असल में चंद्र कोई ग्रह नहीं बल्कि धरती का उपग्रह माना गया है।
चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। 15 दिन तक इसकी कलाएं क्षीण होती हैं तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। इन कलाओं के कारण ही धरती पर उथल-पुथल मचती रहती है।
पुराणों के अनुसार देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था। चंद्रमा के अधिदेवता अप् और प्रत्यधि देवता उमादेवी हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है।
यदि कुंडली में चंद्र की स्थिति खराब है तो लाल किताब के अनुसार उसे सुधारा जा सकता है। जानिए चंद्र के अशुभ और शुभ प्रभाव के लक्षण और अशुभ के उपाय।
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चंद्र के अशुभ होने की निशानी :
* दूध देने वाला जानवर मर जाए। * मानसिक रोगों का कारण भी चंद्र को माना गया है। * चंद्र के अशुभ होने की स्थिति में महसूस करने की क्षमता क्षीण हो जाती है। * राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चंद्र पर पड़ने से चंद्र अशुभ हो जाता है। * यदि घोड़ा पाल रखा हो तो उसकी मृत्यु भी तय है, किंतु आमतौर पर अब लोगों के यहां ये जानवर नहीं होते। पुराने समय में होते थे। * माता का बीमार होना या घर के जलस्रोतों का सूख जाना भी चंद्र के अशुभ होने की निशानी है।
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चंद्र के शुभ होने के लक्षण :
* मानसिक सुख और शांति देता है। * शुभ चंद्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। * भूमि और भवन के मालिक चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं। * जातक यदि शनि के मंदे कार्य करता है तो चंद्र अपना शुभ फल देना बंद कर देता है।
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चंद्र को शुभ करने के उपाय :
* प्रतिदिन माता के पैर छूना चाहिए। * शिव की भक्ति और सोमवार का व्रत करना चाहिए। * पानी या दूध को साफ पात्र में सिरहाने रखकर सोएं और सुबह कीकर के वृक्ष की जड़ में डाल दें। * चावल, सफेद वस्त्र, शंख, वंशपात्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, बैल, दही और मोती आदि का दान करना चाहिए या नहीं यह किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछकर करें।