88वें साल में रणजी ट्रॉफी के 5000 मैच हुए पूरे, BCCI ने किया ट्वीट

Webdunia
गुरुवार, 3 मार्च 2022 (14:15 IST)
चेन्नई: भारतीय घरेलू क्रिकेट के इतिहास में गुरुवार को एक ऐतिहासिक क्षण आया, जब रेलवे और जम्मू-कश्मीर की टीमें रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट का 5000वां मैच खेलने के लिए मैदान पर उतरीं। दोनों टीमें आज यहां चेन्नई के केमप्लास्ट ग्राउंड में एलीट ग्रुप सी मैच खेल रही हैं।

टूर्नामेंट का नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर रंजीत सिंह के नाम पर रखा गया है। रणजी ट्रॉफी जुलाई 1934 में चेन्नई के चेपाैक मैदान पर मद्रास और मैसूर के बीच चार नवंबर को आयोजित पहले मैच के साथ शुरू की गई थी।साल 2021 में पहली बार भारतीय क्रिकेट के इतिहास में उसकी प्रमुख राष्ट्रीय प्रतियोगिता रणजी ट्रॉफी का पिछले 87 वर्षों में पहली बार आयोजन नहीं हुआ था।

भारतीय क्रिकेट की रीढ़ की हड्डी है रणजी

भारतीय क्रिकेट टीम में प्रवेश करने के कई रास्ते हैं और ये रास्ते घरलु क्रिकेट में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद तय होते हैं। घरेलु क्रिकेट में सबसे प्रमुख हैं रणजी ट्रॉफी। टीम इंडिया के कई सूरमा खिलाड़ी इसी मार्ग से टीम में आए हैं। इन दिनों रणजी ट्रॉफी अपने शबाब पर हैं। क्या आप जानते हैं कि इस ट्रॉफी का कौनसा साल चल रहा है? आपको बता दें कि यह रणजी ट्रॉफी का 88वां साल है। भारतीय क्रिकेट टीम ने अंग्रेजों के वक्त 1933 में टेस्ट क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। टीम के खिलाड़ी अपने हुनर को और निखारे लिहाजा रणजीत सिंह विभाजी जडेजा के नाम से ही 'रणजी' ट्रॉफी की शुरुआत हुई थी। 
 
 
भारतीय क्रिकेट के इतिहास में रणजीत सिंह देश के ऐसे पहले ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें इंग्लैंड की क्रिकेट टीम में खेलने का मौका मिला था। उस समय पटियाला महाराज ने इंग्लैंड के लिए 15 टेस्ट मैचों में 45 के औसत से 989 रन बनाए थे। 
 
यही नहीं, रणजीत सिंह का बल्ला प्रथम श्रेणी क्रिकेट में खूब चला और उन्होंने 72 शतक के अलावा 109 अर्धशतक भी जड़े। उन्होंने 300 से ज्यादा प्रथम श्रेणी मैच खेले, जिसमें 24 हजार 692 रन बनाए।

जीवन परिचय : रणजीत सिंह विभाजी जडेजा का जन्म 10 सितम्बर 1872 सदोदर, काठियावाड़ में हुआ। 1907 में वे नवानगर में महाराजा जाम साहेब बने। उनका शासन 1933 तक चला। रणजीत सिंह की 10-11 वर्ष की उम्र से ही क्रिकेट में रुची थी। 1883 में पहली बार स्कूल ने क्रिकेट में क्रिकेट खेला। जब वे इंग्लैंड गए, उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया। 1884 में वे टीम के कप्तान बने और 1888 तक रहे।

1896 में खेल के उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण उन्हें क्रिकेट की बाइबिल विस्डन ने 'विस्डन क्रिकेटर ऑफ द ईयर' वर्ष 1897 के लिए नामांकित किया था। 1915 में शिकार के वक्त जख्मी हो गए और दायीं आंख की रोशनी खो बैठे थे। रणजीत सिंह का निधन 60 बरस की उम्र में 2 अप्रैल 1933 को हो गया। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने 1934 से ही उनके नाम पर रणजी ट्रॉफी (रंजी ट्रॉफी) की शुरुआत की।

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