मित्रता की गहराई समझना मुश्किल

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हेलो दोस्तो! बहुत कम लोग हैं इस दुनिया में जो अपने फैसले से संतुष्ट रहते हों, चाहे उसका नतीजा जो भी निकलता हो। यदि उस निर्णय का परिणाम मन माफिक न निकला तो पछता-पछताकर अपनी जिंदगी का ढर्रा बिगाड़ लेते हैं। उनके दिमाग में एक ही विचार चलता रहता है कि जो था वह क्या बुरा था।

आखिर क्या सोचकर जो मिल रहा था उससे इंकार किया। उस स्थिति को फिर से बनाने का पूरा प्रयास ही उन्हें हास्यास्पद बना देता है। वे अपना ध्यान केवल उस गुत्थी को समझने पर केंद्रित कर देते हैं। वे अपने आपको दुनिया से इस कदर काट लेते हैं कि जो कुछ उनसे छूट गया है उसे पाने का विकल्प नहीं बन पाता।

अपना कॅरिअर, अपनी सेहत, अपनी अन्य खुशियां दरकिनार कर बस अपने गलत निर्णय का मन ही मन रोना रोते रहते हैं। अपनी इस भूल को किसी से बांटना भी वे अपनी हेठी समझते हैं। नतीजतन, उनका गम मन में गोल-गोल घूमकर बड़ा घेरा बनाता जाता है। और, उन्हें उस घेरे से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता है।

ऐसे ही एक चक्रव्यूह में गुम हो गई हैं सुनीता (बदला हुआ नाम)। उनके हाथ से पुरानी डोर छूट चुकी है जिसे पकड़ने का सारा प्रयास उन्हें असफल होता दीखता है। दरअसल, सुनीता एक राष्ट्रीयकृत बैंक में आईटी विभाग में मैनेजर हैं। उसी पोस्ट पर अपने पूर्व सहयोगी के साथ १५ दिनों तक काम करने के बाद उन्होंने वह पद संभाला।

आंध्र प्रदेश के उस सहयोगी को उन्होंने अपने काम में बेहद गंभीर पाया। अपने काम में डूबे रहने वाले अपने सहयोगी के प्रति उनकी आस्था और भी बढ़ गई जब उन्होंने सुनीता को न केवल बहुत ही सहयोगपूर्ण ढंग से काम समझाया बल्कि बाद में भी फोन करके कोई समस्या आने पर सुलझाते रहे।

उन्हीं बातचीत के दरमियान कभी-कभार वे बेहद सभ्य भाषा में उनका निजी हालचाल भी पूछ लिया करते थे और एक प्रकार की नरमदिल होने का अहसास भी कराते थे। सुनीता को यह सब अच्छा लगता था पर फिर भी न जाने क्यों उसने एक दिन कह दिया कि उससे निजी मुद्दे पर बात न की जाए।

फिर क्या था, उनके दोस्त ने भी कह दिया कि वह आंध्र प्रदेश में किसी के साथ जुड़े हुए हैं और अब फोन भी नहीं करते हैं। सुनीता के फोन करने पर वे अब केवल औपचारिक संवाद ही बनाते हैं। सुनीता अपने दोस्त को खोना नहीं चाहती हैं और अब उन्हें जीने का कोई मजा नहीं आ रहा है। उन्हें लगता है कि उनके जीवन में अब कभी भी खुशी दोबारा नहीं मिल सकती है। उनकी जिंदगी में खुशियों का मानो हमेशा के लिए फुलस्टॉप लग चुका है।

सुनीता जी, केवल आप अकेली ऐसी गलतियां करने वालों में नहीं हैं बल्कि अक्सर जब कोई चीज, भावना, संवेदना लोगों को बिना प्रयास के मिल जाती है तो वे उसकी अहमियत नहीं समझ पाते हैं। उन्हें लगता है उस व्यक्ति की कोई गरज होगी इसीलिए वह इतना प्यार या अपनत्व दिखा रहा है। अच्छा लगते हुए भी वे सोचते हैं कि जब उन्हें पसंद किया जा रहा है तो वह चाहे जैसी भी प्रतिक्रिया दिखाएं या अनमना व्यवहार करें सामने वाला अपने आपको न्योछावर ही करता रहेगा। पर, जब ऐसा नहीं होता है तो सामने वाले के पांव के नीचे से जमीन खिसक जाती है। ऐसा ही आपके साथ हुआ है।

जो व्यक्ति जितनी ईमानदारी और गंभीरता से किसी व्यक्ति को अपना मानकर उसे प्यार करता है वह ठुकराए जाने पर उतनी ही गंभीरता से दूर भी चला जाता है। किसी भी सच्ची भावना को महसूस करने और व्यक्त करने में इंसान की शक्ति लगती है। व्यक्ति अपना अनमोल समय उस पसंदीदा इंसान के विषय में सोचने और उसे संवारने के बारे में लगाता है। ऐसे में कोई उस प्रयास की कद्र करने के बजाय उसे दूर रहने की सलाह दे तो उसका दिल टूटना या मोह भंग होना स्वाभाविक है। ऐसे व्यक्ति को एक बार फिर उसी पटरी पर लाना असंभव ही है।

उस व्यक्ति को पाने की आस छोड़कर संवाद का प्रयास करते रहना चाहिए। शायद सामान्य बातचीत और समय के साथ मन बदल जाए। पर, अपना जीवन अपनी गलती के कारण रोक देना उचित नहीं है। यह पहले से भी बड़ी गलती होगी। किसी और को बदलना भले ही आपके हाथ में न हो पर अपने आपको बदलना खुद आपके हाथ में है। ज्यादा से ज्यादा काम और अपने काम में दक्षता लाने की कोशिश करनी चाहिए।

अच्छा दिखने और फिट रहने के लिए व्यायाम, संतुलित आहार का सहारा लेना चाहिए। स्मार्ट दिखने के लिए अपनी पोशाक पर ध्यान देना चाहिए। अपने आपको प्यार करने से बहुत सारी नकारात्मक बातें मन से निकल जाती हैं। और, मन शांत होने पर कोई भी समस्या उतनी बड़ी नहीं दिखती जितनी कि वह नजर आती है। ऐसे में पुराने दोस्त से नाराज होने के बजाय स्वस्थ संवाद बनाए रखना चाहिए।

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