कांग्रेस के परंपरागत गढ़ के रुप मे पहचाने जाने वाली गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर इस बार भी तमाम अटकलों को खारिज करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और वर्तमान सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पांचवी बार चुनावी मैदान में हैं। गुना शिवपुरी से चार बार के सांसद और बड़े सियासी चेहरे सिंधिया के सामने भाजपा ने कभी उनके ही सांसद प्रतिनिधि रहे केपी यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है।
भाजपा की तरफ से केपी यादव को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद पार्टी के अंदर ही कई सवाल खड़े हुए थे। भाजपा की तरफ से केपी यादव की उम्मीदवारी को एक तरह से सिंधिया को वॉकओवर देना माना गया था, लेकिन जैसे जैसे चुनाव बढ़ता गया, भाजपा मोदी के चेहरे के सहारे ही सिंधिया को उनके ही गढ़ में पटखनी देने की रणनीति बनाती हुई दिखाई दी।
भाजपा ने अपना पूरा चुनाव प्रचार फिर एक बार मोदी सरकार के नारे पर लड़ा तो दूसरे क्षेत्र में महाराज के नाम से पहचाने जाने वाले वर्तमान सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने काम को लेकर फिर लोगों के बीच गए।
सिंधिया अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान गुना-शिवपुरी क्षेत्र के लोगों से एक भावनात्मक लगाव को बताते हुए कहते हैं कि जनता से उनका कोई चुनावी रिश्ता नहीं है। सिंधिया कहते हैं कि क्षेत्र के विकास करना उनकी सबसे पहली प्राथमिकता और पहला प्रयास रहेगा कि गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र की पहचान देश में एक अलग सीट के रूप में हो।
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान सिंधिया कई मौकों पर इमोशनल कार्ड भी खेलते नजर आए। वहीं दूसरी ओर सिंधिया पत्नी और लोगों की बीच महारानी के रूप में चर्चित प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ने गुना-शिवपुरी क्षेत्र में जनसंपर्क करने का अपनी तरह का एक रिकॉर्ड बनाया। वहीं चुनाव के दौरान बसपा उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह को कांग्रेस में शामिल करा कर कांग्रेस पार्टी ने चुनावी समीकरण अपने तरफ करने की कोशिश की।
वरिष्ठ पत्रकार का नजरिया – शिवपुरी से आने वाले मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता कहते हैं कि गुना-शिवपुरी संसदीय सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए चुनौती मोदी के अंडर करंट से पार पाना है। वेबदुनिया से बातचीत में दिनेश गुप्ता मानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की स्थिति काफी मजबूत है और नजर इस बात पर टिकी हुई है कि इस बार उनकी जीत का मार्जिन कितना होगा।
दिनेश गुप्ता इसके पीछे का मुख्य कारण भाजपा के प्रत्याशी केपी यादव का अब तक सिंधिया की छवि से बाहर नहीं निकल पाना मानते हैं। दिनेश गुप्ता कहते हैं कि भाजपा यहां पर सिर्फ मोदी के चेहरे के सहारे ही चुनावी मैदान में है। सिंधिया के खिलाफ केपी यादव की उतारे जाने के पीछे दिनेश गुप्ता भाजपा की जातिगत समीकरण को साधने की कवायद मानते है।
गुना संसदीय सीट पर इस बार सिंधिया की पत्नी और क्षेत्र में महारानी के तौर पर जानी जाने वाली प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया के खासा सक्रिय रहने को वो स्वाभिवक मानते हुए कहते हैं क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी मिलने और उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य में लोकसभा चुनाव का प्रभारी बनाए जाने के बाद उनका उतना समय दे पाना मुमकिन नहीं था, इसलिए प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया चुनाव में खासा सक्रिय दिखाई दीं। वहीं दिनेश गुप्ता भविष्य में प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया के चुनाव लड़ने की संभावना से भी इंकार नहीं करते हैं।
सीट का सियासी समीकरण – अगर गुना के सियासी समीकरणों की बात करें तो गुना-शिवपुरी संसदीय सीट पर तीन जिलों की 8 विधानसभा सीट आती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां पर अच्छा प्रदर्शन करते हुए पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन गुना, कोलारस और शिवपुरी जैसी महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। वहीं आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 9 बार, बीजेपी को 4 बार और एक बार जनसंघ को जीत हासिल हुई है।
2014 के लोकसभा चुनाव की नतीजे – मोदी लहर में भी मध्य प्रदेश में गुना ऐसी संसदीय सीट थी जिस पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार था। भाजपा ने 2014 में सिंधिया को उनके गढ़ में घेरने के लिए महल के विरोधी जयभान सिंह पवैया को मैदान में उतारा था। मोदी लहर के बावजूद सिंधिया ने लगभग एक लाख इक्कीस हजार वोटों से जयभान सिंह को हराया था। सिंधिया को 517036 वोट और जयभान सिंह पवैया को 396244 वोट मिले थे।