शादी में आरा छपरा हिलाने वाली लड़कियां कहां से आती हैं?

Webdunia
शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019 (17:28 IST)
बारात के आगे चलते ट्रैक्टर पर बने अस्थायी मंच पर थिरकती लड़कियों के साथ नाच कर बारातियों का जोश उफान मारने लगता है। उस वक्त शायद ही किसी का ध्यान इस बात पर जाता हो कि ये लड़कियां धोखे से तस्करी कर लाई जाती हैं।
 
 
बिहार में बेतिया की गिरिजा देवी की जब बेटी की शादी थी तो उन्होंने तय कर लिया कि शादी में ऑर्केस्ट्रा नहीं आएगा। परंपराओं के खिलाफ जा कर गिरिजा देवी के परिवार ने फैसला किया कि वो अपने मेहमानों का स्वागत नाच गाना से नहीं करेंगी। दूल्हे के परिवार वालों ने बड़ा विरोध किया लेकिन गिरिजा देवी अपने निश्चय पर अटल रहीं। गिरिजा देवी को पता चला था कि बिहार में शादियों के मौके पर ऑर्केस्ट्रा में नाचने के लिए बुलाई गई लड़कियां तस्करी के जरिए लाई जाती हैं।
 
 
गिरिजा देवी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "मैं यह सुन कर हैरान रह गई कि इन लड़कियों को धोखे से यहां लाया जाता है। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी कि जिस वक्त मेरी बेटी की शादी हो उसी वक्त किसी और की बेटी को नाचने और नशे में धुत मेहमानों का स्वागत करने पर मजबूर किया जाए।"
 
 
बिहार के पश्चिम चंपारण इलाके में रहने वाले कई परिवारों का कहना है कि उन्होंने शादी ब्याह के मौके पर कलाकारों को पैसे देना बंद कर दिया है। उन्हें उम्मीद है कि इससे इन लड़कियों की मांग कम होगी और फिर इन्हें इनके घरों से तस्करी कर नहीं लाया जाएगा। आमतौर पर ये लड़कियां पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और नेपाल से लाई जाती हैं।
 
 
पुलिस और इन लड़कियों की भलाई के लिए अभियान चलाने वालों का कहना है कि इस प्रचलन को पूरी तरह से रोक पाना मुश्किल है। तस्कर महज 12 साल की लड़कियों को भी अपना शिकार बना लेते हैं। इन लड़कियों के परिवारों से कहा जाता है कि उन्हें नाच सिखाएंगे और फिर टीवी या थियेटर में काम दिला कर अच्छा पैसा और नाम कमवाएंगे। इसी लालच में घरवाले अपनी बेटियों को इनके साथ भेज देते हैं। नेपाल के साथ भारत की लंबी खुली सीमा इस काम में और मददगार होती है। इन लड़कियों को डांस ग्रुपों को बेच दिया जाता है।
 
 
फकीराना सिस्टर्स सोसायटी लड़कियों को गुलामी के चंगुल से आजाद कराने के लिए काम करती हैं। संगठन के प्रोग्राम मैनेजर शिशिर मिषाएल कहते हैं, "वे लड़कियों को झुंड में ले कर आते हैं और उन्हें इलाके में चल रहे करीब 250 ऑर्केस्ट्रा ग्रुपों में किसी को बेच दिया जाता है। स्थानीय तौर पर जिसे ऑर्केस्ट्रा कहा जाता है उनके पास बस नाच गाने का ही इंतजाम होता है। वास्तव में वो किसी कोठे के फ्रंट ऑफिस की तरह भी काम करते हैं।"
 
 
शादी ब्याह के मौके पर इनकी बड़ी मांग रहती है, हालांकि इनके कार्यक्रम के दौरान अकसर लड़ाई, झगड़ा, गोलीबारी और कई बार लोगों की मौत तक हो जाती है। पुलिस इन पर छिटपुट रोक भी लगाती है लेकिन उसका कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा। बेतिया शहर के पुलिस सुपरिटेंडेंट जयंत कांत कहते हैं ऑर्केस्ट्रा में मनोरंजन और शोषण के बीच एक महीन रेखा है। जयंत कांत के मुताबिक, "वे खुशी के मौके पर परफॉर्म करती हैं ऐसे में पुलिस के लिए इसमें दखल देना या उन्हें बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है, हालांकि हमारी नजरें उन पर रहती हैं।"
 
 
चंद्रिका राम पांच साल तक अपने गांव और कोलकाता के बीच घूमते रहे। वो लड़कियों को ला कर बेतिया के डांस ग्रुपों को बेच देते। चंद्रिका राम के मुताबिक इसमें "बहुत फायदा था।" राम लड़कियों के परिवारवालों या फिर दलाल को 10 हजार रुपये देते थे और फिर उन्हें डांस ग्रुपों को 10 गुनी कीमत पर बेच देते। चंद्रिका राम कहते हैं, "मैं नहीं सोचता था कि 10 गुनी कीमत पर बेचने के बाद उन लड़कियों का क्या होता है। यह विशुद्ध लालच था।" चंद्रिका राम अब मानव तस्करी के मुखर विरोधी हैं। उनकी अपनी भी एक बेटी है।
 
