हेलो दोस्तो! जब आप छोटे होते हैं तब माता-पिता के बिना आपका एक दिन भी नहीं कटता। स्कूल या कहीं और से लौटकर जब आप उन्हें नहीं पाते हैं तो विचलित हो जाते हैं। तब आपको लगता है कि बस वे मिल जाएं तो आप उनके पास ही बैठे रहेंगे - न खेल, न दोस्त, बस मम्मी-पापा चाहिए। उनके लौट आने पर आप थोड़ी देर उनसे चिपके भी रहते हैं। उनके प्यार-दुलार और थोड़ी बातचीत के बाद आपको राहत मिलती है और आप आश्वस्त होकर किसी और काम में लग जाते हैं। आप निश्चिंत हो जाते हैं कि वे आपके आसपास ही मौजूद हैं।
अपनी किशोरावस्था के दौरान आपको लगता है कि जीवन में आप कभी अपने माता-पिता के बिना नहीं जी पाएंगे। उस समय आप सोचते हैं कि पेरेंट्स से बढ़कर आपके जीवन में और कोई नहीं हो सकता है। आपको लगता है किसी और के लिए आप कभी अपने माता-पिता को दुख नहीं पहुंचा सकते हैं। उनके ऐशोआराम के लिए जो कुछ आपसे बन पड़ेगा, आप जुटाएंगे।
पर समय बीतने के साथ जैसे-जैसे आप युवा होते जाते हैं आप किसी की ओर आकर्षित होते हैं। किसी की कोई अदा, उसका मदद करने वाला स्वभाव या आपको सहज करने की कला भा जाती है। फिर आपको उस व्यक्ति की निकटता अच्छी लगने लगती है। आप अपने जीवन में एक ऐसी खुशी महसूस करते हैं जो पहले कभी नहीं की थी। आपको लगता है मां-बाप का प्यार ही काफी नहीं था और अब इस दोस्त के प्यार के साथ आपका जीवन परिपूर्ण हो पाया है। अचानक आपको लगता है कि इस दोस्त के बिना आप जी नहीं पाएंगे।
आपको यह याद करने पर भी याद नहीं आता कि कैसे आप अपने मां-बाप से अलग होने पर विचलित हो जाते थे। आपको आश्चर्य होता है कि क्या सचमुच अपने मां-बाप से बिछुड़ने पर आप उतने भावुक होते थे। आप उसी माता-पिता को अपने प्यार के खिलाफ कुछ बोलने या रोकने-टोकने पर कोई भी दुख पहुंचाने में हिचकिचाते नहीं हैं जिन्हें सुख पहुंचाने की आपने मन ही मन न जाने कितनी कसमें खाई थीं। जिनका आसपास होना ही आपको जन्नत के समान लगता था, वही मां-बाप अब आपको आपकी खुशी के दुश्मन लगते हैं। एक समय ऐसा आता है जब आप यह फैसला लेते हैं कि आप मां-बाप के बिना तो जी लेंगे पर अपने प्यार के बिना नहीं।
भावनाओं के इस बदलाव के बावजूद किसी रिश्ते को झूठा नहीं कहा जा सकता है। जिस समय जिसकी जरूरत थी वही सच था पर आप यह भूल जाते हैं कि जिस प्रकार आप मां-बाप के बिना जीना सीख लेते हैं उसी प्रकार किसी प्यार के बिछुड़ने के बाद भी आपका जीवन चल सकता है। किसी कारण यदि आपका प्यार आपसे दूर जा रहा हो तो अपना कॅरिअर, अपनी जिंदगी दांव पर लगाने के बजाय कड़वी हकीकत स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए, न कि अपनी पूरी शक्ति किसी व्यक्ति को अपनी ओर मोड़ने में लगानी चाहिए।
ऐसा ही जुनून कमल (बदला हुआ नाम) पर छा गया है। वह हर हाल में कंगना (बदला हुआ नाम) को पाना चाहते हैं। कंगना कमल की केवल दोस्त थी और कमल के पागलपन की वजह से कहीं दूर चली गई है। उसने कमल से मिलना-जुलना और सारा संवाद बंद कर दिया है। पर कमल को लगता है वह उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे। उन्हें लगता है अब कंगना के बिना जीवन में खुशी नहीं आ सकती है।
कमल जी, हर व्यक्ति के लिए मां-बाप जीवन की धुरी के समान है। जब हर शख्स उस धुरी के बिना भी जीने का हौसला जुटा लेता है तो फिर कुछ महीने या साल भर के दोस्त के बिना कोई क्यों नहीं जी पाएगा ? मां-बाप उस एंकर के समान होते हैं जिस पर आपके पूरे व्यक्तित्व का दारोमदार होता है।
आप प्रेम कब करें कि आपका जीवन बिगड़ने के बजाय सुधर-संवर जाए, यह देखना होगा। किशोर या युवा होने का यह मतलब नहीं है कि आप प्रेम के चक्कर में ही पड़े रहें।
पर किसी भी कारण से उनसे बिछुड़ने पर आप खुद को संभाल लेते हैं। उनके नहीं रहने पर जीवन थमता नहीं है। उसी प्रकार अच्छे दोस्तों से मिले प्यार और सहयोग को अपनी स्मृति में कैद कर अपनी नई मंजिल की तलाश में जुट जाना चाहिए। यह सोचना कि फलां व्यक्ति के बिना जीवन समाप्त हो गया, फिजूल है। यह अपरिपक्व होने की निशानी है। किसी भी गंभीर संबंध के लिए पहले परिपक्व ढंग से सोचना सीखिए।
रिश्ता हो या कॅरिअर, व्यावहारिक पक्ष तो ध्यान में रखना ही पड़ेगा। जो समय की नजाकत नहीं पहचानते वे मात खाते हैं। एक विद्यार्थी के लिए पढ़ना ही काफी नहीं है बल्कि वह कब पढ़ता है यह भी मायने रखता है। मसलन, कोई परीक्षा के पहले तो बिलकुल ही न पढ़े और परीक्षा समाप्त होते ही दिन-रात पढ़ता रहे तो उसे क्या हासिल होगा। उसी प्रकार आप प्रेम कब करें कि आपका जीवन बिगड़ने के बजाय सुधर-संवर जाए, यह देखना होगा। किशोर या युवा होने का यह मतलब नहीं है कि आप प्रेम के चक्कर में ही पड़े रहें। प्रेम के प्रदर्शन व निभाने के लिए भी उचित समय होना चाहिए।