भीड़ भरी दुनिया में अकेलेपन की भीड़!

8 अरब मनुष्यों की दुनिया को भीड़ भरी दुनिया की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिश्‍योक्ति नहीं मानी जाएगी। पर आज की भीड़ भरी दुनिया में मनुष्यों के मन में अकेलेपन का अहसास दिन दूना, रात चौगुना बढ़ रहा है, यह एक नई बात है। भीड़ और अकेलापन दोनों एक-दूसरे के विरोधाभासी शब्द हैं। भीड़ यानी मनुष्यों की एक ही जगह बहुत बड़ी संख्या और अकेलापन यानी मनुष्यों के मन में किसी अन्य मनुष्य के सान्निध्‍य या विचार का पूरा अभाव। मनुष्य भीड़ से ज्यादा अकेलेपन से डरता है।

भीड़ तो कई तरह से मनुष्य के हौसले को ताकत देती महसूस होती है, पर अकेलापन न घर में रहने देता है, न भीड़ में जाने का उत्साह देता है। अकेलापन और भीड़ दोनों ही मनुष्य मन की मनःस्थिति को उजागर करती है। कोई मनुष्य भीड़ में भी अकेला महसूस कर सकता है और अकेले ही भीड़भाड़ का आनंद भी ले सकता है।ये दोनों मनःस्थिति पूरी तरह से मानव मन के खेल हैं।इन दिनों छोटे, बड़े, मझोले और महानगरों में रहवासी मकानों की अंतहीन भीड़ बाहर से हर कहीं दिखाई देती है, पर मकानों की भीड़ के अंदर झांकने पर ढेर सारे अकेलेपन का अहसास लिए मनुष्यों से साक्षात्कार होता है।
 
हमारा व्यक्तित्व और कार्यशैली भी तय करती है कि हम कैसे रहना या जीवन जीना चाहते हैं। हमारी आजीविका भी तय करती है कि हम कैसे और क्या कार्य करना चाहते हैं? जब हम खरीद-फरोख्‍त का व्यापार-व्यवसाय करने वाले होते हैं तो हमारी मनोकामना यह होती है कि हमारी दुकान पर हर समय भीड़भाड़ हो और व्यापारिक चहल-पहल भी बनी रहे। यदि हमारे पास लिखने-पढ़ने का कार्य है या हम चित्रकार हैं या और कोई अन्य कारीगरी का काम करते हैं तो कार्यस्थल पर भीड़भाड़ न हो, हमें अकेले ही कार्य करने में मज़ा आता है।

पर जब हम अपनी चित्रकारी की प्रदर्शनी लगाएंगे या उत्पादित वस्तुओं को विक्रय करने हेतु हाट बाजार या प्रदर्शित स्टाल पर रखते हैं तो हमारी मनोकामना यह होती है कि इतनी भीड़ हमारे स्टाल पर हो कि रखी गईं सभी वस्तुएं बिक जाएं। इस दृष्टि से देखें या सोचें तो भीड़भाड़ और अकेलापन हमारे मन का सापेक्ष भाव है।जब हमारी मानसिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक या व्यावसायिक आवश्यकता होती है तो हम भीड़भाड़ न केवल पसंद करते हैं वरन् भीड़भाड़, चहल-पहल हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता की तरह ही होती है।
 
मनुष्य अपने जीवनकाल में केवल उन्हीं लोगों को याद कर सकता है जो उसके घर-परिवार,पास-पड़ोस,जान-पहचान के हों। मनुष्य को याद भी उन्हीं लोगों की आती है जिनसे पूर्व में कभी न कभी संपर्क हुआ हो या जिन्हें मनुष्य किसी न किसी रूप में जानता, मानता या पहचानता हो, भले ही ऐसे मनुष्य से पूर्व में प्रत्यक्ष मिलना-जुलना नहीं भी हुआ हो, पर फिर भी स्मरण मात्र से याद आ सकता है।

अपने-अपने जीवन में प्रत्येक मनुष्य अनगिनत मनुष्यों से मिलता या उन्हें देखता है, पर फिर भी उनका हर समय स्मरण नहीं हो सकता। हजारों लाखों लोग की भीड़ में यदि हमारा कोई एक परिचित शामिल है तो दिखाई देते ही हम उसे पहचान लेते हैं। बाकी अपरिचित लोग हमें दिखाई तो देते हैं पर न तो हम उन्हें पहचानते हैं और न ही व्यक्तिश: जानते हैं।
 
अकेलापन महसूस ही तब होता है जब हमारे परिचित या परिजनों से हम दूर हों। यदि हमारे विचार से अलहदा हमारे परिजनों के विचार हों और हम अपने विचारों को परिजनों और परिचितों को समझा नहीं पा रहे हों तो हमारे मन में वैचारिक अकेलेपन का अहसास एकदम से आ जाता है। विचार-विमर्श से आपस में वैचारिक अकेलेपन का भाव अपने आप दूर होकर मनुष्य समाज अपने आप को विचारों से जुड़ाव महसूस करता है।अबोलेपन से भी मनुष्य को अकेलेपन की अनुभूति होती है। हर मनुष्य का अपना एक दायरा होता है, इसी तरह से प्रत्येक मनुष्य का अपने जीवन जीने का एक अनोखा अंदाज भी होता है।
 
हम अनजाने लोगों से भले ही मिलकर सहजीवन न कर सकें, पर निगाह मिलने या आमने-सामने आ गए तो अपने चेहरे पर आत्मीयता के भाव लाकर कोई संपर्क न होते हुए भी एक शब्द या मुस्कुराहट से अभिवादन का आदान-प्रदान अपने आप करने की क्षणिक स्वस्फूर्त भावना को व्यक्त करने में अपने आप से भी झिझकते या पूछते नहीं हैं।

अकेलापन आठ अरब लोगों की भीड़ में अपने जीवन को इतना संकीर्ण मानसिकता में परिवर्तित करना है कि हम अपने पूर्व परिचित मनुष्यों या विचारों तक ही जीवन को सीमित रखकर जीना सीख गए हैं। अपने आप में सीमित रहकर अपने विचार, व्यवहार और स्वभाव को नित नए विचार, व्यवहार और स्वभाव से तालमेल नहीं बैठा पाना अकेलापन महसूस करने की दिशा में निरंतर बढ़ते रहना है।

आठ अरब मनुष्यों के विचार, व्यक्तित्व और कृतित्व एवं व्यवहार का विस्तार अनंत और सनातन है! एक मनुष्य अनंत काल तक भी आठ अरब मनुष्यों के लोकसागर में गोताखोरी करता रहे तो भी उसके मन में अकेलेपन का अहसास आ ही नहीं सकता! अकेलापन और भीड़ मनुष्य की देखने-समझने की दृष्टि से अधिक कुछ नहीं है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी