सूखी नदी भुला समंदर से जोड़ें रिश्ता

मानस

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हेलो दोस्तो! समाज, बदलाव की धारा के संग कितनी तेजी से बहता जा रहा है। जिसे देखो वही उस बहाव में बहता जा रहा है। पर, मजे की बात यह है कि हर कोई यही रोना रोता रहता है कि अब पहले जैसे लोग नहीं रहे।

शायद इस कराह के पीछे जो सोच काम करती है, वह यह कि अब भी बहुत से लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। बस वह बदले हुए हालात के साथ चलने को विवश हैं। यही कारण है कि बेहद बिंदास आत्मविश्वास से भरा व्यक्ति भी नकारे जाने की परिस्थिति में टूट जाता है और उसका मन इतना ज्यादा विषाद से भर कर एक स्थान पर अटक जाता है कि उसे तूफानी गति से बदलता समाज हिला नहीं पाता है। उस वक्त उस व्यक्ति को महसूस होता है, उसने बदले हुए समाज के मिजाज को रत्ती भर भी आत्मसात नहीं किया है।

ऐसी ही मनःस्थिति में पड़े हुए हैं बादल (बदला हुआ नाम)। बादल आज भी पाँच वर्ष पीछे के छूटे प्रेम प्रसंग को लेकर परेशान हैं। आज भी इस आस में बैठे रहते हैं कि शायद वह पलटकर उनसे बात कर ले। पर उनकी ख्वाहिश पाँच सालों में न तो पूरी हुई और न ही आगे पूरी होती दिखती है।

आप लाख कोशिश कर लें पर जरूरी नहीं कि सामने वाला आपके मन की बात को आत्मसात कर पाया हो। यह कतई आवश्यक नहीं कि एक प्रयास के बावजूद दो व्यक्तियों की भावना का स्तर समान हो। यही कारण है कि जब दो प्यार करने वालों में मतभेद होता है तो एक जीवन की राह में आगे बढ़ जाता है और दूसरा उसी मुकाम पर रुक जाता है।

ठहरा हुआ मन यह सोच-सोचकर और भी आहत होता है कि क्या वाकई उस व्यक्ति को उससे तनिक भी लगाव नहीं था? क्या प्रेम में मिलने की तड़प व खुशी के पल सभी दिखावे के थे? ऐसे विश्लेषण का परत दर परत हटाकर वह और भी अवसाद की खाई में गिरता जाता है। नकारात्मक सोच का एक ऐसा समंदर, जहाँ सिवाय डूबने के और कोई चारा उसे नजर नहीं आता।

बादल जी, आप मन के अँधियारे में इतने गहरे तक डूब चुके हैं कि आपको पार उतरने का बड़े से बड़ा सहारा भी नजर नहीं आता होगा। कहावत है कि डूबते को तिनके का सहारा बशर्ते कि उस तिनके का सहारा कोई लेना चाहे। आप तिनका तो क्या किसी नाव का सहारा लेने को भी तैयार नहीं हैं। इस भंवर से आपको खुद ही निकलना पड़ेगा। जिस दिन आप इस कुचक्र से निकलना चाहेंगे उस दिन आपको अनेक हाथ सहारा देते हुए दिख जाएँगे वरना दूसरों की सारी कोशिश बेकार ही जाएँगी।

जो व्यक्ति आपको छोड़कर चला गया उसे आप अब भी क्यों समय दे रहे हैं। पाँच साल का वक्त बहुत होता है। पाँच महीने तक रूठने-मनाने, गलतफहमियाँ दूर करने की बात समझ में आती है। वह भी तब जब सामने वाला भी इस रिश्ते के टूटने से प्रभावित दिखे। उसने भी जीवन का रुख दूसरी ओर न मोड़ लिया है। पर आप तो आत्महत्या से भी ज्यादा बड़ा गुनाह कर रहे हैं। अपनी आत्मा, उमंग और भविष्य को इस प्रकार मार-मार कर जीना अपना खून करने के ही समान है।

आपने अपने आपको काफी सजा दे दी है। अब खुद को माफ कर दें। दरअसल, आपको इस बात की तकलीफ है कि आपने ऐसे इंसान से क्यों प्यार किया जिसे आपसे प्रेम नहीं था। इसलिए आप उस दिन के इंतजार में हैं कि कैसे वह पलटकर आए और आपकी सोच गलत साबित हो। पर, ऐसा न हुआ और न ही होगा।

आप ऐसा करें, जब भी आप उसे याद करें उसे कागज पर लिखना शुरू कर दें। वह तमाम बातें आप लिखते रहें जो आपको नागवार गुजरी हैं। रोज सुबह उठकर हर वह बात जिससे आपका मन दुखा है, लिखें। आप उसके बारे में लिख-लिख कर ऊब जाएँगे। ऐसा लगेगा जैसे रोज उसके बारे में ढेर सारी बातें किसी से बाँटी हैं। ऐसा करते हुए एक दिन आपको लगेगा उसके बारे में सोचना, लिखना सबकुछ कितना ऊबाऊ और बेमानी है। लिख-लिखकर जब आप पन्ना इकठ्ठा करते जाएँगे तब आपको एहसास होगा कि इस कबाड़ से आपको जीवन में कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।

और, यकीन मानें जिस स्मृति से कुछ उपलब्धि न होती हो वह एक कूड़े के ढेर के समान है। आपका लिखा हुआ कागज का पन्ना स्थूल रूप में यह एहसास कराएगा कि आपने अपना कितना समय इस प्रकार कूड़ेदान में फेंका है। बहुत जल्द आपका मन कोई सार्थक कार्य करने को छटपटाने लगेगा। बादल जी, थोड़ा अपने आप पर भी गुमान करना सीखिए। क्या आप इतने गए बीते हैं कि कोई आपको प्यार न करे फिर भी आप उस व्यक्ति को ही याद किए जाएँगे। खुद को इतना हीन भी नहीं समझना चाहिए। विनम्र और अच्छा होने में कोई हर्ज नहीं है बशर्ते कि सामने वाला उस शराफत की कद्र करता हो।

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