क्या है दावोस वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, क्यों है भारत के लिए महत्वपूर्ण...

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त स्विट्ज़रलैंड के एक छोटे से शहर दावोस में संपन्न होने वाले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम या दावोस फोरम में सम्मिलित होने गए हुए हैं। उन्होंने फोरम को संबोधित करते हुए निवेशकों का आह्वान किया कि अब भारत में 'रेड टेप', बल्कि 'रेड कॉरपेट' है। 'वसुधैव कुटुंबकम' की भावना का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत की कई खूबियों का बखान किया।
 
 
मोदी पिछले दो दशकों में इस सम्मेलन का हिस्सा बनने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। दावोस 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री के अलावा सबकी नजरें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर भी टिकी हुई हैं, ज्ञात हो कि ट्रम्प दावोस फोरम में हिस्सा लेने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। 
 
इससे यह बात तो साफ है कि इस साल का दावोस कई मायनों में खास है। मोदी व ट्रम्प के अलावा इस सम्मेलन में थेरेसा मे, एंजेला मार्केल, बेंजामिन नेतन्याहू समेत कई देशों व बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं। इन हालातों में सभी के मन में दावोस 2018 के लिए उत्सुकता बेहद बढ़ गई है। ऐसे में आइए जानते हैं आखिर दावोस फोरम, इसकी अहमियत व इसमें शामिल होने वाली हस्तियों के बारे में। 
 
क्या है दावोस फोरम?
दावोस असल में स्विट्ज़रलैंड की पहाड़ियों में स्थित एक छोटा सा शहर है। करीब 5120 फ़ीट की ऊंचाई पर बसे इस शहर को यूरोप के सबसे ऊंचे शहर का दर्जा प्राप्त है। ये शहर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक के लिए मशहूर होने के साथ ही स्विट्ज़रलैंड के सबसे बड़े स्की रिसोर्ट के लिए भी जाना जाता है। 
 
यदि दावोस फोरम की बात करें तो इसकी शुरुआत साल 1971 में क्लॉस श्वाब के द्वारा एक छोटे से सम्मलेन के तौर पर हुई थी, जिसे यूरोपीय मैनेजमेंट फोरम कहा जाता था। इसका मकसद खराब प्रदर्शन कर रही यूरोपीय कंपनियों को अमेरिकी प्रबंधन तकनीकों से रूबरू करवाना था। बदलते वक्त के साथ साल 1987 में यूरोपीय मैनेजमेंट फोरम ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का रूप ले लिया, जिसका आधिकारिक लक्ष्य 'विश्व के स्तर में सुधार' लाना है। 
 
दावोस फोरम के नाम से पहचाने जाने वाले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की इस सालाना बैठक में दुनिया के प्रमुख राष्ट्राध्यक्ष एवं बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधियों समेत वर्ल्ड इकोनॉमिक लीडर्स की मुलाकात होती है। दावोस फोरम यहां होने वाली कई अनौपचारिक बैठकों के लिए भी जाना जाता है। यहां विश्व के बड़े नेताओं, नीति निर्धारकों व बिजनेस प्रमुखों को एक ही मंच में इकट्ठे होने का मौका मिलता है। 
 
साल 1988 के दावोस फोरम में यूनान व तुर्की के बीच हुए समझौते से इन दो देशों के बीच संभावित तौर पर होने वाली जंग रुक गई थी। साथ ही साल 1992 में दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति डे क्लर्क ने इसी सालाना बैठक में नेल्सन मंडेला और चीफ मैंगोसुथु बुथलेजी से मुलाकात की थी, जो दक्षिण अफ्रीका के राजनीतिक बदलाव में अहम मानी जाती है। 
 
दावोस में भारत : नरेंद्र मोदी 21 साल बाद दावोस फोरम में शिरकत करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। साल 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा दावोस फोरम में शामिल हुए थे। दावोस फोरम में लोगों को संबोधित करते हुए देवगौड़ा के शब्द थे, 'हमारी नजरें ऊपर की ओर टिकी हुई हैं। भारत को लेकर हमारा लक्ष्य है कि आने वाले दो दशकों में भारत एक आर्थिक शक्ति के तौर पर दुनिया के सामने होगा।'
 
आज दो दशकों बाद देवगौड़ा के शब्द काफी हद तक सच हो चुके हैं। दावोस में शामिल होने के कुछ हफ़्तों बाद उस वक्त वित्तमंत्री रहे पी चिदंबरम ने भारत में कर की दरों में कुछ बेहद बड़े बदलाव किए थे, जिसे भारत को दक्षिणपूर्वी एशिया में तेजी से बढ़ती इकोनॉमी बनाने के लिए पहला कदम माना गया। साल 1997-98 के बजट में बिजनेस प्रमुखों को निवेश बढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया।
 
देवगौड़ा के दावोस में शिरकत करने से लेकर मोदी के दावोस जाने तक, भारत का सकल घरेलू उत्पाद करीब छह गुना तक बढ़ चुका है। देवगौड़ा के दावोस फोरम में जाने का एक अहम मकसद भारत के लिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना भी माना जाता है। मोदी के विचार भी इससे कुछ मिलते-जुलते ही हैं। 
 
देवगौड़ा के समय से लेकर अब तक काफी कुछ बदल चुका है। यदि राजनैतिक तौर पर भी देखा जाए तो देवगौड़ा की जनता दल सरकार, मोदी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार की तुलना में काफी कमजोर थी। दूसरी तरफ, साल 1997 में भले ही दुनिया भारत में निवेश न करना चाहती हो लेकिन आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार कई अहम नीतियां ला चुकी है, ऐसे में दावोस फोरम से भारत को विदेशी निवेश के क्षेत्र में काफी फायदा हो सकता है। 
 
दावोस 2018 में कौन-कौन होगा शामिल  
दावोस फोरम में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प, इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू, जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल, ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमेनुअल मैक्रॉन जैसे विश्व नेता शामिल होने जा रहे हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रमुख जैसे, यूएन के सेक्रेटरी जनरल अंटोनिओ गूटेर्रेस, डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर-जनरल टेड्रोस घेबरियेसुस व वर्ल्ड बैंक प्रमुख जिम योंग किम समेत कई अन्य लोग शिरकत कर रहे हैं। 
 
दावोस फोरम में अलीबाबा के संस्थापक जैक मा व जेपी मॉर्गन के जैमी डिमोन समेत कई बड़ी कंपनियों के सीईओ भी शिरकत करते नजर आएंगे। 
 
विश्व राजनीति व व्यापार की दुनिया समेत सभी बड़े संस्थानों की अगुवाई करने वाले प्रमुखों की मौजूदगी से आप दावोस फोरम 2018 की अहमियत का अंदाजा लगा ही सकते हैं। दुनिया की मुख्यधारा में शामिल होते हुए भारत को विश्व पटल में अधिक स्थिरता के साथ स्थापित करने की ओर मोदी के इस कदम को अच्छी एवं सोची-समझी नीति कहा जा सकता है।

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