अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चुनौती दे रहीं डेमोक्रेटिक पार्टी की टीम में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बिडेन ने सीनेटर कमला हैरिस को चुना है। भारतीय मूल की कमला हैरिस अमेरिकी चुनावों के भविष्य को प्रभावित करेंगी।
भारतीय मां श्यामला गोपालन और जमैका मूल के पिता डोनाल्ड हैरिस की बेटी कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाते ही बिडेन ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। 'ब्लैक लाइव्स मैटर' अभियान के बाद से ऐतिहासिक दौर से गुजर रहे अमेरिका में एक काली महिला को उपराष्ट्रपति पद का निमंत्रण अश्वेत समुदाय में सकारात्मक संदेश लेकर आया है। हैरिस ने अपनी आत्मकथा 'द ट्रूथ्स वी होल्ड' में भारत जाने के अपने अनुभवों को बयां किया है जिसे वे समय-समय पर साझा करती रही हैं। बिडेन के ऐलान के बाद हैरिस की बहन माया हैरिस ने मां के साथ पुरानी तस्वीर ट्विटर पर साझा की जिसका मकसद दक्षिण एशियाई और विशेष रूप से भारतीय समुदाय को रिझाना था। बिडेन के फैसले ने इन दोनों समुदायों को खुश कर दिया है।
क्यों चुनी गईं हैरिस?
साल 2016 में हिलेरी क्लिंटन की हार की वजह ब्लैक और ब्राउन समुदाय के कम वोट होना बताया जाता रहा है। पीयू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में तेजी से बढ़ रहा एशियाई-अमेरिकी समुदाय आगामी चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करेगा, क्योंकि इनके कुल वोटरों की संख्या 1.1 करोड़ से अधिक हो चुकी है। इंडियाना यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर सुमीत गांगुली बिडेन के फैसले को मास्टरस्ट्रोक बताते हैं। वे कहते हैं कि उनकी भी पहली पसंद हैरिस ही थीं और बिडेन का यह फैसला लंबे समय तक अमेरिकी राजनीति पर असर बनाए रखेगा।
मिशिगन की गवर्नर ग्रेचेन विटमर और डेमोक्रेटिक पार्टी की सलाहकार सूजन राइस का नाम भी उपराष्ट्रपति पद की रेस में आगे था। खासकर विटमर को तो कोरोनावायरस से लड़ने में शानदार काम के लिए खूब सराहना भी मिली। प्रो. सुमीत गांगुली मानते हैं कि श्वेत सुमदाय की विटमर और विवादों में रहीं राइस को अपना सहयोगी बनाने से बिडेन अपना हित नहीं साध पाते और ऐसे में हैरिस को चुना जाना एक समझदारीभरा फैसला है जिसका तोड़ ट्रंप के पास नहीं है।
मोदी समर्थकों ने किया स्वागत, लेकिन...
