भारत ने हमेशा बांग्लादेश के साथ अपनी दोस्ती को सर्वोच्च प्राथमिकता दी : राष्ट्रपति कोविंद
गुरुवार, 16 दिसंबर 2021 (22:06 IST)
ढाका। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि भारत ने हमेशा बांग्लादेश के साथ अपनी दोस्ती को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। दोस्ती का एहसास कराने के लिए हम अपनी पूरी क्षमता के साथ बांग्लादेश की हरसंभव मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
वे बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर वहां के संसद भवन, साउथ प्लाजा में आयोजित विजय दिवस और मुजीब वर्ष (मुजीब बोरशो) समारोह में बोल रहे थे। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, मैं आपको भारत के आपके 130 करोड़ भाइयों और बहनों की तरफ से इस उत्सव की शुभकामनाएं देता हूं।
उन्होंने कहा, हाल के वर्षों में हमने गतिविधि के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार, आर्थिक सहयोग, लोगों से लोगों के बीच संबंधों, छात्रों के आदान-प्रदान और व्यापक जुड़ाव का निरंतर विस्तार देखा है। ये आपसी सम्मान, संप्रभु समानता और हमारे संबंधित दीर्घकालिक हितों के आधार पर एक स्थाई और गहरी दोस्ती की गारंटी है। मुझे खुशी है कि हमारे हाल के प्रयास इस दृष्टि से प्रेरित हैं।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, मेरी पीढ़ी के लाखों भारतीयों की तरह, हम एक दमनकारी शासन पर बांग्लादेश की जीत से उत्साहित थे और बांग्लादेश के लोगों के विश्वास और साहस की गहराई से प्रेरित थे।उन्होंने कहा, इतिहास हमेशा हमारी दोस्ती की इस अनूठी नींव का गवाह रहेगा, जिसको बांग्लादेश के झंडे को आजाद कराने वाले जनयुद्ध में रखी गई थी। उस युद्ध के दिग्गज लोग विश्वास और मित्रता की शक्ति के जीवंत प्रमाण हैं, जो पहाड़ों को भी हिला सकते हैं।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, बंगबंधु की इच्छा एक ऐसे बांग्लादेश की थी, जो न केवल राजनीतिक रूप से स्वतंत्र हो, बल्कि एक समान और समावेशी हो। दुख की बात है कि उनके जीवनकाल में उनकी इच्छा को साकार नहीं किया जा सका।
उन्होंने कहा, बंगबंधु और उनके परिवार के अधिकांश लोगों की बेरहमी से हत्या करने वाली मुक्ति विरोधी ताकतों को इस बात का एहसास नहीं था कि गोलियां और हिंसा उस विचार को बुझा नहीं सकतीं, जो लोगों का सपना बन चुकी हों। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, बंगबंधु की प्रेरक राजनीति, उनका स्पष्ट नैतिकता में विश्वास करने वाला दृष्टिकोण और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को न्याय दिलाने का उनका दृढ़ निश्चय वास्तव में गेम चेंजर साबित हुआ।
परिणामस्वरूप दुनिया ने 1971 में एक अनूठा सबक यह सीखा कि बहुसंख्यक लोगों की इच्छा को किसी भी बल, चाहे वह कितना भी क्रूर क्यों न हो, के जरिए गुलाम बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा, आज बंगबंधु के इन आदर्शों को प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश के मेहनती और उद्यमी लोगों द्वारा साकार किया जा रहा है।