भारती सिंह के ‘प्रेग्नेंसी टेस्ट’ के बहाने बात अपनी प्रायवेसी की....

डॉ. छाया मंगल मिश्र
कॉमेडियन भारती सिंह का ‘प्रेग्नेंसी टेस्ट’ वीडियो वायरल हुआ। कुछ चैनल्स उसे अपने तरीके से ख़बरों के रूप में पेश कर रहे। यहां तक कि बाथरूम से लेकर उसने जब वो टेस्ट अपने पति को दिखाया तो उसका क्या ‘रिएक्शन’ हुआ। सबकुछ रिकॉर्ड किया। आजकल ये सब सामान्य हो चला है।

पहले चेतावनी के रूप में जगह जगह लिखा पढ़ा करते थे ‘आप कैमरे की नजर में हैं’।अब तो घर-घर, कमरों-कमरों, गली मोहल्लों की तो छोड़ें, सभी “कैमरा नेत्र धारी” हो चले हैं। तीसरी आंख के रूप में हमेशा, हर कोई अपने पास इसे तैयार ले के चलते हैं। जिनका केवल यही काम होता है मन चाहे जहां, जरुरत हो के न हो बस वीडियो बनाना और वायरल करना। ‘अपवाद छोड़ दें।

सनसनी के रूप में, ब्लेकमेल के उद्देश्य से, बदनामी के लिए, या हमेशा ‘डिमांड’ में बने रहने के लिए, सस्ती लोकप्रियता की दौड़ की विवशता, चैनल्स की टी आर पी, आत्म संतुष्टि, प्रपंचना, आत्ममुग्धता, पेशे की मजबूरी के आलावा ऐसे अन्य कई कारण होते हैं जिसके लिए ये सब हथकंडे आजमाने पड़ते होंगे। पर ऐसी और कौन सी अनिवार्यता हो चली है कि हमारा ‘सामान्य जीवन’ भी इसके चपेट में आ गया?

कई बार व्यक्तिगत, पारिवारिक कार्यक्रमों का लगातार ‘लाइव’ करना समझ से परे होता है। अनंत और खूबसूरत वास्तविक दुनिया से दूर हथेली भर के मोबाईल में अपने आनंद को ढूंढना या उन अनमोल पलों को केवल कैद कर के रख लेना चिंता का विषय है। हर कार्यक्रम में संबंधित मनुष्य ‘रोबोट’ की तरह फोटोग्राफर्स के इशारों पर नाचता हुआ देखा जा सकता है। “पोज’’ देने-लेने की प्रक्रिया में प्राकृतिक रूप से होने वाली खुशियों और आनंद को उस वातावरण से खदेड़ दिया जाता है। कौन आया, कौन गया, किसने ख़ुशी मनाई कौन शुभकामना दे रहा से कोई मतलब नहीं।
 
सबसे ज्यादा शादी ब्याह में ऐसा नजारा देखने मिलता है। प्री-वेडिंग से ले कर सगाई, शादी, बच्चों की ‘डे-मंथ एनिवर्सरी’ की प्रदर्शनी आप देख सकते हैं। दूर दूर से विवाह समारोह में आए लोगों से कोई मतलब ही नहीं होता। बस वीडियो और फोटो हीरो हीरोइन की तरह होना चाहिए। वर माला से लेकर रिसेप्शन के भव्य मंचों तक जाने के बीच की यात्रा की झांकी देख कर कई बार झुंझलाहट सी होने लगती है। धुंआ-धुंआ रास्तों के साथ “अजीमो शान शहंशाह ...” जैसी अन्य कोई और जीवन को भ्रमित करती कान फोडू धुनों पर चलते वे छोटे बड़ों का लिहाज और उपस्थिति से अनभिज्ञ सिर्फ और सिर्फ उस “कैमरे के कैदी” हो कर रह जाते हैं।

अकड़तीचाल में दुल्हा, पार्लर से “ब्यूटीफुल” लकदक तैयार दुल्हन दोनों ‘शादी’ टाइटल की फिल्म के लिए तैयार हैं। उसी मंच पर वरमाला की अजीबोगरीब तौर तरीकों से नौटंकी होगी।कई सारे लोग रीतिरिवाज से कोसों दूर अपने सेल्फी और फोटो लेने में व्यस्त। फोटोग्राफर्स कई तरह की “मुद्राएं” सिखा रहे। खिंचिक-खिंचिक आवाजों के साथ आड़े-टेड़े खुद भी हो रहे और कैमरे भी। वास्तविक खुशियों और आनंदों से वंचित ये सभीजन वर्तमान से दूर भावी यादों को बनाने के चक्कर में संवेदना का ह्रास झेल रहे।
 
असीमित संसार को बांधने का मोह मृग मरीचिका के समान है।वास्तविक अनुभूति से दूर इन अप्राकृतिक यादों को समेटे हम केवल मशीनी हो चले हैं। पल-पल की खबर प्रसारित करने की लत आपको अपनों से दूर करती है। ऐसा ही कुछ जन्मदिन और सालगिरहों के दिनों में भी होता है। पूरा-पूरा दिन आभासी दुनिया का शुक्रिया करते बीत जाता है और जो साथ में जिन्दा आपके लिए खुश हैं उनकी ओर मुंह उठा के दो बोल भी नहीं बोला जाता। लाइक-कमेंट के जाल में अपनी जिंदगी का हिसाब-किताब ढूंढते ये लोग खुद तो खुद दूसरों को भी निराश ही करते हैं। अपना समय बर्बाद करते हैं और दूसरों के समय की भी “हत्या” करते हैं। 
 
वे नहीं जानते की उन्होंने दुनिया मुट्ठी में नहीं की हुई है....मुट्ठी ने उनकी जिंदगी जकड़ी हुई है...जो घुटी जा रही है, अनुभूति संवेदनाओं से विरत, कैमरे की आंख के इशारों पर नाचती जिंदगी...
 

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