एस्ट्राजेनेका टीके पर रोक से किसका नुकसान, किसका फायदा?

DW

शनिवार, 27 मार्च 2021 (17:15 IST)
रिपोर्ट : कात्या स्टेर्चिक
 
जर्मनी सहित कई देशों में ऑक्सफोर्ड के बनाए एस्ट्राजेनेका टीके को लेकर डर और असमंजस बना रहा। दिमाग में खून के जम जाने के चुनिंदा मामले आने के बाद टीकाकरण अभियान रोकना पड़ा था। क्या एस्ट्राजेनेका पर अस्थायी रोक सही थी?
 
कई देशों में सेरेब्रल वीनस साइनस थ्रोम्बोसिस (सीवीएसटी) की वजह से एस्ट्राजेनेका का टीका रोकना पड़ा। विशेषज्ञों के बीच टीके पर आननफानन में रोक लगा देना कोविड-19 के खतरों की तुलना में सही फैसला नहीं माना जा रहा है। अगली सूचना तक कई देशों में सुरक्षा कारणों से ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन एस्ट्राजेनेका का इस्तेमाल रोक दिया गया। जर्मनी में स्वास्थ्य मंत्री येन्स श्पान ने यह फैसला 15 मार्च को किया था।
 
क्यों? जर्मनी के टीका नियामक प्राधिकरण, पॉल-एहर्लिश इंस्टीट्यूट (पीईआई) में टीका लगने के कुछ ही समय बाद दुर्लभ थ्रोम्बोसिस (सीपीएसटी) के 7 मामले सामने आए थे। इनमें से तीन लोगों की मौत हो गई थी। टीके और थ्रोम्बोसिस के बीच किसी संबंध के बारे में अभी सिर्फ इतना ही पता चल पाया है कि टीका लगाने से कुछ लोगों के मस्तिष्क में खून का थक्का बना था। मानव शरीर मे थ्रोम्बोसिस वह जानलेवा स्थिति है जो खून की नलियों में खून के जम जाने से उसके प्रवाह को बाधित कर देती है। 
 
दुर्लभ बीमारी है मस्तिष्क में खून के थक्के का बनना
 
एस्ट्राजेनेका का टीका लेने वाले 16 लाख लोगों में से 7 लोग सेरेब्रल वीनस साइनस थ्रोम्बोसिस (सीवीएसटी) से प्रभावित हुए थे। इन लोगों में ब्लड प्लेटलेट्स की कमी भी पाई गई जो खून को बहने से रोकने के लिए थक्के बनाने में मदद करते हैं। सीवीएसटी में होता यह है कि दिमाग की शिराओं में थक्का जम जाता है जो खून के प्रवाह को रोक देता है। ये शिराएं ही दिमाग से ऑक्सीजनरहित खून इकट्ठा कर हृदय में वापस लाती हैं। अगर खून सही ढंग से पूरी तरह नहीं निकल पाता है, तो दिमाग में दबाव बढ़ जाता है और इससे वहां खून रिसने लगता है। सीवीएसटी की वजह से जानलेवा ब्रेनस्ट्रोक भी हो सकता है।
 
लेकिन इस किस्म का थ्रोम्बोसिस दुर्लभ ही माना जाता है। एक अनुमान के मुताबिक हर 10 लाख में से, 2 से पांच लोग एक साल के दरमियान सीवीएसटी की चपेट में आ जाते हैं। वैसे हाल के अध्ययनों के मुताबिक सीवीएसटी के प्रभावितों की संख्या ज्यादा है। ईस्ट एंगलिया यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफेसर पॉल हंटर के मुताबिक एक ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन में हर साल प्रति 10 लाख लोगों में 15.7 मामले पाए गए हैं। हंटर का कहना है कि इसका अर्थ ये है कि मौजूदा मामले 4 से 8 गुना कम अनुमानित किए गए हैं।
 
टीकाकरण अभियान को रोकने की क्या तुक
 
टीकाकरण स्थगित किए जाने की घोषणा के बाद से इस पर बहुत बहस हो चुकी है। खासकर सोशल मीडिया पर, नाराजगी भरी प्रतिक्रियाएं भी देखी गयीं, जैसे कि ये- हर 10 लाख औरतों में से करीब 1100 औरतों को गर्भनिरोधक गोली लेने के बाद थ्रोम्बोसिस हो जाता है, तो ये गोलियां क्यों दी जा रही हैं? या फिर ये किः टीका लेने वाले 16 लाख लोगों में सिर्फ 7 लोगों को थ्रोम्बोसिस हुआ तो इतने भर से समूची वैक्सीनेशन अभियान को ही रोक देने की क्या तुक?
 
