इंदौर। बनारस घराने से ताल्लुक रखने वाले पंडित राजन और साजन मिश्र के गायन से मानो इंदौर में बनारस उतर आया। उन्हें खुद भी लगता है इंदौर गाने-बजाने के साथ ही खाने-पीने में भी बनारस जैसा है, इसलिए इंदौर उन्हें घर जैसा ही लगता है। 'लाभ मंडपम' में पंडित राजन-साजन ने अपने गायन की शुरुआत राग नंद से की।
अपनी खयाल गायकी के लिए जाने जाने वाले राजन और साजन मिश्र जब मंच पर आए तो उन्होंने श्रोताओं से आग्रह किया कि वे भी हमारी इस पूजा में शामिल हों। यह कहकर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे संगीत को पूजा की तरह मानते हैं। धवल केश और हल्के सुनहरे रंग के कुर्ते में मिश्र बंधु गाते वक़्त मंच पर सरस्वती की पूजा करते ही नज़र आए। लग रहा था जैसे वो प्रार्थना कर रहे हों।
वहीं दूसरी तरफ अपनी गायकी के एक ऊंचे मकाम पर पहुंचकर भी मिश्र बंधु अपनी सादगी और बनारसी देशी अंदाज़ में बहुत सहज और सरल थे। उनके साथ तबले पर हितेंद्र दीक्षित और हारमोनियम पर विवेक बंसोड़ ने संगत की।
राग नंद में गाए उनके भजन 'सकल बन ढूंढूं' ने श्रोताओं को अपने आराध्य की खोज में लीन और ध्यानस्थ सा कर दिया। प्रस्तुति में यह उनका पहला भजन था, लेकिन मंच के इस तरफ सुनकार अपने सुनने की क्रिया में चरम पर थे।
गायन में आमतौर पर एकल गायकी को तरज़ीह दी जाती है, लेकिन राजन और साजन मिश्र साथ में इस तरह घुल-मिलकर गाते हैं कि एकल गायकी की जरूरत महसूस नहीं होती। उनका आलाप श्रोताओं को एक ऊंचाई पर ले जाकर वहीं छोड़ देता है। फिर वे अपनी खरज के साथ श्रोताओं को फिर से अपनी गहराई में ले आते हैं।
अपने गायन की बनारसी शैली के साथ ही उनके आलाप में पंडित कुमार गंधर्व के आलाप की ध्वनि भी आती है। कई जगह पर उनके भजन में हल्की सी कबीर की छटा सी महसूस होती है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में पारंगत राजन-साजन जब भजन गाते हैं तो यह किसी भक्ति की तरह लगता है। 'अजहुँ न आए श्याम' भजन ने अपनी भक्ति से श्रोताओं को सराबोर कर दिया।
बनारस के रहने वाले मिश्र बंधुओं ने अपनी पहली प्रस्तुति श्रीलंका में दी थी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें संगीत नाट्य अकादमी के साथ ही कई बड़े सम्मान मिल चुके हैं।
इंदौर म्यूजिक फेस्टिवल प्रतिवर्ष जनवरी में आयोजित होता है। संगीत गुरुकुल के अदिति काले और गौतम काले द्वारा यह समारोह आयोजित किया जाता है। पंडित जसराज के जन्मदिन के उपलक्ष्य में यह संगीत सभा होती है।