जसोदा हरि पलने झूलावे...झूला झुलत नंदलाल बिरज में ... भजन सुनते हैं तो आंखों में एक काल्पनिक दृश्य उभर आता है, फूलों भरी बेल-लताओं से सजा हुआ सुगन्धित हरी भरी वाटिका में हवाओं से अठखेलियां करता हुआ मंद मंद हिलोरें खाता हुआ झूला जिसमें श्याम सुंदर किशन कन्हैया अपनी राज रानी मनोहारी राधारानी के साथ मगन आनंद उठा रहे हैं. सदियों से उनका ये रोमांटिक रूप आखों में बसा कर आराधना किए जाते हैं।
वैसे तो कई देवी-देवताओं के इस रूप के दर्शन करने भी मिलते हैं। परन्तु श्री कृष्ण इसका पर्याय ही माने जाते हैं।
झूले का आनंद किसी धन/धर्म का मोहताज नहीं है। गरीब हो या अमीर सभी एक सामान आनंद उठा सकते हैं। विशाल पेड़ों या बूढ़े बरगद की जटाओं से ले कर उत्सव/त्योहार, मेलों/बाजारों और देश/विदेशों में स्विंग राइड तक इसका अपना ही मजा है।
पेड़ की डाल, छत या और किसी ऊंचे स्थान में बांधकर लटकाई हुई दोहरी या चौहरी रस्सियां जंजीर आदि से बंधी पटरी जिसपर बैठकर झूलते हैं। झूला कई प्रकार का होता है। लोग साधारणतः सावन वर्षा ऋतु में पेड़ों की डालों में झूलते हुए रस्से बांधकर उसके निचले भाग में तख्ता या पटरी आदि रखकर उसपर झूलते हैं। घरों में छतों में तार या रस्सी या जंजीर लटका दी जाती है और बड़े तख्ते या चौकी के चारों कोने से उन रस्सियों को बांधकर जंजीरों को जड़ देते हैं। झूले के आगे और पीछे जाने और आने को पेंग कहते हैं। झूले पर बैठकर पेंग देने के लिए या तो जमीन पर पैर की तिरछा करे आघात करते हैं या उसके एक सिरे पर खड़े होकर झांक के नीचे की ओर झुकते हैं।
गांवों के पलायन, शहरों के सीमेंटीकरण, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने झूले का स्वरूप आकार प्रकार भी बदल दिया है। घर के कोने में एक ड्राप झूले ने जिसे हैंगिंग झूला भी कहते, ने ले ली। बशर्ते की आपके घरोंदे में जगह हो।
पलने का बड़ा रूप झूला है। झूला मां की साड़ी से ले कर आधुनिक मशीनी युग के खतरनाक घुमाव के साथ नए नए रूपों में सामने आ रहा है। विदेशों में भले ही थ्रिल के रूप में लिया जाता हो पर हिन्दुओं में ममत्व, वात्सल्य और आस्था का श्र्द्धापूर्ण प्रतीक है।
अपने आराध्यों को हम इस पर विराजमान या बालरूप में झूलने झुलाने की वंदना व बाल/रास लीलाओं का स्मरण करते हैं। अध्ययन करने पर झूलने के शारीरिक व स्वास्थ्य वर्धक लाभों की जाकारी भी सर्वविदित है। हिन्दुओं में धार्मिक कारणों से भी इसका गहरा नाता है। कई महलों/ब्रिज का निर्माण भी झूले के आधार पर ही हुआ है। नित नए रूपों के बदलाव के साथ पालना झूला हिंडोला इतिहास और वर्तमान में अपना महत्व बनाए हुए है।
पुराने सिनेमा तो झूले के साथ कई सुमधुर अमर गीतों का फिल्मांकन करता रहा है। इसकी अपनी एक फिलासफी भी है कि जिंदगी के आने वाले हर उतार चढ़ाव का अपना आनंद और रूप है। ये सुख दुःख के रूप में जीवन में आते हैं। धूप छांव की तरह हमारे साथ रहते हैं। इनसे विचलित होने की जगह अपने झूलों की पेंग अपने नियंत्रण में रखें।
इनको बंधने वाली रस्सियां,जंजीरें हमारे रिश्तों/आत्मविश्वास और कर्मों का प्रतीक हैं जो मजबूत हैं तो आपको झूले से कभी भी मुंह के बल नहीं गिरेंगे। जीवन के सावन सी हरियाली को सुखद बनाये रखने के लिए अपने कर्मों के झूले की रस्सियां मजबूत कीजिए। निश्चित ही जिंदगी के हानि-लाभ आपको झूलने सा आनंद प्रदान करेंगे।