न गेंदबाजी में धार थी, न बल्लेबाजी में दम

-सीमान्सुवी

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दिनोचुटकुलचर्चमेै- 'भारतीय ‍टेस्ट टीम के कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी ने जन लोकपाल बिल को लेकर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे को एक संदेश भेजकशुक्रिया अदा किया कि उनकी वजह से पूरे देश का ध्यान क्रिकेट के बजादूसरी तरफ (अन्नअनशन) है वरना हमारी हालत काफी खराब हो जाती'

लॉर्ड्‍स, फिर ट्रेंटब्रिज, इसके बाद एजबेस्टन और अब ओवल के मैदान पर जिस तरह अंग्रेज क्रिकेटरों ने भारतीय बल्लेबाजी, गेंदबाजी के परखच्चे उड़ाए हैं, उसे क्रिकेट बिरादरी जल्दी नहीं भुला पाएगी। लॉर्ड्‍स की पहली हार के बाद तो ऐसा लगा कि भारतीय टीम इस हार से सबक लेकर आगे संभल जाएगी, जैसा कि पूर्व में वह करती रही है, लेकिन एक के बाद एक शर्मनाक हार से तय हो गया कि मेहमान टीम हार के अंतर को और बढ़ाती गई।

17 अगस्त को कप्तान धोनी का बयान आया था कि बल्लेबाज आग उगलेंगे, तभी इज्जत बचेगी, लेकिन 22 अगस्त को समाप्त हुए चौथे टेस्ट मैच का परिणाम सबके सामने है, जब इंग्लैंड ने 'व्हाइटवॉश' करते हुए (चार टेस्ट 4-0) सिरीज पर कब्जा कर लिया।

टेस्ट क्रिकेट में इंग्लैंड न तो इतना रुस्तम देश है, जिसे हराया नहीं जा सकता था और न ही उसका ऐसा कोई रुतबा था, जिसे कोई धूल न चटाई जा सके। दरअसल धोनी एंड कंपनी हार की मानसिकता के साथ ही मुकाबले में उतरी थी। न तो गेंदबाजी में पैनापन था और न बल्लेबाजों में इतना दमखम था ‍कि वे बड़ा स्कोर बनाते।

ले-देकर राहुल द्रविड़ ही ऐसे बल्लेबाज रहे, जिन्होंने पहली पारी में तो शतक जमाया, लेकिन दूसरी पारी में उनका खौफ इतना ज्यादा था ‍कि मैदानी अंपायरों के नाटआउट करार दिए जाने के बाद भी तीसरे अंपायर स्टीव डेविस ने उन्हें 'टांग' दिया। इस अन्याय के खिलाफ आवाज अंग्रेजी में कमेंटरी कर रही पूरी टीम ने उठाई।

मैच का आकर्षण यही था कि पांचवें दिन भारत पारी की हार को टाल पाता है या नहीं, लेकिन सचिन तेंडुलकर (91) और अमित मिश्रा (84 रन) ने चौथे विकेट के लिए 144 रनों की भागीदारी निभाकर कुछ आस जगाई थी, लेकिन जब 17 रन के भीतर ही 6 बल्लेबाज ड्रेसिंग रूम की शोभा बढ़ा रहे हों, सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि भारतीय बल्लेबाजी कितनी विवश और असहाय है।

क्रिकेट में दखल रखने वालों को चौथे टेस्ट मैच के परिणाम पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ, उनकी दिलचस्पी इतनी भर रही थी कि सचिन 90 के पार ‍‍निकलकर 'महाशतक' पूरा कर पाते हैं या नहीं। और उन्हें 91 रनों के निजी स्कोर पर गलत तरीके से पगबाधा आउट करार दिया गया। यहीं से तय हो गया था कि भारत को अब पारी की हार से भगवान भी नहीं बचा सकता।

पूरी सिरीज में भारत के पास कोई प्लानिंग नहीं थी। एक स्कूली टीम की तर्ज पर वे चारों टेस्ट खेले और हमेशा झुके हुए कंधे लिए बाहर आए। स्विंग गेंदबाजी के साथ ही इंग्लैंड के उछालभरे विकेट भारतीय बल्लेबाजों के लिए अबूझ पहेली बने रहे। बीमार टीम से किसी तरह के चमत्कार की उम्मीद करना बेमानी था। टीम में कोई बहरा हो रहा है तो कोई टखना तुड़वा रहा है। किसी ने अपनी बीमारी छिपाई तो किसी ने लंबे बाल कटवाए।

क्रिकेट कोई जादूगरी का खेल नहीं है। इंग्लैंड ने खेल के हर क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता साबित की और पूरी शान के साथ सिरीज पर कब्जा जमाया। भारतीय टीम ने बांग्लादेश से भी कहीं ज्यादा खराब प्रदर्शन किया। हर हार कोई न कोई सबक देती है, लेकिन लगता नहीं है कि टीम इंडिया ने इतनी बुरी हार के बाद भी कोई सबक लिया होगा।

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