विप्रपत्नीकृत इस श्रीकृष्णस्तोत्र का पाठ पूजा के समय प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान् श्रीकृष्ण अपने साधक पर निःसन्देह प्रसन्न होते है। अभय को प्रदान करने वाला और सदैव प्रसन्नचित्त रखने में समर्थ यह स्तोत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
विप्रपत्न्य ऊचुः त्वं ब्रह्म परमं धाम निरीहो निरहंकृतिः। निर्गुणश्च निराकारः साकारः सगुणः स्वयम्॥1॥ साक्षिरूपश्च निर्लिप्तः परमात्मा निराकृतिः। प्रकृतिः पुरुषस्त्वं च कारणं च तयोः परम्॥2॥ सृष्टिस्थित्यंत विषये ये च देवास्त्रयः स्मृताः। ते त्वदंशाः सर्वबीजा ब्रह्म-विष्णु-महेश्वराः॥3॥