Jammu Kashmir Lok Sabha Elections 2024: अगर यह कहा लाए कि जम्मू कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य किसी भी दिग्गज के लिए जीत की राह आसान नहीं बनाता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं हेागी। यह पूरी तरह से सच है कि जम्मू कश्मीर की राजनीति के गतिशील परिदृश्य में, प्रसिद्ध नेताओं को भी कई बार लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा है। डॉ. फारूक अब्दुल्ला से लेकर मुफ्ती मोहम्मद सईद तक, कई प्रमुख हस्तियों ने चुनावी असफलताओं का अनुभव किया है।
जब फारूक अब्दुल्ला भी चुनाव हार गए : परंपरागत रूप से, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कश्मीर घाटी में प्रभाव कायम किया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस ने जम्मू क्षेत्र में दबदबा बनाए रखा है। एक उल्लेखनीय उदाहरण में, नेकां नेता डॉ. फारूक अब्दुल्ला को 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान पीडीपी के तारिक हमीद कर्रा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। कर्रा ने 50.58 प्रतिशत वोटों के साथ जीत हासिल की, जो फारूक अब्दुल्ला के 37.04 प्रतिशत से बेहतर थे। हालांकि, कर्रा के पीडीपी से अलग होने के बाद 2017 में हुए उपचुनाव में फारूक अब्दुल्ला ने अपनी सीट दोबारा हासिल कर ली थी।
महबूबा ने भी झेला हार का दंश : इसी तरह, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती, जिन्होंने 2004 और 2014 में अनंतनाग सीट पर जीत हासिल की थी, को 2019 में हार का सामना करना पड़ा जब नेकां के हसनैन मसूदी विजयी हुए। मुफ्ती मोहम्मद सईद 1998 में अनंतनाग सीट हासिल करने में सफल रहे थे, लेकिन इसके बाद 1999 के चुनावों में उन्हें नेकां के अली मोहम्मद नायक के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था।
आजाद भी हारे : यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के दिग्गजों को भी चुनावी झटके का सामना करना पड़ा। एक प्रमुख भाजपा नेता चमनलाल गुप्ता उधमपुर सीट पर 2004 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार चौधरी लाल सिंह से हार गए थे। 2014 में कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद को इसी सीट पर भाजपा के डॉ. जितेंद्र सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
डॉ. जितेंद्र सिंह की जीत 2019 में और मजबूत हो गई जब उन्होंने उधमपुर सीट पर शाही परिवार के विक्रमादित्य सिंह पर जीत हासिल की। ये चुनावी नतीजे इस क्षेत्र में राजनीतिक भाग्य के उतार-चढ़ाव का संकेत देते हैं, जिसमें सत्ताधारी और चुनौती देने वाले एक जटिल चुनावी परिदृश्य की ओर बढ़ रहे हैं।
उधमपुर, अनंतनाग और श्रीनगर संसदीय सीटों में पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई है, जो मतदाताओं की विविध और विकसित होती राजनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाती है। जैसे-जैसे यह क्षेत्र भविष्य के चुनावों के लिए तैयार हो रहा है, इन चुनावी लड़ाइयों की विरासत जम्मू कश्मीर की राजनीतिक कहानी की रूपरेखा को आकार देती जा रही है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala