मतदाता सूची में गड़बड़ी की शिकायतें तो लंबे अरसे से मिल रही थीं, परंतु वे लोग निश्चिंत थे जिनके पास मतदाता परिचय पत्र थे और पहले भी अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके थे। लेकिन आज सुबह जब ऐसे लोग मतदान केंद्र पर पहुँचे तो अपना व परिजनों का नाम सूची से नदारद देखकर आश्चर्यचकित रह गए।
हजारों लोगों के पास मतदाता पहचान पत्र तो हैं लेकिन यदि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है तो वे वोट किसी भी कीमत पर नहीं डाल सकते। ऐसे लोग मन मसोसकर रह जाते हैं।
आखिर ये नाम गायब कैसे हो गए। इनमें अधिकांश मतदाता वर्षों से उसी स्थान या क्षेत्र में रह रहे हैं और पिछले चुनाव में भी अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके हैं। इनके पास अपना मतदाता परिचय पत्र भी है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में यह बहुत ही गंभीर समस्या है और इस स्थिति से भी मतदाताओं को बचाना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। मैंने मतदान केंद्रों पर आए ऐसे अनेक लोगों से बात की जो वोट डालने आए लेकिन मतदाता सूची में नाम न होने के कारण उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ा। उनका गुस्सा फूट पड़ता है कि मकान कर, जल कर और अन्य प्रकार के कर जमा करने की सूची में जब हमारा नाम है तो मतदाता सूचियों में क्यों नहीं है? इससे सरासर अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही उजागर होती है। आम आदमी से तो अपने कर्त्तव्य पालन की दुहाई दी जाती है परंतु ये लोग अपना काम ईमानदारी से क्यों नहीं अंजाम देते।
चुनाव आयोग ने इस वर्ष मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में जो अपनी ताकत का अंदाजा कराया काबिलेतारीफ है। आचार संहिता के लगते ही पुलिस ने भी अपने हाथ खूब साफ किए। स्थायी वारंट वाले गुंडे, छुटभैये नेता, इनके परिजन जो खुलेआम घूम रहे थे, उन्हें पकड़-पकड़कर अंदर किया। इन्दौर की महापौर को आचार संहिता उल्लंघन के मामले में चंदननगर थाने में कुछ घंटे बैठाए रखा।
किसी भी पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ कार्रवाई करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनाव आयोग में हुई शिकायत की सुनवाई आदि कार्रवाइयों के लिए जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। लेकिन इन सभी बातों के साथ यदि चुनाव आयोग मतदाता सूचियों के काम में भी इतनी सख्ती बरतता तो आज ऐसे मतदाताओं के मन में यह टीस नहीं उठती कि क्या हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत देश के नागरिक हैं?