अमेरिका में रह रहा भारतीय समुदाय हैरिस का नाम आने से खुश तो नजर आ रहा है, लेकिन कश्मीर की आजादी पर हैरिस के बयानों की वजह से मोदी-समर्थकों ने सोशल मीडिया पर कैलीफोर्निया की सीनेटर को जमकर कोसा भी है। इसके अलावा न्यू जर्सी में रेस्तरां मालिक और बीजेपी नेता अरविंद पटेल का कहना है कि छोटे और मझौले व्यापारी ट्रंप को वोट देंगे, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने कोविड संकट में उन्हें कर्ज, टैक्स में छूट और लॉकडाउन में ढील देने जैसे कई अहम फैसले किए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बचपन के दोस्त होने और मोदी के साथ आरएसएस की शाखा में लाठियां चलाने का दावा करने वाले पटेल का मानना है कि ट्रंप और मोदी जैसी मित्रता डेमोक्रेटिक काल में देखने को नहीं मिल सकती। अमेरिका में रह रहे मोदी समर्थक 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम की सफलता और मोदी द्वारा 'अबकी बार, ट्रंप सरकार 'जैसे नारों से उत्साहित नजर आ रहे हैं।
प्रो. सुमीत गांगुली ट्रंप के प्रति मोदी समर्थक भारतीयों के झुकाव की दो वजहें बताते हैं। वे कहते हैं कि ट्रंप की ओर से इस्लाम और चीनी समुदाय के खिलाफ बयान मोदी समर्थकों को भारत ही नहीं, अमेरिका में भी रास आता है। उन्हें लगता है कि यह उनके हक में है। हालांकि वे यह नहीं समझते कि ट्रंप की प्राथमिकता भारतीय या कोई भी प्रवासी नहीं है।
ओबामा-बिडेन 2.0 की उम्मीद
प्रो. सुमीत गांगुली के विचारों से अटॉर्नी राजदीप सिंह जॉली इत्तेफाक रखते हैं। सिख समुदाय के जॉली का मानना है कि हैरिस का नाम आगे आने का स्वागत किया जाना चाहिए और वोटिंग करते समय किसी एक बिंदु पर नहीं, बल्कि पूरी तस्वीर को सामने रखकर विचार किया जाना चाहिए। जॉली वही शख्स हैं जिन्होंने 2019 में एक अभियान चलाकर हैरिस से 2011 के एक मामले में माफी मांगने को कहा था। हैरिस ने कथित तौर पर 2011 में कैलीफोर्निया की अटॉर्नी जनरल के रूप में उस नीति का समर्थन किया था जिसके तहत प्रांत की जेलों के सिख गार्डों को दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने से रोका गया था। हालांकि आज वे उसे हैरिस की एक 'गलती' बताकर घटना को बीता हुआ कल कहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि बिडेन-हैरिस की जोड़ी में ओबामा-बिडेन 2.0 का कमाल देखने को मिलेगा जिसमें एक गोरे अनुभवी और एक प्रवासी नेता की छवि देखने को मिलेगी।
बिडेन-हैरिस की जोड़ी में एक अहम फैक्टर उम्र का भी है। 77 साल के बिडेन को 55 वर्षीय तेजतर्रार हैरिस का साथ मिलना एक आदर्श स्थिति पैदा कर रहा है। प्रो. गांगुली का कहना कि अगर किसी स्वास्थ्य संबंधी कारण से बिडेन को ब्रेक की जरूरत आती है तो हैरिस उनकी जिम्मेदारी निभाने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं।
2024 का दरवाजा भी खुला
200 साल से भी पुराने लोकतंत्र में तीसरी बार किसी महिला का नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए आगे आया है। अमेरिका में महिलाओं के खतने के खिलाफ अभियान चलाने वाली मारिया ताहेर को खुशी है कि बिडेन ने किसी महिला को उपराष्ट्रपति बनाने का वादा पूरा किया और एक काबिल नेता को यह जिम्मेदारी सौंपी है। सैन फ्रांसिस्को में सिटी गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में बिताए अपने दिनों को याद करते हुए ताहेर बताती हैं कि उन दिनों हैरिस डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी हुआ करती थीं और उन्होंने घरेलू हिंसा, क्रिमिनल जस्टिस और लिंगभेद के खिलाफ आवाज मुखर की थी। उन्हें उम्मीद है कि अमेरिका में अफ्रीकी-एशियाई समुदाय के बीच महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और परंपराओं को तोड़ने में हैरिस की भूमिका अहम रहेगी।
हैरिस की उम्मीदवारी ने न सिर्फ 2020 के चुनाव के लिए बिडेन की स्थिति को मजबूती दी है बल्कि 2024 के चुनाव में एक महिला के राष्ट्रपति के बनने की ओर का रास्ता भी दिखा दिया है। बराक ओबामा के रूप में अमेरिका एक अश्वेत राष्ट्रपति पा चुका है। इस साल के चुनावों में बिडेन-हैरिस जोड़ी की जीत अगले चुनावों में देश को एक महिला राष्ट्रपति देने की संभावना खोल सकती है।