बात निकली है तो दूर तलक जाएगी...

SubratoND
आज हम बात करने वाले हैं किसी जमाने में बुद्धू बक्सा कहलाने वाले टीवी की जो आज उतना बुद्धू नहीं रह गया है, थोड़ा शातिर हो गया है, शातिर भी इतना कि उस पर आने वाले हर कार्यक्रम के लिए उसे दर्शक खींचना आ गया है, फिर चाहे युवाओं के लिए सिंगिंग कॉम्पिटिशन हो, डांस कॉम्पिटिशन हो या फिर रियालिटी शो, बच्चों के लिए कार्टून चैनल, तो घर बैठी महिलाओं के लिए सास-बहू वाले सीरियल, 24 घंटे चलने वाले न्यूज़ चैनल, गाने, फिल्में, क्रिकेट, ग्लैमर यानि वो सबकुछ जो हर तरह के दर्शक पसंद करें।

सिवाय उन अल्पसंख्यकों के जिसे ये बुद्धू बक्सा चाहे कितना ही शातिर हो जाए, कभी नहीं भाया। अब आप सोच रहे होंगे ये अल्पसंख्यक कौन हैं? आप इस शब्द को किसी जाति या धर्म से ना जोड़ें। ये अल्पसंख्यक वे लोग हैं, जिन्हें टीवी से वो खुराक नहीं मिलता जो वे चाहते हैं। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है, चाहे तो उँगलियों पर गिने जा सकते हैं।

ये चंद लोग पहले किताबी कीड़े कहलाते थे, आजकल आप इन्हें ब्लॉगर्स की श्रेणी में रख सकते हैं। इन लोगों को भी एक बक्सा मिल गया है, जिसे ये लोग इंटेलिजेंट बक्सा कहते हैं। जी हाँ, आपने ठीक पहचाना ये इंटेलिजेंट बक्सा है कम्प्यूटर।

एक समय था जब कवियों को और लेखकों को अपनी कोई रचना किसी अखबार या पत्रिका में छपवाने के लिए अर्थात् पाठक जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करना पड़ती थी, कई लोगों की तो अपनी रचनाओं की किताब छपवाने में उम्र निकल जाती थी। फिर समय आया कम्प्यूटर का। अपना ब्लॉग बनाया, अपनी रचना उसमें प्रकाशित की, ऑनलाइन होने के साथ ही पाठक और उनकी प्रतिक्रिया मिल जाती है। एक लेखक को और क्या चाहिए, पाठक और उनकी प्रतिक्रिया।
  आज हम बात करने वाले हैं किसी जमाने में बुद्धू बक्सा कहलाने वाले टीवी की जो आज उतना बुद्धू नहीं रह गया है। उस पर आने वाले हर कार्यक्रम के लिए उसे दर्शक खींचना आ गया है, फिर चाहे युवाओं के लिए सिंगिंग कॉम्पिटिशन हो, डांस कॉम्पिटिशन हो।      


फिर तो ये जरूरी नहीं रहा कि इंटेलिजेंट बक्से के सामने वही बैठता है, जिसे बुद्धू बक्सा पसंद नहीं। हाँ, बस इनकी प्राथमिकता बदल गई जहाँ कुछ समय वे टीवी के सामने बैठकर बिताते थे, कोई अच्छा कार्यक्रम तलाशने के लिए जहाँ रिमोट से पूरे समय चैनल बदलते रहते थे। वे आजकल कम्प्यूटर पर नेटसर्फिंग करके अपनी पसंदीदा चीजों को देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं, लिख सकते हैं, लोगों को पढ़वा सकते हैं, उनसे वाद-विवाद कर सकते हैं।

फिर समय आया कि एक तरह की पसंद वाले ब्लॉगर्स ने अपनी-अपनी कम्युनिटी बना ली। उनके ब्लॉग्स पर जो भी चीज वे प्रकाशित करते हैं, उनकी कम्युनिटी वाले उसे तुरंत पढ़ लेते हैं। इस तरह के ब्लॉगर्स ने अपनी एक अलग दुनिया बसा ली। दुनिया के एक कोने में बैठा व्यक्ति दूसरे कोने में बैठे व्यक्ति से रूबरू बात करने लगा, इनकी संख्या अब इतनी बढ़ गई है कि वे अल्पसंख्यक नहीं रह गए। कवि और लेखक तो सिर्फ यहाँ उदाहरण के तौर पर लिए गए हैं। ये ब्लॉगर कोई भी हो सकता है, एक कवि, एक लेखक, एक फोटोग्राफर, एक चित्रकार, एक विद्यार्थी, एक फैशन डिजाइनर

आपको ऐसे भी कई ब्लॉग मिलेंगे जो फिल्मों में रूचि रखने वालों के होते हैं, कुछ फिल्मों के गानों में, कुछ एसएमएस की दुनिया में खो गई गालिब, मीर की शायरी में दिलचस्पी रखते हैं, तो कुछ लोग सच में सिर्फ एसएमएस या उसी तरह की फनी चीजों में, यहाँ तक कि कुछ प्रख्यात लोगों ने अपनी खुद की वेबसाइट तक बना ली। फिर चाहे बॉलीवुड से आमिर खान का ब्लॉग हो, प्रख्यात हास्यकवि अशोक चक्रधर की वेबसाइट हो, अपने गीतों और शेर-ओ-शायरी के लिए जाने जाने वाले जावेद अख्तर साहब हों या फिर फैशन की दुनिया में मशहूर रितु कुमार।


तो देखा...... बात निकली थी बुद्धू बक्से और इंटेलिजेंट बक्से की और पहुँच गई ब्लॉगर्स औए सेलिब्रिटीज की वेबसाइट तक। कहने का तात्पर्य बस इतना है कि जहाँ कम्प्यूटर और नेटवर्किंग की बात आती है, वहाँ आप किसी एक विषय पर सीमित रह ही नहीं सकते। और आज के कम्प्यूटर युग में जो नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं वह समय की तेज रफ्तार के साथ कदम मिलाकर नहीं चल सकेगा।

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