पहला कारण : सरकारी बैंकों की हालत इसलिए खराब हो रही है क्योंकि कस्टमर बैंकों में जाने से घबराते हैं। जैसे ही लोग बैंक जाते हैं उन्हें सर्विस संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, फिजूल के चक्कर लगवाए जाते हैं।
दूसरा कारण : उनसे कहा जाता है SIP करवा लो, पॉलिसी ले लो, म्यूचुअल फंड ले लो, NPF में डाल दो, PPF में निवेश कर दो, बिना बोले उनका 12 रुपए वाला, 330 रुपए वाला इंश्योरेंस का पैसा काट लिया जाता है। इन सब बातों के कारण व्यक्ति बैंक में आने से घबराता है।
चौथा कारण : बैंकों में व्यक्ति जाए तो उसके चेहरे पर घबराहट नहीं होना चाहिए। उसके मन में यह ख्याल नहीं आना चाहिए कि आज मुझे यह क्या प्रोडक्ट बेच देंगे। अगर मैं एक कस्टमर हूं और मेरे पास 50 हजार रुपए जिसकी मैं एफडी करवाना चाहता हूं तो वहां कहा जाता है कि आप एफडी क्यों करवा रहे हो? आपको कितना रिटर्न मिलेगा 6 प्रतिशत, आप म्यूचुअल फंड में निवेश करिए इसमें आपको ज्यादा रिटर्न मिलेगा। यह रिटर्न 10 से 12 प्रतिशत तक हो सकता है। उनसे कहा जाए तो लिखित में दे दो पर वह नहीं दे सकते क्योंकि यह बैंकों के अधीन नहीं है।
पांचवां कारण : बैंक का मुख्य काम है लोगों से पैसा लेना और लोगों में बांटना। बैंकों में पैसा आ भी रहा है पर वह म्यूचुअल फंडों, इंश्योरेंस कंपनियों और अन्य के पास चला जाता है। बैंकों के पास वह पैसा नहीं टिकता इसलिए वह घाटे में जा रहे हैं। इस वजह से कर्मचारियों पर काम का दबाव बढ़ता जा रहा है और इसका असर उनके व्यवहार पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है।