रूसो का पत्र मदाम मरचेल के नाम

फ्रांसीसी क्रांति का जनक, जिसने सामंतशाही के अँधेरे में सबसे पहले बराबरी, भाईचारा और स्वतंत्रता! के तीन सूरज उगाए.....

अक्टूबर, 1760
प्रिये,
तुम्हारी भलमनसाहत भी कितनी क्रूर है! तुम क्यों एक अकेले और ऐसे व्यक्ति की शांति भंग करना चाहती हो, जो जिंदगी के मजों को त्याग चुका था? इसलिए कि उन मजों के बाद मिलने वाले दुःख उसे न झेलने पड़ें।

मैंने स्थायी स्नेह-संबधों की खोज में अपना पूरा जीवन बेकार किया है। अपनी बराबरी के समाज-स्तर में तो मैं कोई ऐसा संबंध बना नहीं सका। अब क्या मुझे तुम्हारे वर्ग में उसकी खोज करनी पड़ेगी?.....

महत्वाकांक्षा और स्वार्थ मुझे लुभा नहीं सकते... घमण्ड भी मुझमें नहीं है। हाँ- थोड़ा डर है। मैं किसी के प्यार-प्रदर्शन को ठुकरा नहीं सकता। शेष सब बातों की उपेक्षा मैं कर सकता हूँ। तब मेरी उस कमजोरी को तुम क्यों उभारना चाहती हो, जिस पर काबू पाने को मैं उत्सुक हूँ?

हम दोनों के बीच में जो समाजिक दूरी है वह भावों से लबालब भरे होने पर भी इन दो बेचैन दिलों को नजदीक न आने देगी। जो दिल प्यार की अभिव्यक्ति के एक से अधिक तरीके नहीं जानता और प्यार के सिवाय सभी बातों के लिए अपने को असमर्थ अनुभव करता है, उसके लिए क्या मात्र कृतज्ञता काफी रहेगी?

मदाम ला मरचेल! मित्रता...? तुम और मरचेल मित्रता की बातें करो तो उचित है। मैं तो मात्र इससे संतुष्ट नहीं। जब मैं तुम्हारी बातें सुनता हूँ तो पागल हो उठता हूँ। तुम आनन्द लेती हो और मैं तुम्हारी ओर खिंचता हूँ और अन्त में मुझे कई बातों के लिए पछताना पड़ता है और सुनो, मैं तुम्हारी इतनी सब उपाधियों से बहुत घृणा करता हूँ। मुझे तुम पर दया आती है कि तुम्हें उन सबों का भार ढोना पड़ता है। आह! तुम निजी जिंदगी के मजे लेने के लिए कितनी उपयुक्त हो। तुम क्लेरन्स में क्यों नहीं रहती?

खुशी की खोज में मैं वहाँ तो पहुँच सकता हूँ, पर मौण्टमारेन्सी का किला और लग्जमबर्ग का होटल-ऐसी जगहों में भला क्या यह संभव हो सकता है कि बराबरी के दो दोस्त अपने अनुभूतिशील हृदयों में प्यार भरकर पहुँचें? एक-दूसरे को उतनी ही इज्जत दें जितनी कि दूसरा पहले को देता है और सोचें कि मैंने जितना पाया है उतना लौटा भी दिया है?

मैं जानता हूँ और देख भी चुका हूँ, कि तुम अच्छी भी हो और उत्सुक भी। मुझे खेद है कि मुझे जल्दी ही इस बात का विश्वास क्यों नहीं हो गया? लेकिन उस वर्ग में जिससे तुम संबंध रखती हो और तुम्हारे जिन्दगी के तरीके में कुछ भी तो ऐसा नहीं है जो किसी पर स्थायी प्रभाव डाल सके।

एक के बाद एक नई चीजें नजर के सामने आती-जाती रहती हैं और कुछ भी दिमाग में टिक नहीं पाता। मदाम! तुम मुझे भूल जाओगी, जबकि मेरा अनुकरण तुम्हारे लिए असंभव हो जाएगा। मुझे दुःखी बनाने में तुमने बहुत काफी हाथ बँटाया है और यह बात माफ नहीं की जा सकती..।

रूसो

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