एसपीडी के स्वास्थ्य विशेषज्ञ कार्ल लाउटेरबाख ने जर्मनी के पब्लिक रेडियो डॉयशलैंडफुंक को दिए एक इंटरव्यू में इस किस्म की तुलनाओं की आलोचना करते हुए कहा कि सीवीएसटी की गंभीरता की तुलना गर्भनिरोधक गोलियों से होने वाले थ्रोम्बोसिस से नहीं की जा सकती है। गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन के मामले में लोग जब थ्रोम्बोसिस की चर्चा करते हैं, तो उनका आशय दरअसल पांवों की शिराओं में खून के जम जाने से होता है। इस मामले में खून के थक्के पांवों की शिराओं को अवरुद्ध करते हैं, अगर वे ढीली पड़ जाती हैं तो फेफड़ों तक पहुंचकर एम्बोलिजम यानी नलियों में रुकावट का कारण बनती हैं।
 
लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है : गोली के सेवन से और खतरनाक सीवीएसटी का जोखिम भी बढ़ जाता है। जर्मन सोसायटी फॉर न्यूरोलॉजी के महासचिव पीटर बेरलिट ने डीडब्लू को बताया, 'पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अक्सर ज्यादा प्रभावित होती हैं और इसमें हार्मोनों की भूमिका हो सकती है। देर से गर्भधारण के मामलों में प्रसव बाद के दिनों में और गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने वाली महिलाओं में सीवीएसटी के मामले ज्यादा दिखते हैं।' उनका कहना है कि जेंडर कोई भी हो, युवा लोग बूढ़ों की अपेक्षा आमतौर पर ज्यादा प्रभावित होते हैं।
 
टीकाकरण रोकने के लिए पर्याप्त वजहों का अभाव
 
टीकाकरण को रोकने का श्पान का फैसला, जाहिर है कोई संयोग नहीं है। जर्मनी में टीकों और दवाओं की सुरक्षा की जांच करने वाली संस्था, पीईआई की सिफारिश के हवाले से ही वे ऐसा कर रहे हैं। पीईआई ने अपने एक प्रेस बयान में कहा था कि जर्मनी और यूरोप में सामने आए थ्रोम्बोसिस के गंभीर मामलों को लेकर हुए सघन मशविरों के बाद वह कोविड-19 के एस्ट्राजेनेका टीकाकरण अभियान को अस्थायी तौर पर रोकने की सिफारिश करता है।
 
लाउटेरबाख ने एक रेडियो के इंटरव्यू में बताया कि टीकाकरण और थ्रोम्बोसिस के मामलों के बीच किसी मुमकिन संबंध के बारे में वे सोचते तो थे, फिर भी उनकी राय में टीकाकरण को स्थगित करने की यह अकेली पर्याप्त वजह नहीं हो सकती है। उनके मुताबिक, 'इसी डाटा के आधार पर मैं ऐसा फैसला नहीं करता।'
 
जर्मनी की डुइसबुर्ग एसेन यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे बरलिट को अधिकारियों के फैसले पर घोर हैरानी हुई थी। उनका कहना है, 'विशुद्ध आंकड़ों के आधार पर देखें, तो इस समय दोनों के बीच संबंध होने से ज्यादा संबंध न होने के खिलाफ तर्क-वितर्क हैं।' एक बात यह भी है कि थ्रोम्बोसिस के ताजा मामलों की संख्या, टीका लगाए बगैर हुए सीवीएसटी के पुराने मामलों की रेंज के अंदर ही होगी।
 
