बैंक ऑफ इंडिया की छतरपुर शाखा में हुए बैंक लोन घोटाले में पुलिस ने अपनी जांच को सीमित कर लिया है। पुलिस ने 9 किसानों के नाम पर स्वीकृत 60 लाख रुपए के मामलों में 5 एफआईआर दर्ज करके कार्रवाई कर रही है, जबकि बैंक में 277 फर्जी लोन स्वीकृत किए गए हैं। इसमें 7 करोड़ 53 लाख रुपए का गबन किया गया है। ये सारी गड़बड़ी बैंक मैनेजर अमीरसिंह धुर्वे के कार्यकाल में हुई है।
बैंक ऑफ इंडिया ने धुर्वे के कार्यकाल में स्वीकृत सभी केस की जानकारी छतरपुर कोतवाली पुलिस को सौंप दी है, लेकिन पुलिस 9 केसीसी की जांच तक ही सीमित है। 268 लोन केस की जांच में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस कारण पुलिस जांच पर सवाल उठ रहे हैं। इधर टीआई का कहना है कि जब तक शिकायतकर्ता नहीं आएंगे, वे अन्य केसों की जांच नहीं कर सकते।
क्या है पूरा मामला : बैंक ऑफ इंडिया में वर्ष 2013 और 2014 के दौरान 195 केसीसी केस और रोजगारमूलक योजनाओं (दुकान, गुमटी आदि खोलने छोटे-छोटे लोन) में 82 लोन केस स्वीकृत किए गए हैं। केसीसी के केस में 6 करोड़ 66 लाख रुपए और अन्य 82 लोन केस में 87.24 लाख रुपए जिले में वितरित किए गए हैं। मजे की बात यह है कि इनमें से किसी भी लोन केस में बैंक के पास रिकवरी नहीं आ रही है। पुलिस ने केसीसी के 195 केस में 9 किसानों की शिकायतों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किए हैं। मजे की बात यह है कि सिर्फ इन्हीं केस में बैंक के पास वसूली भी आ रही है। शेष किसी भी मामले में बैंक के पास कोई वसूली नहीं आ रही है।
बैंक ने दी पुलिस को जानकारी : बैंक ऑफ इंडिया की ओर से छतरपुर शाखा में हुए लोन घोटाले की जांच डीजीएम प्रशांत नायक ने की है। नायक ने अपनी जांच के दौरान लोन खाता धारकों के घर–घर जाकर सत्यापन भी किया था।
पर जांच में किसी हितग्राही ने लोन लेना नहीं स्वीकार किया। कई स्थानों पर उनके साथ विवाद भी हुए। इस कारण उन्होंने बैगर पुलिस बल के जांच कर पाने में असमर्थता जता दी। उन्होंने सभी लोन केस की डिटेल के साथ पुलिस को रिपोर्ट दी है, लेकिन पुलिस ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
सरकारी वकील ने कहा- 195 केसीसी जांच के दायरे में : घोटाले के आरोपी मैनेजर अमीर सिंह धुर्वे ने जबलपुर हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान शासन की ओर से वकील अमित पांडेय ने अदालत के सामने दलील देते हुए कहा है कि श्री धुर्वे के कार्यकाल में 195 किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए गए हैं।
इनमें गड़बड़ी की आशंका के चलते उनकी जांच की जा रही है। इन्हीं दलीलों को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट जज राजेंद्र महाजन ने अग्रिम याचिका को खािरज कर दिया था। ऐसे में जांच को आगे नहीं बढ़ाना छतरपुर पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल पैदा करता है। इस घोटाले में पुलिस की भूमिका शुरुआत से ही शक के दायरे में है। पुलिस ने शुरुआती शिकायतों पर भी ढुलमुल रवैया अपनाया था मजबूरन किसानों ने सीजेएम कोर्ट में इश्तगासा पेश की। मामले की सुनवाई करते हुए तत्कालीन सीजेएम संजय कास्तवार के आदेश पर पहली दो एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके बाद पुलिस ने तीन शिकायतें खुद दर्ज कराईं।
टीआई ने कहा- पीड़ित पास आए : केसीसी घोटाले की जांच छतरपुर कोतवाली थाना पुलिस कर रही है। सभी केसों की जांच नहीं करने के संबंध में टीआई सलिल शर्मा का कहना है कि सभी 195 केसीसी और 82 अन्य केस को फर्जी नहीं कहा जा सकता है। हमारे पास 9 किसान आए इसलिए हम उन्हीं की जांच कर रहे हैं। शर्मा का कहना है कि जिनके नाम पर लोन स्वीकृत हैं उनकी तलाश करके बयान दर्ज करना उनका काम नहीं है। बगैर किसी शिकायत के वे जांच नहीं कर सकते।