राजनेताओं के खिलाफ बेजुबानों की बगावत

गिरीश पांडेय
Rebellion of dumb animals: तमाम जानवर राजनीतिक दलों से बेसाख्ता नाराज हैं। इसकी वजह है इन दलों द्वारा अपनी राजनीति चमकाने के लिए इनके नाम का बेवजह प्रयोग। खासकर चुनावों के वक्त। इनका कहना है, 'हे मानुष जब तुम्हारी राजनीति से अपना कोई लेना-देना नहीं तो इसमें लाकर मुझे क्यों बदनाम करते हो'।
 
बकौल ऊंट, मेरी मर्जी चाहे किस करवट बैठूं, रेगिस्तान में रहूं या पेड़ के नीचे। बार बार पहाड़ के निकट जाने की ही बातें क्यों होती है। वह तो मेरा नेचुरल ठौर भी नहीं।
 
हाथी का कहना है कि आपके कहने से में क्यों चिंघाड़ूं, मेरी चाल तय करने के पहले आप अपना चाल चरित्र क्यों नहीं देखते। गधे को सींग न होने की बात कही जाने पर घोर आपत्ति है। उसके अनुसार कभी मेरे पीछे आकर देखो। ऐसी दुलत्ती झाड़ूंगा कि छठी का दूध याद आ जाएगा और सींग की चर्चा कभी करोगे ही नहीं।
 
घड़ियाल के अनुसार इनको मेरे ही आंसू की क्यों फिक्र रहती है। मैं तो पानी में रहता हूं। मेरे आंसू इनको कैसे दिखेंगे? पर जिनके दिख रहे हैं उनके लिए क्या और कितना कर रहे हैं? बैल, लोमड़ी, सांप और नेवले आदि को भी ऐसी ही आपत्तियां हैं।
 
सब सोच रहे हैं कि जंगल के राजा शेर से मिलकर एक साझा पत्र बनावाकर सभी राजनीतिक दलों को इस बाबत प्रस्ताव भेजा जाए कि अपने तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए हम निरीह जानवरों को न बदनाम किया जाय। यूं भी राजनीति अब सेवा नहीं मेवा, गंगा नहीं भ्रष्टाचार की गंगोत्री हो चुकी है। इसमें अपना नाम आने पर हम खुद को शर्मशार समझते हैं। अपनी ही बिरादरी में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। हमें बख्श दो।

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