इन दिनों चारों ओर जैन संतों के सानिध्य में पर्युषण पर्व चल रहा है। आषाढ़ी पूर्णिमा से दीपावली तक चार महीने के चातुर्मास व्रत के दौरान जहाँ अनेक धार्मिक अनुष्ठानों से शारीरिक एवं आत्मिक शुद्धि के कार्यक्रम चलते हैं। वहीं इस अवधि के मध्य भादो शुक्ल पक्ष की पंचमी से अनंत चतुर्दशी तक पर्युषण पर्व में भक्ति साधना द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पापों को रग-रग से दूर करने का विशेष यह पर्व है।
दिगंबर जैन मंदिरों में संत-मुनिश्री के मार्गदर्शन में बड़ी संख्या में श्रद्धालू पयुर्षण पर्व साधना कर रहे हैं। जहाँ प्रातः काल पूजन के बाद मंगल प्रवचन चल रहे हैं तो सायंकाल अनेक प्रेरक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से युवा नई चेतना पा रहे हैं जिसमें सम्मेलन नृत्य-नाटिका आदि भी सम्मिलित हैं।
अपने प्रवचन संदेशों के माध्यम से जैन संत का कहना है कि साधना से व्यक्ति महापुरुषों की श्रेणी में पहुँच जाता है। अतः जीवन में साधना का महत्व सर्वोपरि है। साधना का फल समाज के प्रत्येक व्यक्ति एवं प्राणियों को मिलता है।
वस्तुतः पर्युषण का अर्थ होता है आत्मा में लगे हुए दूषण को जो दूर करे वह पर्युषण है। पर्व का अर्थ होता है जो पापों को रग-रग से विसर्जित कर दें। वर्ष भर में तीन बार पर्युषण पर्व आता है- चैत्र, भादौ और माघ मास में लेकिन हम लोग भादौ के महीने में विशेष रूप से इसे मनाते हैं।
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इस एक महीने में 32 व्रत पड़ते हैं। अत: इसे व्रतों का महीना भी कहते हैं। इसे पर्वराज भी कहते हैं जिस प्रकार मनुष्यों में राजा श्रेष्ठ है, पशुओं में शेर, फलों में आम, फूलों में गुलाब श्रेष्ठ है उसी प्रकार पर्वों में पर्युषण पर्व श्रेष्ठ है। जैसे बरसात के मौसम में सहज ही व्यक्ति के मन में त्याग, तपस्या, पूजन, अभिषेक आदि की भावना उत्पन्न होती है वैसे ही जैन दर्शन में पर्युषण पर्व का सर्वाधिक महत्व है।
मनुष्य कितना भी परमात्मा से दूर रहे, इन दस दिनों में वह परमात्मा के निकट पहुँचने की कोशिश करता है। वह सोचता है कि मैं अपनी आत्मा में जागरण करूँ, इसलिए इस पर्व को आत्म जागरण का पर्व, निज तत्व की अनुभूति का पर्व, सत्य की प्रतिति का पर्व, आत्म निरिक्षण का पर्व, स्वयं के निकट जाने का पर्व, कर्मों का नाश करने का पर्व और आत्मा में आत्मा का वास करने का महापर्व कहा जाता है।
वैसे भी ये भारत देश पर्वों का प्रधान देश है। भारतीय संस्कृति के प्राण पर्वों में जीना और उसमें लीन हो जाना पर्व की सार्थकता है। 26 सितंबर तक प्रतिदिन होने वाले कार्यक्रमों में दस धर्मों पर (उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आंकिचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य) पर विशेष प्रवचन होते हैं।
दोपहर को तत्वार्थ सूत्र जी की वाचना और शाम से गुरु भक्ति, आनंद की यात्रा, रात्रि में शेष सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। उसके बाद क्षमावाणी महापर्व मनाया जाएगा।