 
राम का कहना है कि उन्होंने बॉलीवुड जैसी शादियों के सपने दिखाये जो एक दो दशक पहले इलाके में बहुत लोकप्रिय हो गए। राम के मुताबिक कम उम्र की लड़कियों को "ज्यादा फायदेमंद" माना जाता था क्योंकि उन्हें आसानी से सिखाया और अपने हिसाब से ढाला जा सकता था। राम का यह भी कहना है कि राज्य की सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत की वजह से भी मां बाप अपने बच्चों को नाच गाना सीखने भेजना चाहते हैं।
 
 
तस्करी के खिलाफ काम करने वाले संगठन गोरानबोस ग्राम विकास केंद्र के संयोजक सुभाश्री रापतान बताते हैं, "तस्कर लोगों की इन्हीं आकांक्षाओं को भुनाते हैं...उन्हें थियेटर या सिनेमा जाने के सपने दिखाते हैं...लड़कियां अपने शौक से कमाई करेंगी ऐसी बातें करते हैं।"
 
 
लीला अपना असली नाम नहीं बताती। वह याद करती हैं कि कैसे उसे नशीली दवाएं दे कर उसका अपहरण किया गया और फिर एक डांस ग्रुप ने एक साल तक उसे बंधक की तरह रखा। 16 साल की लीला ने पश्चिम बंगाल के 24 परगना में अपने घर से फोन पर बताया। "मैं उनकी भाषा नहीं समझती थी, या फिर कि वो मुझे चाहते क्या थे।" लीला बताती है कि कैसे परफॉर्मेंस में गलती करने पर उसकी पिटाई होती थी। लीला ने बताया, "मैं घर जाना चाहती थी और किसी तरह अपने भाई को फोन कर दिया जिसने पुलिस को सारी जानकारी दी। मैं वापस आ गई लेकिन कई लोग हैं जो हमेशा के लिए बंधक रह जाते हैं।"
 
 
इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एजुकेशन एंड एक्शन एक समाजसेवी संगठन है जो मोतिहारी में लोगों के साथ मिल कर काम करता है। संगठन ने पिछले साल 50 लड़कियों को डांस ग्रुपों से आजाद कराया। इसके पिछले साल से यह संख्या करीब दर्जन भर ज्यादा है। संगठन के निदेशक दिग्विजय कुमार कहते हैं, "बीते कुछ सालों में इन नाच गानों से कला लुप्त हो गई है। मौज करने वाले लोग नशे में होते हैं और गाने की फरमाइश और लड़कियों को छूने को लेकर उनमें आपस में झड़प हो जाती है।" कुमार ने बताया, "फरवरी में ऑर्केस्ट्रा की एक लड़की को गोली मार दी गई, पिछले साल एक दूल्हे को ही मार दिया गया। लड़कियां कम उम्र की हैं और डर जाती हैं, लेकिन उनके पास विरोध करने का कोई जरिया नहीं है।"
 
 
पश्चिमी चंपारण में राज्य सरकार के अधिकारी इन ग्रुपों पर नजर रख रहे हैं। उन्होंने तनाव में घिरने वाले बच्चों के लिए एक हेल्पलाइन भी शुरू की है, वे लोगों को जागरुक करने के लिए अभियान चला रहे हैं और ऑर्केस्ट्रा के मालिकों से मिल कर उन्हें तस्करी की लड़कियों के साथ शो करने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी देते हैं। पश्चिमी चंपारण के प्रशासनिक प्रमुख रामचंद्र देवरे कहते हैं, "मैं जब जूनियर अधिकारी था तो ऑर्केस्ट्रा बंद करवा देता था लेकिन लोग मेरे ही खिलाफ हो जाते। लोगों ने इस अपराध को स्वीकार कर लिया है।"
 
 
इस साल मार्च में जब शादियों का मौसम खत्म हुआ तो 11 गांव के लोगों ने "ऑर्केस्ट्रा मुक्त शादियों" का जश्न मनाया। बिन तोली गांव की सतर्कता कमेटी के सदस्य धोंदा मुखिया कहते हैं, "जब हमें पता चला कि ऑर्केस्ट्रा की लड़कियां तस्करी से लाई जाती हैं तो हम तभी जान गए कि इसे रोकना होगा।" यह कमेटी बाल विवाह और मानव तस्करी को रोकने के लिए काम करती है। ये लोग शादियों में हुई मौत की घटनाओं की कहानियां, ऑर्केस्ट्रा का खर्च बता कर शादी कर रहे परिवारों को फिल्म दिखाने जैसे विकल्प सुझाते हैं। मुखिया ने बताया कि पहले लोगों ने बहुत विरोध किया लेकिन धीरे धीरे बात उनकी समझ में आ रही है।
 
 
हालांकि इतने भर से ही काम पूरा नहीं होगा। दीपा जैसी लड़कियों के लिए आगे का रास्ता बंद है। वो 11 साल की थीं तब उन्हें इस पेशे में डाल दिया गया। दशक भर का समय बिताने के बाद अब वो कहां जाएं उनकी समझ में नहीं आता। दीपा कहती हैं, "जब मुझे मेरे घर से लाया गया तो मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। अब मैं अपने घर भी वापस नहीं जा सकती। मैं ऑर्केस्ट्रा की कर्जदार हूं और मुझे नहीं पता कि यह पैसा कैसे चुकाना है।"

 
एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

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