1. पहला कारण : इसरो के अनुसार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर तापमान माइनस 230 डिग्री तक चला जाता है और तब कड़ाके की ठंड रहती है। ऐसे में चंद्रयान उतरकर काम करना कठिन होता। परंतु 14 दिन तक जब दक्षिणी ध्रुव पर रोशनी रहती है तब यह संभव हो सकता था। इन्हीं 14 दिनों में ही 23 तारीख भी एक ऐसा ही दिन था। उल्लेखनीय है कि चांद पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक दिन रहता है।
3. तीसरा कारण : चंद्रयान-3 के उपकरणों का जीवन केवल एक चंद्र दिवस का ही होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण होते हैं और उन्हें चालू रहने के लिए सूर्य की रोशनी की जरूरत होती है। ऐसे में हमारे चंद्रयान के सौर पैनल को 5 सितंबर तक ऊर्जा मिलती रहेगी जिसके चलते वह अगले 14 दिनों तक अंधेरे में रहने के बाद में संचालित होता रहेगा। फिर जब 14 दिनों के बाद पुन: सूर्योदय होगा तो वह फिर चार्ज हो जाएगा।
4. चौथा कारण : रात के समय चंद्रमा का तापमान शून्य से नीचे रहता है। ऐसे कम तापमान पर उपकरण जम सकते थे और ये काम करना भी बंद कर सकते थे। इसरो ने सभी बातों का अवलोकन करके 23 अगस्त को लैंड कराना तय किया जबकि वहां सूर्सोदय होना था। इसके बाद ही चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए अपेक्षाकृत एक समतल क्षेत्र को भी चुनाना था जो कि उजाले में भी संभाव हो सकता था।
5. पांचवां कारण : चंद्रयान-3 का लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरने के बाद अपने मिशन का अंजाम देने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा, क्योंकि 23 अगस्त से 5 सितंबर के बीच दक्षिणी धूप निकलेगी, जिसकी मदद से चंद्रयान का रोवर चार्ज हो सकेगा और अपने मिशन को अंजाम देगा।