फ आजादी नहीं, बल्कि सम्मान और इंसाफ भी है। दशकों से चले आ रहे दमन और शोषण ने उन्हें हथियार उठाने को मजबूर किया है। क्या उनकी यह लड़ाई रंग लाएगी? या पाकिस्तान इसे कुचल देगा? यह सवाल समय के गर्भ में है। लेकिन एक बात साफ है - बलूचिस्तान की यह कहानी अब दुनिया की नजरों से छिपी नहीं है।