एलजी साहब... ये तो हद हो गई..!

नई दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के साथ उपराज्यपाल यानी एलजी नजीब जंग के बीच चल रही जंग अब अत्यंत ही फूहड़ और अलोकतांत्रिक हो गई है। एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी यह बात समझ सकता है कि विशाल बहुमत से चुनी गई नई दिल्ली की केजरीवाल सरकार को हर तरह से केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा परेशान किया जा रहा है। 
 
आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि एक चुनी हुई सरकार और उसके मुख्यमंत्री को किसी भी तरह की नियुक्ति-तबादले अथवा पदस्थापना के अधिकार ही ना हों। अभी केजरीवाल सरकार ने दिल्ली महिला आयोग की नई प्रमुख के रूप में स्वाति मालीवाल की नियुक्ति की है और उनके द्वारा कार्यभार संभालते ही एलजी की ओर से यह फरमान सुनाया गया कि उनकी नियुक्ति बिना उपराज्यपाल की अनुमति के की गई, लिहाजा उसे खारिज किया जाता है और स्वाति मालीवाल को भी कहा गया कि वे काम ना करें अन्यथा उनके दफ्तर में ताला जड़ दिया जाएगा। 
 
लगे हाथ एलजी ऑफिस से यह भी कहा गया कि सरकार का मतलब उपराज्यपाल ही है। अब इस पर भाजपा का तो एलजी का पक्ष लेना समझ में आता है मगर कांग्रेस के दिमाग पर भी पत्थर पड़ गए हैं, जो वह ऐसे हिटलरशाही आदेशों को सही बताते हुए केजरीवाल सरकार को ही कोस रही है और भाजपा की मददगार दिख रही है।
 
कई जानकारों का यह तर्क भी है कि ऐसा तो संविधान में ही स्पष्ट है और नई दिल्ली को चूंकि पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है, लिहाजा एलजी के ऐसे आदेश और निर्देश कानूनन सही हैं। अब यहां सवाल यह है कि फिर नई दिल्ली में चुनाव कराकर एक लोकतांत्रिक सरकार को बैठाया ही क्यों गया? एलजी के भरोसे ही नई दिल्ली राज्य का संचालन करवाया जाता रहता।
 
विधिवत हुए चुनाव में 67 सीटें जीतकर आप पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और जनता के प्रति उसकी जिम्मेदारी भी बनती है। वोट मांगते वक्त कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा ने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की थी और आप पार्टी तो इसको लेकर आंदोलनरत रही ही और अब सरकार में आने के बाद भी उसे संघर्ष करना पड़ रहा है।
 
आज जनता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ उनकी पार्टी के मंत्रियों और विधायकों के पास ही पुलिस से लेकर अन्य संबंधित विभागों की समस्याएं लेकर जाएगी और चूंकि पुलिस भी उनके अधीन नहीं हैं तब वे जनता को कैसे राहत दिलवा पाएंगे? और तो और अभी राज्य महिला आयोग में स्वाति मालीवाल की नियुक्ति को लेकर भी न्यूज चैनलों और विपक्षीय पार्टियों ने इस तरह हल्ला मचाया जैसे देश में ये पहली राजनीतिक नियुक्ति की गई हो।
 
अब अगर आम आदमी पार्टी अपनी ही विचारधारा या पार्टी से संबद्ध लोगों की नियुक्तियां नहीं करेंगी तो क्या कांग्रेस और भाजपा के लोगों को पदों पर बैठाएगी? अगर उसे अपनी रीति-नीति को लागू करवाना है तो अपनी ही विचारधारा और पार्टी से जुड़े लोगों को पदों पर बैठाना पड़ेगा। गनीमत है कि अरविंद केजरीवाल से यह मांग नहीं की गई कि वे मंत्री सहित अन्य पदों पर भी बजाय आप विधायकों को बैठाने के कांग्रेस और भाजपा के लोगों को ये मौका दिया जाता।
 
नई दिल्ली की वर्तमान परिस्थितियों में अब अदालती हस्तक्षेप और कड़ा फैसला ही जरूरी है। हाईकोर्ट से लेकर और खासकर सुप्रीम कोर्ट को नई दिल्ली के संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट आदेश जारी करना चाहिए ताकि रोजाना की हो रही फजीहत खत्म हो और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को काम करने का पूरी तरह से मौका मिल सके। यहां पर सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाली केन्द्र की मोदी सरकार भी पूरी तरह एक्सपोज हो चुकी है।
 
अगर वह लोकतंत्र की हिमायती है तो उसे नई दिल्ली की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को कानूनों में बदलाव कर अधिकार दिए जाना चाहिए। अगर मोदी सरकार ताबड़तोड़ भूमि अधिग्रहण से लेकर अन्य अधिनियम संसद से मंजूर करवाए बिना अध्यादेश के जरिए लागू कर रही है तो उसे नई दिल्ली के मामलों में बदलाव करने में हिचक क्यों है? 
 
एलजी की तरह ही दिल्ली पुलिस का रवैया और बीते दिनों में हुई कार्रवाई भी साफ-साफ बताती है कि केजरीवाल सरकार को काम ना करने देने से लेकर बदनाम करने का षड्यंत्र भी किया जाता रहा। एक तरफ बलात्कार से लेकर कई गंभीर अपराधों में घिरे अन्य पार्टियों के सांसद, विधायक और मंत्री बेफिक्र घूम रहे हैं और उनको नोटिस जारी करने की भी हिम्मत दिल्ली पुलिस आज तक नहीं दिखा पाई, जबकि आम आदमी पार्टी के मंत्री से लेकर विधायक को रातों रात गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि अगर आप पार्टी के ये लोग दोषी हैं तो कानून के मुताबिक गिरफ्तारी से लेकर सजा भी मिलना चाहिए मगर ये कानून का राज क्या सिर्फ एक ही पार्टी के लिए हैं अथवा सभी के लिए?

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