वैसे इस तुलना में एक समस्या और है : आंकड़ों के विशेषज्ञ सीवीएसटी पर पूरे साल भर के आंकड़ों पर गौर करते हैं। लेकिन टीकाकरण से जुड़े सीवीएसटी के मामले इस साल फरवरी से दिखने शुरु हुए हैं। लेकिन बरलिट इसकी एक वजह बताते हैं, 'यह ज्ञात है कि संक्रमण के मामलों में भी सीवीएसटी अक्सर हो सकता है। जाहिर है, मौसम बदलने पर अक्सर इंफेक्शन होते हैं। खासकर वसंत और पतझड़ में। इसीलिए सीवीएसटी के मामले भी ज्यादा दिखते हैं।'
 
शोधकर्ताओं ने मिसाल के तौर पर पाया है कि कोविड-19 संक्रमणों से थ्रोम्बोसिस भी बढ़ जाता है। ऐसा होने के पीछे तथ्य यह है कि कोविड-19 के मामले में हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता एक ऐसी बचाव प्रणाली को और सक्रिय कर देती है जिसका प्रभाव खून के जमने की प्रक्रिया पर होता है और उसके चलते थ्रोम्बोसिस के मामले बढ़ सकते हैं।

 
टीका लगाने की रणनीतिः कौनसा फैसला सही?
 
कोविड-19 की तरह वैक्सीन में मौजूद अवयवों से थ्रोम्बोसिस उभर सकता है- ऐसी आशंकाओं पर बरलिट का कहना है, 'ये सब काल्पनिक है। अभी तक इस बात के कोई संकेत नहीं है। ऐसे मामले सिर्फ जर्मनी में ही उभरे हैं लेकिन, मिसाल के लिए, इंग्लैंड में नहीं आए हैं।' मौजूदा घटनाओं से ब्रिटेन के लोग बेफिक्र हैं। वहां टीके लगाने का काम जारी है। एक करोड़ से ज्यादा टीके लग चुके हैं। केवल तीन लोगों में सीवीएसटी होने की सूचना मिली है।
 
ईस्ट एंगलिया यूनिवर्सिटी में कार्यरत हंटर कहते हैं कि संभावित संबंध को लेकर और बारीकी से जांच किए जाने की जरूरत है। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि यूरोप में कोविड के बढ़ते मामलों के बीच टीकाकरण में देरी के असली नुकसान के बारे में सोचना भी उतना ही जरूरी है।
 
जिन्हें टीका लग चुका है, वे क्या करें?
 
यूरोपियन मेडेसिन्स एजेंसी (ईएमए) अभी तक दर्ज मामलों की जांच और गहनता से कर रही है। लेकिन एस्ट्राजेनेका का टीका रोकने को वे भी सही नहीं मानती। अपनी जांच के बीच ईएमए ने कहा है कि कोविड-19 और उससे जुड़े खतरों पर काबू पाने में एस्ट्राजेनेका के लाभ, उसके साइड इफेक्ट्स से कहीं ज्यादा हैं। नतीजे अगले 2 सप्ताह में आने की उम्मीद है।
 
बेरलिट कहते हैं, 'कुछ समय के लिए टीका पूरी तरह रोक देने का फैसला सही है या नहीं, यह अब राजनीतिक मुद्दा ज्यादा हो गया है। मेरे ख्याल से टीकाकरण से जुड़ी इन आशंकाओं से ज्यादा बड़ा खतरा कोविड-19 से संभावित गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का है। आंकड़े भी यही कहते हैं।'
 
बेरलिट के मुताबिक जिन लोगों को एस्ट्राजेनेका का टीका लग चुका है वे निम्न लक्षणों पर गौर करें- 'टीका लगने के बाद पहले 2-3 हफ्तों के दरमियान बहुत तेज सरदर्द हो और वह लगातार बना रहे तो उसकी जांच कराना आवश्यक है।' इसी तरह, सरदर्द के साथ साथ त्वचा पर सुई की नोक के आकार का खून निकलता दिखता है तो यह सीवीएसटी हो सकता है।

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