मध्यप्रदेश चुनाव को लेकर कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने कमर कस ली है और दोनों अपनी तरह से चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं। एक तरफ भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के लिए शिवराजसिंह चौहान के रूप में चेहरा है, तो दूसरी ओर कांग्रेस अब तक सर्वे के आधार पर मुख्यमंत्री के चेहरे का चयन करने की बात कर रही है।
प्रदेश में भाजपा को मजबूत लेकिन कांग्रेस को कहीं न कहीं कमजोर माना जा रहा था, लेकिन अब कांग्रेस बसपा साथ मिलकर भाजपा को हराने की बात कर रहे हैं। साथ ही साथ कांग्रेस ने धर्म को भी अब अपना सहारा बनाया है जिससे अब तक भाजपा का जुड़ाव अधिक देखा गया है, चाहे वह हिंदुत्व की बात हो या फिर गौशाला की।
यहां चुनाव में जीत और हार के लिए जनता से जुड़े मुद्दे तो हैं ही जिन पर इस समय दोनों ही पार्टियां फोकस करने का प्रयास कर रही हैं, और यह जरूरी भी है, लेकिन जातिवाद भी यहां एक बड़ा मुद्दा बनकर उभर रहा है जो सत्ताधारी पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस के भी नाक में दम किए हुए है। ऐसे में दोनों ही पार्टियों के लिए ही चुनाव बड़ी चुनौती है।
इन सभी मुद्दों के अलावा भी दोनों ही पार्टियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती एंटी इंकम्बेंसी के रूप में देखने को मिल रही है, जिसके उदाहरण समय-समय पर सामने आते रहे हैं, लेकिन तमाम बड़े नेता पार्टी में इससे इंकार करते नजर आते हैं।
हाल ही में जब कमलनाथ से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने गुटबाजी से साफ इनकार किया। भले ही पार्टी इससे न माने, लेकिन राहुल गांधी के भोपाल दौरे को लेकर कांग्रेस के दिग्गजों के बीज दिग्विजय सिंह का कटआउट न लगाया जाना, कहीं न कहीं सवाल खड़े करता है।