टीम इंडिया के लिए बेंच स्ट्रेंथ का सिरदर्द

मंगलवार, 23 अगस्त 2011 (20:09 IST)
इंग्लैंड के हाथों टेस्ट श्रृंखला में मिली शर्मनाक हार से साबित हो गया कि भारतीय टीम के पास स्तरीय रिजर्व खिलाड़ी नहीं है। सबसे अहम बात यह है कि इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति है कि नाजुक क्षणों में किस पर भरोसा किया जाए।

कृष्णमाचारी श्रीकांत की अगुआई वाली राष्ट्रीय चयन समिति क्या थुलथुल होते जा रहे रुद्रप्रताप सिंह पर भरोसा करे या खराब फॉर्म में चल रहे सुरेश रैना को ही छठे नंबर पर उतारने पर अडिग रहे।

क्रिकेट प्रशासन या तो अपनी सरजमीं पर प्रदर्शन पर ही भरोसा करे या भविष्य को ध्यान में रखकर विदेशी पिचों पर प्रदर्शन के लिए नए खिलाड़ियों को तैयार करें।

भारतीय टीम 4-0 से सफाए के लिए तैयार नहीं थी और ना ही उस शर्मिंदगी के लिए जो पूरी दुनिया के सामने आज उसे झेलनी पड़ रही है।

भारत के शीर्ष पांच बल्लेबाजों का टेस्ट क्रिकेट में औसत 50 से अधिक है। इसके बावजूद टीम आठ पारियों में सिर्फ एक बार 300 से अधिक रन बना सकी। गेंदबाज रन देते रहे और अधिकांश पारियों में इंग्लैंड ने 500 के करीब रन बनाए।

फील्डिंग के बारे में तो जितना कम कहा जाये, बेहतर होगा। भारत 2020 तक फ्यूचर टूर कार्यक्रम से बंधा हुआ है लिहाजा टेस्ट क्रिकेट तो खेलना ही है। अच्छी टेस्ट टीम का आधार अच्छे बल्लेबाज, अच्छे गेंदबाज और चुस्त क्षेत्ररक्षण ही होता है।

इसके लिए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का पूल होना जरूरी है, जिसमें खिलाड़ियों को रोटेट किया जाता रहे। ऐसे ट्रांजिशन रातोंरात नहीं होते। अगले कुछ साल में भारतीय क्रिकेट भी संक्रमण के दौर से गुजरने वाला है।

इस श्रृंखला में हुई दुर्गति के लिये भारतीय गेंदबाज और बल्लेबाज दोनों दोषी हैं। भारत के मजबूत बल्लेबाजी क्रम को एक दशक में पहली बार प्रतिकूल हालात में दमदार गेंदबाजी आक्रमण का सामना करना पड़ा है। इससे पहले 1999-2000 में ग्लेन मैग्राथ, शेन वॉर्न और ब्रेट ली के शीर्ष फॉर्म में रहते ऑस्ट्रेलिया ने उसे 3-0 से हराया था।

भारत के शीर्ष बल्लेबाजों का करियर अब ढलान की ओर है। उनके उम्रदराज शरीर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का दबाव झेलते हुए तेजी से रिकवरी नहीं कर पा रहे।

वहीं रैना जैसे युवा बल्लेबाज स्पिनरों के खिलाफ भी रन नहीं बना सके। कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को अपने बेहतरीन टेस्ट करियर में पहली बार अग्निपरीक्षा देनी पड़ी। बल्लेबाजी हो या कप्तानी, कुछ भी अनुकूल नहीं रहा।

धोनी को कभी गेंदबाजों को सलाह देते नहीं देखा गया। यह काम सचिन तेंडुलकर ही कर रहे थे। यह हार इसलिए भी और आहत करने वाली है क्योंकि टेस्ट क्रिकेट ही असली क्रिकेट है। एक क्रिकेटर का सम्मान टेस्ट क्रिकेट में उसके प्रदर्शन के आधार पर ही होता है। (भाषा)

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