बाल कविता : गुड़िया का पेट...

मेरी गुड़िया का छोटा सा,
चिड़ियों जैसा पेट।
 
रोटी, कभी एक खाती है,
कभी-कभी तो आधी। 
दादी जब देती तो कहती,
ना-ना अब न दादी।
साफ मना कर देती सबको, 
बिना ही लॉग-लपेट। 
 
कहती, खाने को ना जीती,
खाती हूं जीने को।
उसकी दीदी ने बोला है,
गुस्सा, गम पीने को।
उठती सुबह पांच पर, 
जाती रात दस बजे लेट।
 
नहीं किसी झगड़े-झंझट में,
पाठ नियम से पढ़ती।
कर्म करो तो फल मिलता है,
कहकर खूब चहकती।
कहती चिड़िया रामलला की,
रामलाल के खेत।

साभार - देवपुत्र 
 

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