विधानसभा चुनाव को लेकर मध्यप्रदेश और राजस्थान में खासा माहौल तैयार हो गया है। इन चुनावों में ख़ास बात यह है कि मप्र के मालवा के चुनावी समीकरण पड़ोसी राज्य राजस्थान के मेवाड़ और वागड़ से काफी प्रभावित होते हैं क्योंकि मालवा के अधिकांश जिलों की सीमाएं मेवाड़ और वागढ़ से लगी है हैं। सीमाएं दोनों ही राज्यों की पुलिस के लिए भी एक बड़ा सिरदर्द होती हैं।
पिछले एक माह से मालवा, मेवाड़ और वागड़ जमकर घूमा और ज़मीनी हालात जाने। मालवा में कमोबेश भाजपा की स्थिति ठीक है। यहां सीएम शिवराज को आम लोग भला मानते हैं और कोई बड़ी वजह शिवराज के विरोध की वोटर्स को नहीं दिखती, लेकिन मालवा की 48 सीटों पर एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर भी दिखाई देता है। इन 48 सीटों में से 44 पर भाजपा के विधायक काबिज हैं।
इन 44 विधायकों में मंदसौर की मल्हारगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा विधायक और पूर्व काबीना मंत्री जगदीश देवड़ा को छोड़ दें तो अधिकांश बीजेपी विधायकों के खिलाफ आम लोगों में जमकर आक्रोश साफ़ दिखाई देता है। बताते हैं कि
इसकी समूची जानकारी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को है। क्योंकि पिछले दिनों जब अमित शाह एमपी में आए थे तब इंदौर मेँ उन्होंने भाजपा के विधानसभा विस्तारकों से बात की थी।
बताते हैं कि इन विस्तारकों ने जमकर सिटिंग एमएलए के खिलाफ बोला और कहा कि यदि इन्हें रिपीट किया गया तो बीजेपी बारह के भाव जाएगी। बताते हैं ये विस्तारक सीधे अमित शाह के लिए काम कर रहे हैं और अज्ञात सोर्सेस से इन्हें मासिक मानदेय भी अमित शाह भिजवा रहे हैं, जो महीने की एक तारीख को इन्हें नकद प्राप्त हो जाता है, जिसे बाहर का कोई आदमी देने आता है।
इन विधानसभा विस्तारकों को भी कुछ इसी टाइप का निर्देश हैं कि आप सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष से जुड़े हैं। इसलिए यह साफ़ है कि इनकी राय महत्वपूर्ण हो जाती है। जानकार बताते हैं कि इन्ही विस्तारकों से शाह ने प्रस्तावित दावेदारों के नाम भी लिए हैं। कुलमिलाकर विस्तारकों की रिपोर्ट और सर्वे को अमित शाह टिकट का आधार बनाएंगे।
अब यदि मेवाड़ की बात करें तो राजस्थान के इस हिस्से मेँ उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, और चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ जिले आते हैं। यहां लोग सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया से भारी नाराज़ दिखाई देते हैं और सिटिंग विधायकों को लेकर भी गुस्सा है। कमोबेश यही हाल वागड़ का है। वागड़ क्षेत्र मेँ बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले आते हैं। चूंकि राजस्थान से जुड़े इन इलाकों का सीधा संपर्क मालवा से है, इसलिए यहां भाजपा विरोधी लहर मालवा को प्रभावित करती है।
कुल मिलाकर इन हालातों के चलते भाजपा को फंक-फूंककर कदम रखने की ज़रूरत है। ज़रा सी चूक मालवा मेँ उसका सफाया कर सकती है, लेकिन उसको सबसे बड़ी राहत इस बात की है की ज़मीन पर कांग्रेस उतनी ताकतवर नहीं है। मालवा, मेवाड़ और वागड़ में कांग्रेस कांग्रेस गुटों में बंटी है। यहां कमलनाथ, सिंधिया और दिग्विजयसिंह के समर्थकों में मारा मारी है तो मेवाड़ और वागड़ में अशोक गेहलोत, सचिन पायलट और सीपी जोशी के समर्थकों में तलवारें खिंची हैं। जैसा कि हमेशा होता रहा है, जिस गुट के नेता को टिकट मिलता है बाकी उसे निपटाने में लग जाते हैं और यहीं से भाजपा का काम आसान हो जाता है।