Congress targets Modi over electoral bonds : कांग्रेस (Congress) ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा चुनावी बॉण्ड का ब्योरा देने के लिए उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) से और समय की मांग किए जाने को लेकर गुरुवार को आरोप लगाया कि 'न्यू इंडिया' (नए भारत) में लुका-छिपी का खेल चल रहा है जिसमें देश ढूंढ रहा है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) 'छिपा रहे हैं'।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने नई दिल्ली में यह दावा भी किया कि 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' की बात करने वाले प्रधानमंत्री अब 'ना बताऊंगा, ना दिखाऊंगा' पर अड़े हुए हैं। एसबीआई ने 4 मार्च को शीर्ष अदालत से अनुरोध किया था कि चुनावी बॉण्ड का ब्योरा देने के लिए समय 30 जून तक बढ़ाया जाए।
'प्रधानमंत्री चंदा छिपाओ योजना' झूठ पर आधारित : शीर्ष अदालत ने पिछले महीने अपने एक फैसले में एसबीआई को इस संबंध में विवरण 6 मार्च तक निर्वाचन आयोग को देने का निर्देश दिया था। रमेश ने 'एक्स' पर पोस्ट किया कि न्यू इंडिया में 'हाइड एंड सीक' (लुका-छिपी) का खेल : देश ढूंढ़ रहा है, मोदी छिपा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि एसबीआई की 'प्रधानमंत्री चंदा छिपाओ योजना' झूठ पर आधारित है।
एसबीआई ने 30 जून तक का समय मांगा : कांग्रेस नेता का कहना है कि उच्चतम न्यायालय ने एसबीआई से 3 सप्ताह के भीतर चुनावी बॉण्ड देने वालों और प्राप्त करने वालों का विवरण उपलब्ध कराने को कहा था। एसबीआई ने उच्चतम न्यायालय से 30 जून तक का समय मांगा है ताकि आगामी लोकसभा चुनाव आसानी से निकल जाए।
रमेश के अनुसार कि एसबीआई का बहाना यह था कि चुनावी बॉण्ड की बिक्री और नकदीकरण (इनकैशमेंट) से संबंधित उसके डेटा को अज्ञात रखने के लिए अलग कर दिया गया है। एसबीआई के अनुसार 2019 के बाद से जारी किए गए 22,217 चुनावी बॉण्ड के खरीदारों का लाभार्थी पक्षों से मिलान करने में कई महीने लगेंगे।
चुनावी बॉण्ड शर्तों के साथ बेचा जाता था : उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक चुनावी बॉण्ड दो शर्तों के साथ बेचा जाता था- खरीदार की पहचान करने के लिए एसबीआई शाखाओं द्वारा 'नो योर कस्टमर' (केवाईसी) की विस्तृत प्रक्रिया और बॉण्ड पर छिपे सीरियल नंबर। इसलिए एसबीआई के पास निश्चित रूप से देने वाले और प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों- दोनों का डेटा है।
रमेश ने कहा कि वास्तव में वित्त मंत्रालय ने 2017 में कहा भी था कि खरीदार के रिकॉर्ड हमेशा बैंकिंग चैनल में उपलब्ध होते हैं और प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें प्राप्त किया जा सकता है। तब और अब के बीच क्या बदलाव आया है?
रमेश का कहना है कि हम यह भी जानते हैं कि 2018 में जब एक राजनीतिक दल ने मियाद खत्म होने वाले कुछ चुनावी बॉण्ड को भुनाने की कोशिश की थी तो एसबीआई ने वित्त मंत्रालय से अनुमति मांगी और इन बॉण्ड को भुनाने के लिए तत्परता के साथ काम किया। बहुत कम समय में ही बैंक इन बॉण्ड की संख्या और खरीद की तारीख की पहचान करने में सक्षम हो गया था।
उन्होंने दावा किया कि जैसा कि मोदी सरकार के एक सेनानिवृत्त वित्त और आर्थिक सचिव ने कहा है- चुनाव से पहले बॉण्डदाताओं के विवरण प्रकाशित करने से बचने के लिए एसबीआई 'एकदम घटिया बहाना' लेकर आया है। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री भारत की जनता के सामने अपने कॉर्पोरेट चंदादाताओं का खुलासा करने से डरते हैं।(भाषा)