डच खोजी पत्रकारों ने कहा है कि श्रीलंका में विदेशी जोड़ों द्वारा गोद लिए कम से कम 11,000 बच्चे या तो अपने माता-पिता से खरीदे गए या चोरी किए गए थे। श्रीलंका और नीदरलैंड के अधिकारियों ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है।
श्रीलंका की सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि 1980 के दशक में श्रीलंका में विदेशियों द्वारा गोद लिए गए तकरीबन 11,000 बच्चे उनके माता पिता से खरीदे या चुराए गए थे।
स्वास्थ्य मंत्री राजथा सेनारत्ने ने डच डॉक्यूमेंट्री की सीरीज में कहा कि इस मामले में सरकार एक जांच शुरू कर रही है और परिवार अपने रिश्तेदारों को खोज सकें, इसके लिए एक डीएनए डाटाबेस तैयार किया जाएगा। उन्होंने कहा, "सरकार इस मामले को बहुत गंभीरता से ले रही है। यह परिवारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है।" यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म हाल ही में नीदरलैंड्स में प्रसारित की गयी है।
इस फिल्म के मुताबिक इन "बेबी फार्म" में न सिर्फ महिलाओं को जबरन गर्भधारण करवाया जाता था, बल्कि अस्पतालों से बच्चों को चुराया भी जाता था। फिल्म में एक मां ने बताया है कि उससे कहा गया था कि जन्म लेने के कुछ ही समय बाद उसके बच्चे की मौत हो गयी थी। हालांकि, उनकी एक रिश्तेदार ने डॉक्टर को अस्पताल से बच्चे को ले जाते हुए देखा था।
आपराधिक गिरोह कई बार "नकली मांए" तैयार करते थे, ताकि गोद लेने वाले विदेशी जोड़ों के सामने वे कह सकें कि वह उनका बच्चा है। गोद लेने वाले लोगों में से ज्यादातर लोग नीदरलैंड्स के हैं। इसके अलावा ब्रिटेन, स्वीडन और जर्मनी के लोग भी श्रीलंका से बच्चों को गोद लेते रहे हैं। कई नकली माओं ने बताया कि उन्हें अस्पतालों के कर्मचारी पैसा देते थे।
1980 के दशक में श्रीलंका में इस तरह के अपराध बहुत बड़े स्तर पर थे। लेकिन 1987 में एक बेबी फार्म पर छापा पड़ा जहां 22 महिलाएं और 20 बच्चे जेल जैसी स्थिति में मिले। उस मामले के बाद देश में बच्चों को गोद लेने की संख्या में काफी कमी आयी थी। नीदरलैंड्स के रक्षा और न्याय मंत्री दिजोकॉफ ने कहा है कि वह डीएनए डेटाबेस और अन्य संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जल्द ही श्रीलंका के अधिकारियों से मिलेंगे।