चटपटी बाल कविता : पूंछ मूंछ से बोली

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
बहुत दिनों के बाद ठसक कर,
पूंछ मूंछ से बोली।
शर्म नहीं आती करते हो,
मुझसे रोज ठिठोली।
 
मुंह को पीछे मोड़-मोड़कर,
मूंछें दिखलाते हो।
मैं हूं कोमल पूंछ,
मूंछ क्यों मुझसे टकराते हो।
 
मेरी सुंदर कोमल काया,
इन्हें नहीं सह पाती।
मूंछ तुम्हारी बहुत नुकीली,
कांटे सी चुभ जाती।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

ALSO READ: बच्चों की मजेदार कविता : मुझे कहानी पढ़ना है

ALSO READ: फनी कविता : सबसे छोटा होना

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख