सिरीसेना ने संसद का कार्यकाल समाप्त होने से करीब 20 माह पहले उसे भंग करने का फैसला लिया था। उन्होंने नौ नवंबर को संसद भंग करते हुए अगले साल पांच जनवरी को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की है। यह फैसला उन्होंने यह स्पष्ट होने के बाद किया कि 72 वर्षीय महिंदा राजपक्षे के पास प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए सदन में पर्याप्त संख्या बल नहीं है।
अधिकारियों ने बताया कि अपदस्थ प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी, मुख्य विपक्षी पार्टी तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) और वामपंथी जेपीवी या पीपुल्स लिब्रेशन फ्रंट उन 10 दलों में शामिल है, जिन्होंने शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर कर राष्ट्रपति के कदम को अवैध ठहराने की मांग की है। याचिकाकर्ताओं में चुनाव आयोग के सदस्य प्रोफेसर रत्नाजीवन हूले भी शामिल हैं।
सिरीसेना ने संसद भंग करने के अपने विवादित फैसले का रविवार को पुरजोर बचाव करते हुए कहा कि बाद में प्रतिद्वंद्वी सांसदों के बीच झड़पों से बचने के लिए यह फैसला लिया गया। उन्होंने कहा कि मीडिया में कुछ खबरें आईं थीं कि 14 नवंबर को शक्ति परीक्षण के दौरान नेताओं के बीच झड़पें होंगी। थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी ऑल्टरनेटिव्स (सीपीए) ने भी राष्ट्रपति के कदम को चुनौती देने के लिए एक याचिका दायर की है।
इसने एक बयान में कहा, सीपीए बेशक इस कदम का विरोध करती है, क्योंकि यह असंवैधानिक एवं अधिकार क्षेत्र से बाहर है। श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस के नेता रॉफ हकीम ने भी याचिका दायर की है और कहा कि संविधान के 19वें संशोधन के मुताबिक संसद भंग किए जाने का अधिकार नहीं है और इस संबंध में आज उच्चतम न्यायालय में वाद दायर किया गया।
श्रीलंका के संविधान का 19वां संशोधन कुल पांच साल के कार्यकाल में साढ़े चार साल से पहले संसद भंग करने की राष्ट्रपति की सीमाओं को सीमित करता है। इसलिए संवैधानिक तौर पर नया चुनाव फरवरी 2020 से पहले नहीं हो सकता, क्योंकि मौजूदा संसद का कार्यकाल अगस्त 2020 में समाप्त हो रहा है।