करवा चौथ : सुहागनों का पावन त्योहार

पं. अशोक पँवार 'मयंक'

शनिवार, 11 अक्टूबर 2014 (10:04 IST)
करवा चौथ शनिवार, 11 अक्टूबर 2014 को है। इस दिन चन्द्रोदय रात्रि 8. 21 को है। करवा चौथ व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को किया जाता है। विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का कारक होता है। 
 
विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की कामना करके चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत को पूर्ण करती हैं। इस व्रत में रात्रि बेला में शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा के चित्रों एवं सुहाग की वस्तुओं की पूजा का विधान है। इस दिन निर्जला व्रत रखकर चंद्र दर्शन और अर्घ्य अर्पण कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। पीली मिट्टी की गौरी भी बनाई जाती है।
 

 
कुछ महिलाएं परस्पर चीनी या मिट्टी के करवे का आदान-प्रदान भी करती हैं। लोकाचार में कई महिलाएं काली चिकनी मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चाशनी बनाकर डाल देती हैं अथवा आटे को घी में सेंककर चीनी मिलाकर लड्डू आदि बनाती हैं। पूडी-पुआ और विभिन्न प्रकार के पकवान भी इस दिन बनाए जाते हैं।
 
नवविवाहिताएं विवाह के पहले वर्ष से ही यह व्रत प्रारंभ करती हैं। चौथ का व्रत चौथ से ही प्रारंभ कराया जाता है। इसके बाद ही अन्य महीनों के व्रत करने की परंपरा है। नैवेद्य (भोग) में से कुछ पकवान ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान करें तथा अपनी सासु मां को 13 लड्डू, एक लोटा, एक वस्त्र, कुछ पैसे रखकर एक करवा चरण छूकर दे दें।
 
वास्तव में करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन या प्यार का प्रतीक है, जो पति-पत्नी के बीच होता है। भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर माना गया है। यह व्रत पति-पत्नी दोनों के लिए नव प्रणय निवेदन और एक-दूसरे के प्रति हर्ष, प्रसन्नता, अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है। 
 
इस दिन महिलाएं नववधू की भांति पूर्ण श्रृंगार कर सुहागिन-स्वरूप में रमण करती हुईं चंद्रमा से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं। महिलाएं श्रृंगार करके ईश्वर के समक्ष व्रत के बाद यह प्रण भी करती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी तथा धर्म के मार्ग का अनुसरण करती हुई धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करेंगी।
 
कुंआरी कन्याएं इस दिन गौरादेवी का पूजन करती हैं। शिव-पार्वती के पूजन का विधान इसलिए भी है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया, वैसा ही सौभाग्य उन्हें भी प्राप्त हो। 

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