पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन क्‍यों बोलीं हम पुरुषों से झगड़ने नहीं आईं

Women Day 2024
Women's Day 2024 : महिलाएं चाहें संभ्रांत हों, आर्थिक रूप से कमजोर हों या जाती के हिसाब से अंतिम पायदान पर हों, पुरुषों के समाज में सबका अलग ही संघर्ष है! जिस वक्त महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त करने की खबरें आ रही हैं उसी वक्त राजनीति में महिलाओं की खस्ता हालत की रिपोर्ट भी सामने आई है। ALSO READ: रवांडा की संसद में महिलाओं की सबसे ज्यादा भागीदारी, भारत की सुई अभी भी अटकी हुई

संयुक्त राष्ट्र महिला की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को सत्ता के सर्वोच्च पदों पर आने के लिए 130 साल और लगेंगे। राजनीति में भावुकता और धार्मिकता इसलिए ज्यादा है क्योंकि महिला सशक्तिकरण का ढोल पीटने के लिए अब ढोल भी फट चुका है।
 
भारतीय राजनीति में महिला सशक्तिकरण का हाल:
भारत में 18 सितंबर 2023 की शाम को राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने महिला आरक्षण का ट्वीट जारी कर दिया और कुछ ही देर में डिलीट भी कर दिया। हालांकि महिला आरक्षण बिल 2023 पास कर दिया गया लेकिन इसमें ताली बजाने जैसा कुछ भी नहीं है क्योंकि यह बिल 2029 तक लागू होगा। सरकार की इस टालमटोल से आप सत्ता में महिलाओं की स्थिति का आकलन कर सकते हैं। 
 
सत्ता में पुरुषों की बराबरी के लिए 130 साल लगेंगे:
संयुक्त राष्ट्र महिला की रिपोर्ट के अनुसार 10 जनवरी 2024 तक, 26 देश ऐसे हैं जहां 28 महिलाएं राज्य या सरकार की प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं। इसके अनुसार अगले 130 वर्षों तक सत्ता के सर्वोच्च पदों पर जेंडर इक्वलिटी हासिल नहीं की जा सकती है। यह रिपोर्ट राजनीति के क्षेत्र में है लेकिन सवाल अभी भी कायम है कि अगर महिलाओं को सत्ता के सर्वोच्च पदों पर आने के लिए 130 साल और लगेंगे तो आज हम महिला सशक्तिकरण की बात कैसे कर सकते हैं?
 
सिर्फ 15 देशों में एक महिला राज्य प्रमुख:
इस रिपोर्ट के अनुसार केवल 15 देशों में एक महिला राज्य प्रमुख है और 16 देशों में एक महिला शासन प्रमुख है। इसके अलावा आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि मंत्रालयों का नेतृत्व करने वाले कैबिनेट सदस्यों में 22.8 प्रतिशत महिलाएं प्रतिनिधित्व करती हैं। आपको बता दें कि ये आंकड़े दुनियाभर के हैं। सिर्फ 13 देश ऐसे हैं जिनमें कैबिनेट मंत्रियों के 50% या उससे अधिक पदों पर महिलाएं हैं। ALSO READ: लड़कियों की जिंदगी को मोए-मोए कर रही रील्‍स की लत! इंस्‍टा पर रोज साढ़े 9 करोड़ शेयरिंग, एक दिन में 100 मिनट बर्बाद
 
इस विषय पर वेबदुनिया ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन से बात की। आइए जानते हैं कि इनके इस बारे में क्या विचार हैं...
 
हम किसकी बराबरी करने की बात कर रहे हैं : सुमित्रा महाजन
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने बताया कि मुझे यह बात अखरती है कि हम किसकी बराबरी करने की बात कर रहे हैं! हम पुरुषों से झगड़ने मैदान में नहीं आए हैं। महिलाओं को सम्मान में चाहिए कि उसे भी इंसान मानकर, इन्सान की तरह ही ट्रीट किया जाए और उसे आगे बढ़ने दो। वो कमजोर नहीं है, हमारी जो क्षमता है उस क्षमता को रास्ता मिलना चाहिए। 
 
मैं जब भी महिला सशक्तिकरण की बात करती हूं तो मैं हमेशा कहती हूं कि मैं स्त्री हूं इसलिए मुझे बाजू में भी न करना और मैं स्त्री हूं इसलिए दोगुना सम्मान देकर आगे भी न बढ़ाना। राजनीति में महिलाओं की स्थिति की बात करें तो महिला जब भी सोचती है तो वह एक दृष्टि से नहीं सोचती है क्योंकि उसका अनुभव व्यापक रहता है। जब महिला को राजनीति में टिकट मिलती है तो उसे आगे भी मौका दिया जाए ताकि वो काम करके दिखाए।
 
मानवता एक पक्षी है जिसके दो पंख हैं: जनक पलटा
सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री डॉ. जनक पलटा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महिला की इस रिपोर्ट पर मैं आंकलन कर चुकी हूं और मुझे नहीं लगता है कि महिलाओं को पुरुषों की बराबरी के लिए 130 साल लगेंगे। हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि माता-पिता अपने बच्चों को कैसे तैयार करते हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ तो कई सालों से सुनते आ रहे हैं लेकिन बेटी बचाने के लिए बेटों को भी पढ़ाना ज़रूरी है।

मानवता एक पक्षी है जिसके दो पंख हैं, स्त्री और पुरुष! दोनों का बराबर होना ज़रूरी है। लेकिन पंचायत की महिलाएं अगर सरपंच चुनी भी जाती हैं तो उनकी जगह उनके पति बैठते हैं। आरक्षण मिलने के बाद भी पुरुष महिलाओं को सत्ता की कुर्सी पर नहीं बैठने देंगे। सरकार सिर्फ नीति बना सकती है लेकिन इसका बदलाव समाज ही कर सकता है।
 
नीति क्षेत्र में भारत की स्थिति भी जान लो
अगर भारत की स्थिति की बात करें तो आपको नीति क्षेत्र में कुछ खास सुधार देखने को नहीं मिलेगा। वर्तमान में 17वीं लोकसभा के कुल सदस्यों में से लगभग 15 प्रतिशत महिलाएं हैं। जबकि राज्य विधानसभाओं में कुल सदस्यों में औसतन 9 प्रतिशत महिलाएं हैं। इसके अलावा महिला सदस्यों की संख्या पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15% तक हो गई है। इन आंकड़ों से आप भारत में निति क्षेत्र में महिलाओं की स्तिथि का आंकलन कर सकते हैं।
 
महिलाओं से ही विकास की नींव रखी जा सकती है
इस बात के स्थापित और बढ़ते प्रमाण हैं कि राजनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं का नेतृत्व ज़रूरी है। उदाहरण के लिए अगर भारत की बात की जाए तो रिसर्च के अनुसार पंचायतों में महिला-नेतृत्व वाली परिषदों वाले क्षेत्रों में पेयजल परियोजनाओं की संख्या पुरुष-नेतृत्व वाली परिषदों की तुलना में 62% अधिक थी। अगर महिलाओं को बराबरी से मौका दिया जाए तो देश का विकास तेजी से होगा। 
 
हाल ही में लोकसभा चुनाव आने वाले हैं और अब देखना यह है कि बीजेपी, कांग्रेस व अन्य पार्टी महिलाओं को कितने प्रतिशत टिकट देते हैं और राजनीति में शामिल करते हैं। 
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