प्रेम प्रत्येक प्राणी को प्रकृति प्रदत्त अद्भुत भाव है। सच पूछा जाए तो यह उसकी 'इंस्टिंक्ट' यानी 'मूल प्रवृत्ति' है, जो जन्मजात होती है। ईर्ष्या, घृणा, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि भी मूल प्रवृत्तियाँ हैं, लेकिन प्रेम की बात ही कुछ और है। दूसरी अधिकांश प्रवृत्तियाँ मनुष्य को पशुता की ओर प्रवृत्त करती हैं तो प्रेम उसे दिव्य ऊँचाई की ओर ले जाने में सक्षम है।
मनुष्य ने सभ्य होने पर प्रेम की अभिव्यक्ति को नए आयाम दिए। वास्तव में प्रेम को व्यक्त कर सकने योग्य भंगिमाएँ तो प्रकृति ने उसे दे ही रखी थीं। वैसे सच पूछा जाए तो प्रेम को शब्दों के जरिए पूर्णतः व्यक्त कर पाना शायद संभव नहीं है। गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, महात्मा गाँधी, मदर टेरेसा आदि ने प्रेम को संपूर्ण मानवता के आयाम दिए। लेकिन मोटे रूप में ऐसी मानवमात्र के प्रति प्रेम की उदारता महामानवों द्वारा ही संभव है।
हमने प्रेम को खानों में विभक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन प्रेम तो प्रेम ही है। अभागा है दुनिया में वह व्यक्ति जिसने किसी को प्रेम नहीं किया या जो किसी के प्रेम का पात्र नहीं बना। ध्यान रखने लायक बात यह है कि जहाँ अहम् होगा, वहाँ प्रेम नहीं होगा। जहाँ अविश्वास होगा, स्वार्थ होगा, भेदभाव होगा वहाँ भी प्रेम नहीं होगा। दूसरी ओर जहाँ प्रेम होगा वहाँ लगाव होगा, अपनापन होगा, आत्मत्याग व समर्पण भी होगा।
किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच सच्चा प्रेम अक्सर अन्य लोगों के लिए जलन की वजह बनता है। दो भाइयों में, दो पड़ोसियों में या दो सहकर्मियों में भी अधिक लगाव लोगों को बर्दाश्त नहीं होता। वे किसी एक को अकेला पा उसे दूसरे के विरुद्ध झूठी-सच्ची, कही-अनकही कहकर अलगाव, अविश्वास का बीज बो देते हैं, जो आगे चलकर उनके बीच दूरियाँ कायम करता है।
शायद प्यार ही ऐसा जज्बा है जिस पर विश्व की सभी भाषाओं में सर्वाधिक लिखा गया है। प्रेम-प्रसंग कई लड़ाइयों के कारण भी रहे हैं। वहीं सच्चे प्रेमी प्यार की मिसाल बन गए। लैला-मजनू, हीर-राँझा, सस्सी-पुन्ना, सोहनी-महिवाल आदि के किस्सों ने आम आदमी के बीच खासी लोकप्रियता पाई। किस्सागोई के जमाने में प्यार-मोहब्बत का मार्केट हमेशा गरम रहा। शायद हिन्दी फिल्मों में सर्वाधिक फिल्में प्रेम कथाओं को लेकर ही बनी हैं।
शेक्सपीयर ने प्रेमी, पागल और कवि तीनों को एक ही श्रेणी में रखा है। तीनों चन्द्रमा की किरणों से प्रभावित होते हैं। कल्पना लोक के वासी होते हैं। सच्चा प्रेमी दिल से काम लेता है, दिमाग से नहीं इसलिए प्रेम की खातिर वह दुनिया से लड़ने को तैयार हो जाता है। वह प्रेम में पागल रहता है। अपने साथी से मिलने, उससे अपने दिल की बातें कहने की बेचैनी उसमें बेइंतहा होती है। शुरू में अपने प्रेम को वह गुप्त रखना चाहता है, बदनामी से बचना चाहता है, पर बाद में वह इसकी भी परवाह नहीं करता।
हालाँकि आज के हाईटेक जमाने में प्रेम मन से हटकर तन या धन से अधिक प्रभावित हो गया लगता है। लेकिन जहाँ मन नहीं, वहाँ प्रेम मात्र एक समझौता है। दुनिया में एकतरफा प्रेम और विदेह प्रेम (प्लेटोनिक लव) के भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। कई लोग प्लेटोनिक लव को आत्मिक प्रेम मानते हैं जिसमें व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति आजीवन लगाव व सम्मान रखता है, पर सब कुछ अप्रकट रूप में। सामान्यतः मजबूरी के जाए ये प्रेम-प्रसंग प्रेम की उच्चता को कायम रखते हैं।
दिन-ब-दिन स्वार्थ, हिंसा और वासना के चंगुल में फँस रही दुनिया को प्रेम की आवश्यकता सदा से रही है। मनुष्य में प्रेम की प्यास कभी कम नहीं हुई। क्रूर से क्रूर आदमी के भी हृदय के किसी कोने में प्रेम का झरना बहता रहता है। कई बार तो उसके प्रति किसी के द्वारा की गई क्रूरता उसे क्रूर बना देती है। कितनी ही बार प्रेम में मिला धोखा व्यक्ति को 'सिनिक' या 'सेडिस्ट' बना देता है।
मानव मन व मानव प्रकृति बहुत जटिल है, इसलिए मानवीय व्यवहार के बारे में अंतिम रूप से कुछ कह पाना कठिन है। फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सुख बाँटेंगे तो सुख मिलेगा, प्यार बाँटेंगे तो प्यार मिलेगा। इसलिए प्यार बाँटते रहो। दूसरी ओर यदि प्यार मिले तो उसे भी झोली में सहेज लो।