टिकटों की घोषणा के साथ ही भाजपा में बुलंद हुए बागी स्वर

मुस्तफा हुसैन
शनिवार, 3 नवंबर 2018 (19:10 IST)
विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा द्वारा जारी की गई 177 उम्मीदवारों की सूची के बाद समूचे मालवा में विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं, जबकि अभी भाजपा हाईकमान ने मालवा की कई सीटों को पेंडिंग कर रखा है। पहली सूची में अधिकांश जगह सिटिंग विधायकों पर ही पार्टी ने भरोसा जताया है, जिसके चलते एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर
प्रभावी रूप से दिखाई देने लगा है।
 
नीमच-मंदसौर की बात करें भाजपा ने इन दो जिलों की सात विधानसभा सीटों में से 6 पर प्रत्याशी घोषित कर दिए जिसमें जावद से ओमप्रकाश सकलेचा को चौथी बार और नीमच से दिलीपसिंह परिहार को तीसरी बार मौका दिया गया। इनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद न तो कोई सैलाब उमड़ा न पार्टी कार्यालय पर हुजूम देखा गया। उलटा पाटीदार समाज ने सोशल मीडिया पर एक पेम्पलेट जारी कर कहा कि नीमच से पाटीदार समाज के व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाए जाने का खामियाजा पार्टी भुगतने के लिए तैयार रहे। वे पाटीदार समाज के गांवों में वोट मांगने न आएं।
 
मनासा में मारू का विरोध : गौरतलब है कि यहां से पवन पाटीदार उम्मीदवारी कर रहे थे। ऐसा ही एक पेम्पलेट सिंधी समाज ने भी जारी किया है और उसमें कहा है एक भी सिंधी को प्रदेश में उम्मीदवार नहीं बनाए जाने का खामियाजा पार्टी भुगतने के लिए तैयार रहे। इस पेम्पलेट पर एलके आडवाणी की फोटो लगी है, वहीं मनासा से पार्टी ने सिटिंग विधायक कैलाश चावला को हटाकर पुराने संघी माधव मारू को उम्मीदवार बना दिया। माधव पिछले 10 साल से पार्टी के खिलाफ बागी चुनाव लड़ रहे थे।
 
उन्होंने मनासा में नगर पंचायत, मंडी और जिला पंचायत जैसी संस्थाओं में भी भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए जिसका परिणाम यह हुआ कि आज उम्मीदवारी की घोषणा होते ही बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता और नेता मनासा में पार्टी कार्यालय पर पहुंचे और वहा तालाबंदी कर दी और टिकट वापस लो के जमकर नारे लगाए इनका कहना था, जिस नेता ने 10 साल तक भाजपा का बेंड बजाया उसे क्यों उम्मीदवार बनाया गया।
 
सोशल मीडिया पर जारी बयान में हिंदूवादी नेता और विहिप के पूर्व जिलाध्यक्ष बाबूलाल नागदा ने कहा की नीमच विधानसभा में बहुतायत में ब्राह्मण समाज निवास करता है और 90% ब्राह्मण संघ विचारधारा के साथ खड़ा रहता है। आजादी से लेकर आज तक जब से संघ ने अपना राजनीतिक दल प्रारंभ किया नीमच जिले में कभी भी किसी भी ब्राह्मण को भाजपा की ओर से विधानसभा में उम्मीदवार नहीं बनाया। 
 
नागदा ने कहा की इस बार पूरा विश्वास था ब्राह्मण बाहुल्य वाले इस क्षेत्र में संघ ब्राह्मणों को विधानसभा 229 में अपना हक दिलाएगा पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। दिलीप सिंह जी के लिए वर्षों से मेहनत की और उनको दो बार विधानसभा में प्रचंड बहुमत से जिताकर भेजा है, लेकिन हम दिलीपसिंह के नेतृत्व में इस बार बहुत बुरी तरह चुनाव हारेंगे।
 
उधर मंदसौर की बात करें तो वहां से तीसरी बार यशपाल सिसोदिया को मौका मिला है। यहां से प्रदेश भाजपा महामंत्री बंशीलाल गुर्जर लाइन में थे। किसान नेता होने के साथ वे बड़े गुर्जर नेता हैं और इस संसदीय क्षेत्र से एक भी गुर्जर को विधानसभा की उम्मीदवारी नहीं मिलने से गुर्जरों में खासी नाराज़गी देखी जा रही है। दोनों जिलों में गुर्जर, गायरी, धनगर मिलाकर करीब 2 लाख वोट हैं। अकेले मनासा विधानसभा में करीब 35 हज़ार गुर्जर वोट हैं। 
 
मंदसौर जिले की सुवासरा सीतामऊ सीट से पार्टी ने पुराने हारे हुए नेता राधेश्याम पाटीदार को पुनः उम्मीदवार बना दिया। यह राजपूत बाहुल्य सीट है और यहां करीब 50 हज़ार राजपूत मतदाता हैं। राजपूत को उम्मीदवार नहीं बनाए जाने से सोशल मीडिया पर विरोध खड़ा हो गया। यहां  से आगे बढ़ें तो रतलाम जिले की जावरा विधानसभा सीट से एक बार फिर राजेंद्र पांडेय को उम्मीदवार बनाए जाने से यहां के बड़े भाजपा नेता और पिपलोदा नगर पंचायत के अध्यक्ष श्याम बिहारी पटेल ने मोर्चा खोल दिया है। पटेल के समर्थकों का दावा है कि हम निर्दलीय लड़ेंगे।
 
जानकारों के अनुसार इस सीट पर 90 ग्रामों और 52 पंचायतों वाले पिपलोदा क्षेत्र को भाजपा का गढ़ माना जाता है। जहां श्याम बिहारी पटेल का खासा प्रभाव है। 
 
उधर उज्जैन उत्तर पर काबीना मंत्री पारस जैन को पुनः उम्मीदवार घोषित होते ही फेसबुक पर भाजपाइयों ने पारस जैन निपटाओ समिति बना दी। पार्टी ने जो टिकट जारी किए उसको गहराई से जांचा जाए तो इसमें कारोबारी जमात और सवर्णों को तवज्जो दी गई है, जिसके चलते पिछड़ों में नाराज़गी देखी जा रही है, जिसमें पाटीदार, गुर्जर, गायरी, धनगर, बंजारा, पटेल, कुल्मी जैसी और जातिया हैं, जो मालवा में भरी पड़ी हैं। अभी यह शुरुआत है आगे भाजपा डेमेज कंट्रोल कैसे करती है ये उसकी ताकत पर निर्भर करता है। 
 

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