12,800 एकड़ जमीन पर लहलहाती फसल को आग लगा दी गई। इराक में ऐसा एक नहीं, 236 बार हुआ है। पता नहीं चल पा रहा है कि कौन किसानों को कंगाल बनाना और लोगों को भूख से तड़पाना चाहता है।
राद सामी, उत्तरी इराक के किर्कुक प्रांत में रहते हैं, पेशे से वह किसान हैं। लेकिन इस बार जब उनसे फसल के बारे में पूछा जाता है तो सामी का गला भर आता है। उनके सामने ही उनकी 90 हेक्टेयर जमीन पर खड़ी फसल खाक हो गई। सामी कहते हैं, "हम बस सीजन खत्म होने का इंतजार कर रहे थे, ताकि फसल काटे, बेचें और अपना कर्जा चुकाएं।"
एक महीने के भीतर उत्तरी इराक में खेतों में आग लगने के 236 मामले सामने आ चुके हैं। आग के चलते 7000 फुटबॉल मैदानों जितने बड़े इलाके के खेत राख से भर गए। 30 दिन के भीतर 5,183 हेक्टेयर जमीन साफ हो गई।
उत्तरी इराक के चार प्रांतों में ये घटनाएं हुई हैं। चारों प्रांतों में अब भी कुछ हद तक इस्लामिक स्टेट का दखल और नियंत्रण है। छुपे जिहादी अब भी वहां लोगों को निशाना बनाते रहते हैं।
2017 के आखिर में इराक में इस्लामिक स्टेट का पतन शुरू हुआ। लेकिन उसके बाद से इस्लामिक स्टेट लगातार हमला कर भागने की रणनीति अपना रहा है। इराकी खेतों को जलाने वाली आग की जिम्मेदारी भी इस्लामिक स्टेट ने ली है। अपनी साप्ताहिक ऑनलाइन मैग्जीन में इस्लामिक स्टेट ने दावा किया है कि उसके लड़ाकों ने किर्कुक, निनेवेह, सालाहाद्दीन और दियाला प्रांत में "हजारों हेक्टर" जमीन को बर्बाद किया है। आईएस के मुताबिक यह जमीन "काफिरों" के कब्जे में थी।
इलाके में तैनात अधिकारियों ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि आगजनी के कुछ मामलों के लिए वे भी आईएस को जिम्मेदार मानते हैं। किर्कुक के एक अधिकारी के मुताबिक शरिया कानून के तहत इस्लामिक स्टेट ने टैक्स भी लगाया था, "किसानों द्वारा जकात (टैक्स) देने से इनकार करने पर आईएस के लड़ाकों ने खेतों में आग लगाई। वे मोटरसाइकिलों से आए और आग लगाने लगे। उन्होंने स्थानीय लोगों और दमकल कर्मचारियों को भगाने के लिए वहां विस्फोटक भी लगाए।" किर्कुक प्रांत में बारूदी सुरंग के ऐसे ही एक धमाके में कम से कम पांच लोग मारे गए।
हालांकि विशेषज्ञ आगजनी के लिए आईएस लड़ाकों को पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं। मई और जून में उत्तरी इराक में भीषण गर्मी पड़ती है। इस दौरान तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक गया। उनका मानना है कि गर्मी ने फसल को पका कर सुखा दिया और सिगरेट जैसी चीजों ने आग भड़क गई।
सुरक्षा एक्सपर्ट हिशाम अल हाशेमी एक और कारण बताते हैं, "आईएस ने आगजनी के दर्जनों मामलों की जिम्मेदारी ली है, लेकिन अन्य घटनाएं आम तौर पर कबीलों के बीच होने वाले जमीनी झगड़ों का नतीजा भी हैं।" किर्कुक प्रांत को लेकर इराक की संघीय सरकार और स्वायत्त कुर्द क्षेत्रीय प्रशासन के बीच भी विवाद है। इस विवाद के चलते वहां अरब, कुर्द और तुर्कमान लोगों के बीच हिंसा होती रहती है।
निनेवेह प्रांत में इसी दौरान 199 आग के मामले सामने आए। प्रांत की राजधानी मोसुल में 2014 में इस्लामिक स्टेट ने अपना हेडक्वार्टर बनाया। यहीं हजारों यजीदियों का जनसंहार भी किया गया। निनेवेह के कृषि विभाग के प्रमुख दुरैद हेकमत कहते हैं, "हम आग बुझाने वाले ट्रकों की कमी महसूस कर रहे हैं। हमारे पास 50-55 ट्रक हैं लेकिन 15 लाख हेक्टेयर जमीन के लिए ये नाकाफी हैं।"
फसल खाक होने से सैकड़ों किसान बर्बाद हो चुके हैं। कई किसानों की उम्मीद थी कि अच्छी फसल बेच कर वे अपना कर्ज उतार पाएंगे। दो लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती करने वाले प्रांत किर्कुक में हर साल औसतन 6,50,000 टन अनाज पैदा होता था। अधिकारियों के मुताबिक इस साल अच्छी बारिश की वजह से बढ़िया फसल की उम्मीद थी, लेकिन आग ने काफी कुछ बर्बाद कर दिया है।
खुद को ताकतवर दिखाने की कोशिश करते जिहादी, जमीनी झगड़े या फिर खेतों में आम तौर पर लगाई जाने वाली आग। इन तीनों में से वह कौन सा कारण है जो इराक के खेतों को खाक कर रहा है, यह जांच का विषय है। लेकिन एक बात साफ है कि आग लगाने वाले जानते हैं कि वह इराकी अर्थव्यवस्था और लोगों पर सीधी चोट कर रहे हैं और समाज के बड़े हिस्से को हिंसा में झोंकने की कोशिश कर रहे हैं।