चुस्त-दुरुस्त स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस अब हो गई है सुस्त और कामचोर

राम यादव
दो सदी पूर्व, 1829 में गठित लंदन की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस की चुस्ती-दुरुस्ती के बारे में कुछ दशक पहले तक एक से एक चटकीले किस्से सुनाए जाते थे। आज हालत यह है कि वह अपनी सुस्ती और कामचेरी के लिए प्रसिद्ध हो गई है।
 
जो कोई लंदन घूमने जाता है, इसे अनिवार्य समझता है कि वहां स्कॉटलैंड यार्ड के किसी पुलिस वाले के साथ एक फ़ोटो तो होना ही चाहिए। काली वर्दीधारी, 'बॉबी' कहलाने वाले ये पुलिसकर्मी, लंदन शहर की पहचान का उसी तरह अभिन्न अंग बन गए हैं, जिस तरह अपनी घड़ी के साथ लंदन-टॉवर है या शाही महल 'बकिंघम पैलेस' के वे पहरेदार हैं, जो रोएंदार ऊंची काली टोपी पहने रहते हैं। लेकिन, आज का स्कॉटलैंड यार्ड वही स्कॉटलैंड यार्ड नहीं रहा, 'जैक द रिपर' कहलाने वाले कुख्यात हत्यारे का पीछा करने से परम विख्यात हो गया था। 
 
स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस द्वारा अपराधों की जांच-पड़ताल और अपराधियों की धर-पकड़ का अनुपात इस बीच काफ़ी निराशाजनक हो गया है। उसे नस्ली भेदभाव, महिलाओं के प्रति दुराव और भ्रष्टाचारी स्वभाव का घुन लग गया है।

ब्रिटेन की मतसर्वेक्षण संस्था 'यूगॉव' (YouGov) ने 2019  के अपने सर्वेक्षण में पाया कि 77 प्रतिशत लोगों को पुलिस का काम ठीक-ठाक लगता है। किंतु, 2022 के नए सर्वेक्षण में आधे से भी अधिक लोगों ने कहा कि वे पुलिस विभाग के कामों से खुश नहीं हैं।

इस भारी गिरावट का एक मुख्य कारण लोगों ने मार्च, 2021 में लंदन की 33 वर्षीय सैरा एवरैर्ड का एक पुलिस कांस्टेबल द्वारा अपहरण, बलात्कार और अंत में उसकी हत्या को बताया। हत्यारा पुलिसकर्मी गोरा अंग्रेज़ था। आयु थी 48 वर्ष।
 
रक्षक पुलिस बनी भक्षक : रक्षक पुलिस के भक्षक बन जाने की इस घटना ने पूरे देश में बहस छेड़ दी कि ब्रिटेन में महिलाएं भला कितनी सुरक्षित हैं? पुलिस ही नहीं, सरकार के प्रति भी लोगों का विश्वास हिल गया। सैरा एवरैर्ड की हत्या करने वाले पुलिसकर्मी को हालांकि आजीवन जेल की सज़ा सुनाई गई है, किंतु लंदन के 30 हज़ार से अधिक पुलिसकर्मी अपने उच्च अधिकारियों के पूरी तरह नियंत्रण में अभी भी नहीं हैं। 
 
लोगों को जो शिकायतें स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को लेकर हैं, लगभग वही शिकायतें ब्रिटेन के पुलिस और दमकल विभागों के पर्यवेक्षक निकाय HMICFRS (हिज़ मैजेस्टीज़ इन्स्पेक्टोरेट ऑफ़ कांस्टैब्युलरी ऐन्ड फ़ायर ऐन्ड रेस्क्यू सर्विसेस) को भी हैं। इस निकाय ने सैकड़ों फ़ाइलें, रिपोर्टें और इंटरव्यू खंगालने के बाद, अक्टूबर 2022 में अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की।
 
रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि पुलिस विभाग में भर्ती ही ग़लत लोगों की होती है। भर्ती के समय लोगों के पिछले अपराधों की अनदेखी कर दी जाती है। ग़लत आचरण की शिकायतों के बावजूद अधिकारियों को पदोन्नति मिल जाती है। विभाग में नारी-विरोधी संस्कृति और यौनलिप्सा बहुत बढ़ गई है।
 
दहला देने वाले तथ्य : रिपोर्ट के अनुसार, इन प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति 'व्हाट्सऐप-ग्रुपों' जैसी टोलियों के रूप में होती है, जिनमें पुलिस अधिकारी महिलाओं के साथ बलात्कारों और उनके साथ घरेलू हिंसा पर चुटकुलों का आदान-प्रदान करते हैं। ब्रिटिश मीडिया में HMICFRS  की रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों को 'दहला देने वाला' बताया गया। शर्मनाक कांडों की अधिकता से जनमानास को कई बार लगने लगता है कि देश में क़ानून का राज अब नहीं रहा। 
 
ब्रिटेन के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में उसके इंग्लैंड और वेल्स प्रांतों के घरों में हर दिन जितनी सेंधमारियां हुईं,  उनमें से प्रति 500 मामलों में अपराधियों का कोई पता नहीं चल पाया। जिन मामलों में कुछ अता-पता चला भी, वैसे हर 35 मामलों में से केवल एक मामले में बात अदालती मुकदमे तक पहुंची। इसे पुलिस की कार्यकुशलता में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट बताया जा रहा है। ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, जो शिकायत करते हैं कि पुलिस कार-चोरी के मामलों की जांच-पड़ताल करने से जी चुराती है। 
 
सुयोग्य लोगों की कमी : इस स्थिति का मुख्य कारण पुलिस विभाग में सुयोग्य लोगों की कमी और सरकार द्वारा बजट में भारी कटौती को माना जाता है। ब्रिटेन के राष्ट्रीय लेखा परीक्षा कार्यालय (NAO) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि 2010 से 2018 के बीच, इंगलैंड और वेल्स के पुलिस विभागों के बजटों में 30 प्रतिशत की कटौती हुई। इस कटौती के परिणामस्वरूप कर्मचारी व अधिकारी वर्ग की कुल 44 हज़ार जगहें कट गईं। 
 
मार्क रॉली लंदन के नए मेट्रोपॉलिटन पुलिस प्रधान नियुक्त हुए हैं। लोग आशा कर रहे हैं कि वे ही अब कोई बेहतरी लाएंगे।  उन्होंने क्रेसिडा डिक की जगह ली है। लंदन के मेयर सादिक ख़ान ने अनेक शर्मनाक कांडों के कारण पिछली गर्मियों में श्रीमती डिक की छुट्टी कर दी।
 
पिछले सितंबर महीने में अपनी नियुक्ति के बाद नए पुलिस प्रमुख ने स्थिति में सुधार के लिए 100 दिनों का समय मांगा था। लेकिन, अब उन्हें भी लग रहा है कि वे अपने सामर्थ्य की सीमाओं से टकराने लगे हैं। अपनी विवशता का एक उदाहरण देते हुए हाल ही में उन्होंने बताया कि उन्हें 100 ऐसे पुलिस वालों को नौकरी से निकालने से परहेज़ करना पड़ रहा है, जो आम जनता के बीच जाने लायक नहीं हैं, लेकिन क़ानूनी अड़चनों के कारण जिन्हें निकाला भी नहीं जा सकता। 
 
ब्रिटेन ही नहीं, पश्चिमी जगत के वे सभी देश, जो अपनी पुलिस और क़ानून-व्यस्था पर बहुत गर्व करते थे, अपने यहां बढ़ते हुए बलात्कारों एवं अन्य घिनौने अपराधों पर अब शर्म करने के लिए विवश होते जा रहे हैं। कर्तव्यभाव और नैतिकता का पतन वास्तव में एक वैश्विक बीमारी बन चुका है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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