अरे शालिनी, नितिन तो स्वभाव से बहुत अच्छे हैं। बड़े कूल लगते हैं। मैंने अपनी सहेली शालिनी से उसके पति नितिन की तारीफ करते हुए कहा तो इस पर शालिनी बोली, हाँ अच्छे तो हैं पर?? पर क्या? मैंने उससे पूछा? तो वह बोली कि क्या बताऊँ इनका गुस्सा बहुत तेज है।
इन्हें गुस्से में सही-गलत का बिलकुल होश नहीं रहता। वो तो किसी को भी नहीं रहता। मैंने उसे समझाते हुए पूछा कि जब भी तुम्हारी लड़ाई होती है तो वे गुस्से में करते क्या हैं? तुम्हे गालियाँ देते हैं, मारते हैं या घर का सामान उठाकर फेंकने लगते हैं। तो वह बोली कि नहीं नितिन गुस्से में अपने आप को चोट पहुँचाते हैं।
कभी अपना सिर दीवार में मार लेते हैं तो कभी पास पड़ी चप्पल या जूते से अपने आप को मारते हैं और साथ में मुझे कहते है कि मैं मर जाऊँगा तो तुम चैन से रहोगी। अब तुम ही बताओ कि मैं क्या करूँ? उन्हें कुछ हो गया तो क्या मैं चैन से जी पाऊँगी? मैं हमेशा यही कोशिश करती हूँ कि कोई भी ऐसा काम न करूँ जिस पर उन्हें गुस्सा आए पर जब भी कभी किसी बात पर उन्हें गुस्सा आ जाता है तो उस समय मेरा घर जैसे नरक हो जाता है।
मैं और बच्चे सहम जाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान किसी तरह इनका गुस्सा शांत हो जाए। शालिनी को मैं बहुत समय से जानती हूँ। वह वाकई एक कुशल गृहणी और दो प्यारे से बच्चों की माँ है। नितिन भी मुझे अच्छे ही लगते हैं पर फिर शालिनी ऐसा क्यों कह रही है?
ND
अकसर आजकल कई घरों में ऐसा ही होता है। पति-पत्नी की लड़ाई कई बार इतना भयंकर रूप धारण कर लेती है कि फिर उसे संभालना और सुलह करनी मुश्किल हो जाती है। फिर आजकल एकाकी परिवार होने के कारण इस लड़ाई में कोई बीच-बचाव करने वाला या सलाह देने वाला भी नहीं होता।
कई बार पति-पत्नी दोनों का ही अहम आड़े आ जाता है और वो दोनों को भी एक दूसरे के आगे झुकने नहीं देता और लड़ाई वहीं की वहीं रहती है। फिर आजकल सभी की लाइफ इतनी व्यस्त हो गयी है। जीवन से शांति गायब है जिसकी वजह से दिमाग अशांत रहता और अशांत दिमाग कई तरह की गलत बातों के लिए उपजाऊ भूमि का काम करता है।
अकसर आपसी लड़ाई में यह भी देखा गया है कि पति या पत्नी एक दूसरे से गुस्से में बहुत कड़वी बातें भी कह देते हैं जैसे कि नितिन ने शालिनी से कही। हालांकि गुस्सा ठंडा होने पर अपनी गलती का भी अहसास होता है परन्तु तब तक वे कड़वी बातें जबान से निकलकर दूसरे का मन घायल कर चुकी होती हैं।
पहले संयुक्ज परिवार होने से गृहस्थी का बोझ सब मिल-जुलकर उठा लेते थे। किसी भी बात पर सलाह देने के लिए घर में बड़े-बुज़ुर्ग होते थे जो समय पड़ने पर मनोवैज्ञानिक की तरह अपने अनुभवों की मदद से सभी झगड़ों को सुलझा दिया करते थे। पर आजकल हम इतने अकेले हो गए हैं कि अपनी दिल की बात और अपनी परेशानी बेझिझक कहने के लिए किसी अनजाने को सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ढूँढते हैं और समस्या बढ़ने पर उसका हल पूछने मनोवैज्ञानिक के पास जाते हैं।
तो क्या इस परेशानी का कोई हल नहीं। इस परेशानी का एक बहुत ही आसान हल है, और वो है संवाद यानी बातचीत। कैसी भी परेशानी या वैचारिक मतभेद हो, उसे आपसी बातचीत द्वारा सुलझाया जा सकता है। इसलिए कभी भी अपनों पर गुस्सा करने से पहले ये सोचे कि मेरे ये अपने ही तो मेरी असली पूँजी है।
इनसे लड़कर और इनका दिल दुखाकर मैं अपना दिल ही दुखाऊँगा और फिर गुस्सा मेरी सेहत के लिए भी कितना खराब है। इतना सोचते ही आपका आधा गुस्सा तो गायब हो जाएगा। फिर आपसी बातचीत द्वारा मसले को सुलझाने की कोशिश करें। फिर देखिए कि बिगड़ी बात कैसे बनती है।